साझा लड़ाई (जनसत्ता)

देश में कोरोना संक्रमण की गंभीर होती स्थिति और बढ़ती चिंता के बीच कायदे से होना यह चाहिए था कि इस चुनौती से पार पाने के मसले पर सभी पक्ष अपने मतभेद फिलहाल किनारे रख देते और एक ठोस कार्यक्रम पर अमल सुनिश्चित करने की कोशिश की जाती। विडंबना यह है कि संक्रमण की वजह से लगातार बिगड़ते हालात के बावजूद केंद्र और अलग-अलग राज्य सरकारों के बीच इस तरह की खींचतान जारी है, जिससे अभी बचा जाना चाहिए। यों स्वास्थ्य सुविधाओं के मोर्चे पर जो सीमाएं और हकीकतें खुल कर सामने आई हैं, वे दूरगामी नीतियों पर एक ईमानदार पहल की मांग करती हैं, लेकिन त्रासदी की मौजूदा तस्वीर के मद्देनजर प्राथमिकता इस बात की होनी चाहिए कि इससे अभी कैसे निपटा जाए।

अस्पतालों से लेकर निजी पहलकदमियों के स्तर पर संक्रमण से लड़ने की कोशिश हो रही है, मगर इसका एक अहम हिस्सा टीकाकरण है, जिससे हालात में कुछ सुधार की उम्मीद बंधती है। दरअसल, आबादी के व्यापक दायरे तक टीकाकरण की पहुंच सुनिश्चित करना देश के लिए कोई आसान काम नहीं है। केंद्र और राज्यों की सरकारों को समूचे तंत्र के सहारे ही इस काम को आगे बढ़ाना होगा। लेकिन कुछ मुद्दों पर मतभेदों की वजह से इस मसले पर तालमेल का अभाव दिखता है या फिर आपसी समझ बनने के क्रम में है।

गौरतलब है कि देश भर में टीकाकरण का अभियान चल रहा है और बड़ी तादाद में लोगों को टीका लगाया भी गया है। लेकिन अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। फिलहाल जिस व्यवस्था के तहत टीका देने का काम चल रहा है, उसमें केंद्र सरकार की भूमिका मुख्य है। लेकिन आबादी के विस्तार को देखते हुए इस अभियान में राज्य सरकारों, निजी क्षेत्र और अन्य पक्षों को शामिल करना वक्त का तकाजा है।

कुछ राज्य सरकारों की ओर से टीके की आपूर्ति पर पाबंदी को लेकर सवाल उठाए गए थे और इससे संबंधित नीति को उदार बनाने की मांग की गई थी। जाहिर है, देश के लोकतांत्रिक ढांचे और स्थानीय जरूरतों के मुताबिक इस मांग के आधार पर विचार किया जाना जरूरी था। इसलिए केंद्र सरकार ने एक मई के बाद अठारह से पैंतालीस साल के लोगों तक टीकाकरण के विस्तार की घोषणा की और राज्यों, निजी अस्पतालों और उद्योगों को भी इस कार्यक्रम में शामिल होने की इजाजत दी गई। मकसद यह है कि इस साझा प्रयास से अठारह साल से ज्यादा के लोगों तक टीकाकरण का लाभ आसानी से पहुंचाया जा सके।

अफसोस की बात यह है कि इसके बावजूद कुछ पक्षों की ओर से इस पहल पर सवाल उठाए गए। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इस मसले पर स्थिति को स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों ने ही टीके की आपूर्ति पर से पाबंदियों को हटाने की मांग की थी; अब नई रणनीति राज्यों को केंद्र के कोटे से मुफ्त टीके की आपूर्ति की बात कहती है और साथ ही वे सीधे उत्पादकों से भी टीका खरीद सकते हैं।

जाहिर है, अगर कहीं इसकी कीमतों को लेकर किसी राज्यों को शिकायत होगी तो वे खुराकों की संख्या के आधार पर जरूरत को देखते हुए कीमतों पर बातचीत कर सकते हैं। कई तरह की सीमाओं के बावजूद देश ने इस क्षेत्र में संतोषजनक स्तर पर काम किया है और महज सौ दिनों के भीतर अब तक टीके की चौदह करोड़ से ज्यादा खुराकें दी जा चुकी हैं। कहा जा सकता है कि फिलहाल महामारी के विस्तार और इससे लड़ाई को लेकर जिस तरह की जटिलता सामने खड़ी है, उसमें सुरक्षित टीकाकरण के दायरे को बढ़ाने के लिए संगठित और साझा प्रयास की जरूरत है।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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