पिछले कुछ सालों से विश्व भर में जिस तरह परिस्थितियां बदल रही हैं, कूटनीतिक स्तर पर अलग-अलग देशों के बीच नई समझदारी विकसित हो रही है, उसमें भारत के लिए यह जरूरी है कि बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के बीच अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करे। हालांकि समकक्ष या फिर विपरीत ध्रुवों में बंटी दुनिया में भारत की हैसियत अब तक निश्चित रूप से ऐसी रही है जिसकी अनदेखी करना किसी के लिए संभव नहीं हो सका।
मगर जिस तेज रफ्तार से नए वैश्विक घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, उसमें उसी के मुताबिक देशों के बीच संबंध भी नए सिरे से परिभाषित हो रहे हैं। इस लिहाज से देखें तो रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की ताजा भारत यात्रा से कुछ अहम संकेत उभरते हैं। गौरतलब है कि इस दौरान भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने रूसी समकक्ष के साथ परमाणु, अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही भागीदारी और दोनों देशों के बीच संबंधों के विविध आयामों सहित भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन की तैयारियों पर विस्तार से बात की।
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत और रूस के बीच लंबे समय से मजबूत संबंध रहे हैं और इसे विश्व पटल पर बराबरी और गरिमा पर आधारित ठोस सहभागिता के तौर पर देखा जाता रहा है। लेकिन यह भी सच है कि बीते कुछ सालों में इस मोर्चे पर एक अघोषित शिथिलता आई है। इसकी मुख्य वजह शायद यह है कि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में जैसे नए कूटनीतिक समीकरण बन रहे हैं, उससे भारत पूरी तरह निरपेक्ष नहीं रह सकता है। खासतौर पर तब जब किसी सामान्य उथल-पुथल से भी भारत के हित प्रभावित हो सकते हों।
शीतयुद्ध के बाद के दौर में वैश्विक परिप्रेक्ष्य में बेशक शांति और सहयोग का नारा मजबूत हुआ है, मगर अब भी अमेरिका और रूस के बीच प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जैसी खींचतान चलती रहती है, उसमें अलग-अलग ध्रुवों के संतुलन कभी भी नया आकार ले सकते हैं।
भारत इन संकेतों के मद्देनजर हमेशा सजग रहा है। यही वजह है कि एक ओर इसने जहां अमेरिका के साथ कई मोर्चों पर अपने संबंधों को नया आयाम दिया है तो दूसरी ओर रूस के साथ अपने पुराने और मजबूत रिश्तों पर भी आंच नहीं आने दी।
दरअसल, इस साल के आखिर में भारत और रूस के बीच सालाना शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। इस स्तर के आयोजन के लिए पूर्व तैयारी की जरूरत होती है, इसलिए दोनों विदेश मंत्रियों के बीच इस पहलू पर विशेष चर्चा हुई। लेकिन परमाणु, अंतरिक्ष और रक्षा के क्षेत्र में भारत और रूस के बीच जैसी भागीदारी का लंबा इतिहास रहा है, नई परिस्थितियों में इस मसले पर भी विचार स्वाभाविक ही है। इसके अलावा, ऊर्जा के क्षेत्र में भारत और रूस के बीच बढ़ते सहयोग के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों पर भी ठोस बातचीत हुई। खासतौर पर दुनिया अभी जिस तरह महामारी की चुनौती से जूझ रही है, उसमें कोविड-19 रोधी टीके के बारे में चर्चा वक्त की जरूरत है।
इसके समांतर लावरोव की यात्रा से पहले रूसी दूतावास के इस संदेश को ध्यान में रखने की जरूरत है कि शुभेच्छा, आम सहमति और समानता के सिद्धांतों पर आधारित सामूहिक कार्यों को रूस काफी महत्त्व देता है और टकराव एवं गुट बनाने जैसे काम को खारिज करता है। लेकिन पिछले कुछ समय से कूटनीतिक स्तर पर नए घटनाक्रम के बीच जिस तरह ‘क्वाड’ का गठन हुआ और प्रकारांतर से इसके जवाब में रूस और चीन की पहल पर क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद मंच का प्रस्ताव आया है, उसे कैसे देखा जाएगा! ऐसे में भारत को संतुलन अपने पक्ष में साधने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।
सौजन्य - जनसत्ता।
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