जब आमदनी में तेज गिरावट जारी हो और क्रयशक्ति कमजोर हो, तब एक साधारण व्यक्ति यही सोचता है कि कम से कम उसकी अनिवार्य जरूरत की चीजों की कीमतों तक उसकी पहुंच हो। लेकिन पिछले कई महीने से हालत यह है कि अर्थव्यवस्था एक संवेदनशील स्थिति से गुजर रही है, इसमें बहुत सारे लोगों के सामने रोजी-रोटी का सवाल एक बड़ी चुनौती हो गया है और इसके बरक्स बाजार में जरूरत की सभी वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं।
सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक मार्च महीने में देश में खुदरा महंगाई दर बढ़ कर 5.52 हो गई। जब फरवरी में खुदरा महंगाई 5.03 फीसद की रफ्तार से बढ़ी थी, तभी लोगों के सामने अनिवार्य वस्तुओं की खरीदारी भी चिंता का मामला बन गई थी। इसके अलावा, फरवरी में समूचे देश में खाने-पीने की चीजों के दाम 3.87 फीसद बढ़े थे, वहीं मार्च में इसमें 4.94 फीसद बढ़ोतरी हो गई। अब खुदरा महंगाई दर में करीब आधा फीसद और खाने-पीने के दाम में लगभग एक फीसद की बढ़ोतरी के आंकड़े के बीच आम लोग किन हालात का सामना कर रहे होंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
गौरतलब है कि रोजमर्रा की खाद्य सामग्रियों में दालों के दाम में सवा तेरह फीसद, तेल की कीमत में करीब पच्चीस फीसद और फल, अंडा सहित दूसरी चीजों के मूल्यों में भी खासी बढ़ोतरी हुई। यह स्थिति तब है जब ग्रामीण इलाकों में महंगाई दर शहरों की अपेक्षा थोड़ी कम रही। वरना औसत आंकड़ा शायद और ज्यादा होता। सवाल है कि जिस दौर में समूचा देश एक तरह से आर्थिक मंदी की चपेट में है, आबादी के एक छोटे हिस्से को छोड़ दें तो अमूमन सभी लोगों के सामने आमदनी और खर्चे के मोर्चे पर लगातार चुनौतियां बनी हुई हैं, ऐसे में सरकार की प्राथमिकता में महंगाई को काबू में रखना क्यों नहीं है!
साल भर पहले जब महामारी की रोकथाम के मकसद से पूर्णबंदी लागू की गई थी, तब बहुत कम या फिर दिहाड़ी की आय पर निर्भर लोगों के सामने जिंदा रहने तक के लिए भोजन जुटाना मुश्किल हो गया था। हालांकि तब एक तबका ऐसा था, जो पहले से कुछ जमा-पूंजी के बूते अपनी जिंदगी को सहज बनाए रख सका था। लेकिन इस सहारे के बूते बहुत लंबे समय तक संकट का सामना नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि इस बार महंगाई की मार से गरीब तबका और मध्यवर्ग, दोनों ही काफी परेशान हैं।
सच यह है कि मंदी के दुश्चक्र से उबरने में महंगाई एक बड़ी बाधा है। साथ ही रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया अपनी मौद्रिक नीति तय करते समय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को ही ध्यान में रखता है। साफ है कि महंगाई दर में जैसी तेजी बनी हुई है, उसके दबाव की वजह से ब्याज दरों में कमी की संभावना नहीं बनेगी। भले ही विकास दर और निवेश को बढ़ावा देने के लिहाज से ऐसा करना जरूरी हो। पिछले साल कुछ समय तक सख्त पूर्णबंदी के बाद उसमें क्रमश: राहत के साथ जब बाजार खुलने लगे तो अर्थव्यवस्था कुछ हद तक पटरी पर आती दिखने लगी थी।
खासतौर पर पिछले साल दिसंबर के बाद दो महीने तक थोड़ी राहत का माहौल बना था। मगर अब दोबारा महामारी का जोर बढ़ता दिख रहा है और लगभग समूचे देश में पूर्णबंदी का खतरा फिर से मंडराने लगा है। कई राज्यों में चरणबद्ध तरीके से कहीं इलाकावार तो कभी रात्रिकालीन कर्फ्यू लागू है। अगर मौजूदा स्थिति में एक बार फिर सब कुछ बंद होने की नौबत आती है, तो इसका बाजार और जरूरत की वस्तुओं की कीमतों पर क्या असर पड़ेगा, यह समझना मुश्किल नहीं है।
सौजन्य - जनसत्ता।
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