पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने असम में महाबाहु–ब्रह्मपुत्र योजना की शुरुआत की। साथ ही‚ अन्य कई बड़े प्रोजेक्ट्स की आधारशिला भी रखी। असम में कनेक्टिवटी के उद्देश्य से महाबाहु–ब्रह्मपुत्र योजना शुरू की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत कई छोटी–बड़ी परियोजनाओं को शामिल किया गया है। इन परियोजनाओं की मदद से रो–पैक्स सेवाओं से तटों के बीच संपर्क बनाने की कोशिश है। साथ ही‚ सड़क मार्ग से यात्रा की दूरी भी कम हो जाएगी। वहीं‚ दूसरी ओर चीन ने तिब्बत के मुहाने‚ जो अरु णाचल प्रदेश से महज ३० किलोमीटर दूर है‚ पर दुनिया का अभी तक सबसे विशालकाय डैम बनाने की घोषणा कर दी है। चीन ने अरु णाचल प्रदेश से सटे तिब्बत के इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनाने की तैयारी भी कर ली है।
ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने का चीन का फैसला भारत–चीन के रिश्तों में तनाव की नई वजह बन सकता है। ब्रह्मपुत्र नदी को चीन में यारलंग जैंगबो नदी के नाम से जाना जाता है। यह नदी एलएसी के करीब तिब्बत के इलाकों में बहती है। अरु णाचल प्रदेश में इस नदी को सियांग और असम में ब्रह्मपुत्र नदी के नाम से जाना जाता है। हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के नाम पर चीन इस नदी पर जो बांध बनाएगा उससे नदी पर पूरी तरह चीन का नियंत्रण हो जाएगा। यह चीन की १४ पंचवर्षीय योजना का हिस्सा है। चीन की इस साजिश से भारत‚ पाकिस्तान‚ भूटान और बांग्लादेश पूरी तरह से प्रभावित होंगे। निरंतर १९५४ से लेकर आज तक हर वर्ष ब्रह्पुत्र नदी की विभीषिका भारत के उत्तर–पूर्वी राज्यों को तबाह करती रही है। हर वर्ष बाढ़ एक मुसीबत बन जाती है। इस डैम के बन जाने के बाद चीन जल संसाधन को आणविक प्रक्षेपास्त्र की तरह प्रयोग कर सकता है। विशेषज्ञों ने इसे वॉटर कैनन का नाम दिया है।
भारत की नीति अंतरराष्ट्रीय नदी के संदर्भ में दुनिया के सामने एक मानक बनी हुई है। पाकिस्तान के साथ इंडस संधि की प्रशंसा आज भी होती है। उसी तरह २००७ में बांग्लादेश के साथ रिवर संधि दोनों देशों के लिए सुकून का कारण है। वहीं‚ चीन अपने पडोसी देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय नदी को एक तुरु प की तरह प्रयोग करता है। अगर जनसंख्या की दृष्टि से देखें तो चीन की आबादी २० फीसदी है जबकि उसके पास स्वच्छ पानी का औसत महज ५ प्रतिशत भी नहीं है। उसके बावजूद दुनिया की महkवपूर्ण नदियों‚ जो तिब्बत के पठार से निकलती हैं‚ पर डैम बनाकर चीन दुनिया को पूरी तरह से तबाह कर देने की मुहिम में है। मेकांग नदी आसिआन देशों के लिए जीवनदायिनी है लेकिन चीन ने अलग–अलग मुहानों पर डैम बना कर नदी को इतना कलुषित कर दिया है कि वह अन्य देशों में पहुंचने पर एक नाले में तब्दील दिखाई देती है। यही हालत चीन ब्रह्मपुत्र के साथ कर रहा है। इसके परिणाम घातक होंगे। चीन भारत के चार महkवपूर्ण राज्यों की कृषि व्यवस्था और जीवन स्तर को खतरे में डाल सकता है‚ अगर यह डैम बनकर तैयार हो गया तो। पहले तो यही कि नदियों के बहाव को रोक लिया जाएगा।
