अगले चरण के टीकाकरण के लिए पंजीकरण शुरू होते ही जैसी दिलचस्पी दिखाई गई उससे पता चलता है कि लोग टीका लगवाने को उत्सुक हैं। सभी बालिग टीका लगवाने के लिए उत्सुक बने रहें इसके लिए आवश्यक है कि पंजीकरण से लेकर टीकाकरण की प्रक्रिया को सुगम बनाए रखा जाए।
अगले चरण के टीकाकरण के लिए पंजीकरण शुरू होते ही जैसी दिलचस्पी दिखाई गई, उससे पता चलता है कि लोग टीका लगवाने को उत्सुक हैं। सभी बालिग टीका लगवाने के लिए उत्सुक बने रहें, इसके लिए यह आवश्यक है कि पंजीकरण से लेकर टीकाकरण की प्रक्रिया को सुगम बनाए रखा जाए। पंजीकरण के पहले ही दिन जिस तरह बाधाएं खड़ी हुईं, उनका संज्ञान लेते हुए इस पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या बिना पूर्व पंजीकरण के लोग टीकाकरण केंद्रों में जाकर टीका लगवा सकते हैं? यदि अभी यह सुविधा दी जा रही है तो 1 मई से शुरू होने वाले अभियान के दौरान क्यों नहीं दी जा सकती? जो तकनीकी रूप से दक्ष नहीं हैं, उन्हें मोबाइल फोन के जरिये पंजीकरण में परेशानी आ सकती है। टीकाकरण के प्रति लोगों की दिलचस्पी को देखते हुए उचित यह भी होगा कि टीकाकरण केंद्र बढ़ाए जाएं, ताकि प्रतिदिन अधिकाधिक संख्या में टीके लगाए जा सकें। अभी तक प्रतिदिन 30-32 लाख ही टीके लगाए जा सके हैं। कायदे से यह संख्या 50 लाख प्रतिदिन होनी चाहिए थी। अच्छा हो कि अगले चरण में रोजाना करीब एक करोड़ लोगों के टीकाकरण का बड़ा लक्ष्य रखा जाए और कुछ दिनों बाद उसे हासिल करने के भी प्रबंध किए जाएं। वास्तव में यही वह उपाय है, जिससे कोरोना कहर पर लगाम लगाने में सफलता मिल सकती है। टीकाकरण युद्धस्तर पर न केवल शुरू किया जाना चाहिए, बल्कि वह इसी रूप में होता हुआ दिखना भी चाहिए। इस मामले में मिसाल कायम किए जाने और दुनिया को यह साबित करने की जरूरत है कि भारत अपने लोगों की जीवन रक्षा के लिए बड़े से बड़े लक्ष्य को हासिल कर सकता है।
यह अच्छा नहीं कि जब टीकाकरण अभियान को रफ्तार देने की कोशिश की जा रही है, तब कुछ राज्य 1 मई से इस अभियान को शुरू करने में आनाकानी कर रहे हैं। यह आनाकानी संकीर्ण राजनीति से प्रेरित नजर आ रही है। टीकाकरण के अगले चरण को शुरू करने में हीलाहवाली कर रहे राज्यों की ओर से जो तर्क दिए जा रहे हैं वे बहानेबाजी ही अधिक हैं। यह सही है कि फिलहाल वांछित संख्या में टीके उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन यह तो तय है कि कुछ दिनों में उनकी उपलब्धता बढ़ने वाली है। देश में उनका उत्पादन बढ़ने के साथ ही विदेश और खासकर रूस से स्पुतनिक टीके की खेप आने वाली है। यदि अमेरिका अपने एस्ट्राजेनेका टीकों के आयात में कोई अनुचित शर्त नहीं लगा रहा तो फिर उन्हें हासिल करने में भी कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। वैसे भी यही टीके भारत में कोविशील्ड नाम से उपयोग में लाए जा रहे हैं।
सौजन्य - दैनिक जागरण।
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