चिंता की वृद्धि (जनसत्ता)

भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर लगाए जा रहे अनुमान चिंताजनक हैं। रेटिंग एजेंसियों, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को यह खतरा साफ दिख रहा है। एशियाई विकास बैंक और रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने कारोबारी गतिविधियों पर मौजूदा हालात का असर पड़ने की बात कही है। जाहिर है, इससे विकास दर नीचे आती ही है। इनवेस्टमेंट इन्फॉर्मेशन एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (इक्रा) का आकलन है कि दूसरी लहर से वाहन, विमानन कंपनियों, खुदरा कारोबार और सेवा क्षेत्र को तगड़ा झटका लगेगा। हाल तक बताया जा रहा था कि देश कोरोना की मार से काफी हद तक उबर चुका है। इसी आधार पर कहा गया था कि वित्त वर्ष 2021-22 अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा साबित हो सकता है। अब हालात फिर बदल गए हैं। दूसरी लहर ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। जिस तरह से बताया जा रहा था कि भारत ग्यारह फीसद या इससे ज्यादा की वृद्धि दर हासिल कर लेगा, उस अनुमान को एक बार फिर बदलना पड़ रहा है। बहरहाल, नया अनुमान यह है कि वृद्धि दर ग्यारह से घट कर एकदम सात फीसद तक गिर सकती है।

पिछले साल देश पूर्णबंदी का खमियाजा भुगत चुका है। संक्रमण से बचाव में अगर कुछ दिन या हफ्ते के लिए आर्थिक गतिविधियां बंद कर दी जाएं तो बाद में कैसे गंभीर नतीजे झेलने पड़ते हैं, यह हम देख चुके हैं। याद दिलाया जा सकता है कि पिछले साल हड़बड़ाहट में अड़सठ दिन की पूर्णबंदी की मार से छोटे और मझौले उद्योग आज भी उबर नहीं पाए हैं। बहुत संभव है कि इसीलिए इस बार कई मौकों पर केंद्र सरकार को कहते रहना पड़ा कि अब देशव्यापी पूर्णबंदी नहीं होगी। हालांकि राज्यों को जरूर यह छूट दे दी गई कि वे अपने यहां हालात को देखते हुए बचाव के बंदोबस्त खुद ही करें। इनमें कड़े प्रतिबंध और आंशिक बंदी जैसे कदम शामिल हैं। इसीलिए कई राज्य जरूरत के मुताबिक सीमित स्तर पर ही बंदी जैसा कदम उठा रहे हैं।

ऐसे सीमित कदम उठाना स्वाभाविक भी है, क्योंकि ज्यादातर राज्यों की माली हालत भी नाजुक है। देखा जाए तो आंशिक बंदी और कर्फ्यू का भी अर्थव्यवस्था पर अच्छा खासा असर पड़ता है। मसलन, महाराष्ट्र में बंदी से हजारों करोड़ के कारोबार का नुकसान हो चुका है। भोपाल, इंदौर, बंगलुरु जैसे शहरों में कर्फ्यू जैसे कदमों से ही कारोबारियों और खासतौर से रोज कमा कर खाने वालों की कमर टूटने लगी है।

दूसरी लहर के खतरों से उद्योगपति भी अनजान नहीं हैं। इसीलिए भारतीय उद्योग परिसंघ के एक सर्वे में तिरानबे फीसद मुख्य कार्यकारी अधिकारियों ने आंशिक बंदी जैसे कदम को भी सिरे से खारिज कर दिया। फेडरेशन आॅफ इंडियन चैंबर्स आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) ने राज्यों से किसी भी तरह के कारोबार पर प्रतिबंध लगाने से बचने को कहा है। इससे कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर अब कामधंधे थोड़े से भी बंद हुए तो पिछले साल से ज्यादा बदतर हालात हो जाएंगे। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए इस वक्त सबसे जरूरी बाजार में मांग पैदा करना है। तभी उत्पादन भी बढ़ेगा।


इसके लिए सरकार और उद्योगों को ऐसी रणनीति बनानी होगी कि किसी भी सूरत में कारोबारी गतिविधियां बंद न हों, ताकि कामगारों की जेब में पैसा पहुंचता रहे। यह साल इसलिए भी ज्यादा चुनौती भरा है क्योंकि तीसरी लहर की आशंका भी महामारी विशेषज्ञ जता चुके हैं। ऐसे में महामारी से पैदा हालात और आर्थिक गतिविधियों के बीच तालमेल वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। समझदारी इसी में है कि ऐसा रास्ता निकालें जिससे महामारी से भी निपट लें और कामधंधे भी चलते रहें।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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