मालूम हो कि तिब्बत में ब्रह्मपुत्र के साथ ३३ सहायक नदियां उससे मिलती हैं। उसी तरह भारत में अरुणाचल प्रदेश से प्रवेश करने के उपरांत १३ नदियां पुनः उसका अंग बन जाती हैं। अगर चीन इनका इस्तेमाल एक कैनन की तरह करेगा तो बाढ़ का ऐसा आलम बन सकता है जिससे पूरा का पूरा क्षेत्र ही बहाव में विलीन हो जाएगा। अगर चीन ने बहाव को रोक लिया तो कृषि व्यवस्था तबाह होगी। ॥ चीन पहले ही ब्रह्मपुत्र नदी पर कई छोटे–छोटे बांध बना चुका है। चीन के पॉवर कंस्ट्रक्शन कोऑपरेशन के चेयरमैन और पार्टी के सेक्रेटरी यान झियोंग ने कहा है कि ताजा पंचवर्षीय योजना के तहत इस बांध को बनाया जाएगा। यह योजना वर्ष २०२५ तक चलेगी। लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है‚ ‘चीन ने तिब्बत के जल पर अपना दावा ठोका है‚ जिससे वह दक्षिण एशिया में बहने वाली सात नदियों सिंधु‚ गंगा‚ ब्रह्मपुत्र‚ इरावडी‚ सलवीन‚ यांगट्जी और मेकांग के पानी को नियंत्रित कर रहा है। ये नदियां पाकिस्तान‚ भारत‚ बांग्लादेश‚ म्यांमार‚ लाओस और वियतनाम में होकर गुजरती हैं।' पिछले कुछ वषाç में ऐसे कम से कम तीन अवसर आ चुके हैं‚ जब चीन ने जान बूझकर ऐसे नाजुक मौकों पर भारत की ओर नदियों का पानी छोड़ा जिसने भारत में भारी तबाही मचाई। जून‚ २००० में अरु णाचल के उस पार तिब्बती क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र पर बने एक डैम का हिस्सा अचानक टूट गया जिसने भारतीय क्षेत्र में घुसकर भारी तबाही मचाई थी। उसके बाद जब भारत के केंद्रीय जल शक्ति आयोग ने इससे जुड़े तथ्यों का अध्ययन किया तो पाया गया कि चीनी बांध का टूटना पूर्वनियोजित शरारत थी। रक्षा विशेषज्ञों की चिंता है कि यदि भारत के साथ युद्ध की हालत में या किसी राजनीतिक विवाद में चीन ने ब्रह्मपुत्र पर बनाए गए बांधों के पानी को ‘वॉटर–बम की तरह इस्तेमाल करने का फैसला किया तो भारत के कई सीमावर्ती क्षेत्रों में जान–माल और रक्षा तंत्र के लिए भारी खतरा पैदा हो जाएगा।
प्रश्न उठता है कि भारत के पास विकल्प क्या हैंॽ भारत चीन को रोक कैसे सकता हैॽ चीन भौगोलिक रूप से ऊपर स्थित है। नदी वहां से नीचे की ओर आती है। भारत ने पडÃोसी देशों के साथ नेकनीयती रखते हुए संधि का अनुपालन किया‚ वहीं चीन किसी भी तरह से अंतरराष्ट्रीय नदियों पर किसी भी देश के साथ कोई संधि नहीं की है अर्थात वह जैसा चाहे वैसा निर्णय ले सकता है। इसलिए मसला मूलतः पावरगेम पर अटक जाता है। भारत हिमालयन ब्लंडर दो बार कर चुका है। पहली बार जब नेहरू ने तिब्बत को चीन का अभिन्न हिस्सा मान लिया। दूसरी बार तब जब अटलबिहारी वाजपेयी ने स्वायत्त तिब्बत को भी चीन का हिस्सा करार दे दिया। और बात भारत के हाथ से निकल गई। समस्या की मूल जड़ तिब्बत को चीन द्वारा हड़पने और भारत की मंजूरी से शुरू होती है। निकट भविष्य में ऐसा प्रतीत नहीं होता कि भारत की तिब्बत नीति में कोई सनसनीखेज परिवर्तन हो पाएगा। दूसरा तरीका क्वाड का है। इसके द्वारा चीन पर दबाव बनाया जा सकता है। भारत इस कोशिश में लगा भी हुआ है। बहरहाल‚ समय बताएगा कि भारत और चीन के बीच में संघर्ष वॉटर कैनन का होगा या आणविक मिसाइल काॽ ॥ प्रो. सतीश कुमार॥
सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।
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