महामारी के दूसरे चरण में कोरोना विषाणुओं के फैलाव की रफ्तार बेहद चिंता पैदा करने वाली है। रोजाना संक्रमण का शिकार होने और मरने वालों की तादाद लोगों को डराने के लिए काफी है। दूसरी ओर, इसके इलाज के लिए अस्पतालों और वहां जीवन रक्षा से जुड़े संसाधनों की कमी की जो तस्वीर उभर कर सामने आई है, वह इस त्रासदी को कई गुना बढ़ाने वाली है।
सवाल है कि हालात यहां तक कैसे और क्यों पहुंचे! महामारी की घोषणा के बाद से ही इसके विषाणुओं के संक्रमण और इसके इलाज के संबंध में जिस तरह की जटिलता देखी गई, उसमें विशेषज्ञों की ओर से यह साफ बताया गया कि जब तक इसकी रोकथाम के लिए कारगर टीका सामने नहीं आ जाता है, तब तक इससे बचाव ही सबसे बेहतर उपाय है। बचाव के साधनों में मुंह और नाक को ढकने के लिए मास्क लगाने और समय-समय पर हाथ धोने को सबसे उपयोगी उपाय के तौर पर देखा गया। इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार ने अपनी ओर से हर स्तर पर कोशिशें कीं और काफी हद तक इसमें कामयाबी भी मिली।
विडंबना यह है कि इस सलाह पर अमल करने वाले तमाम लोगों के समांतर वैसे भी लापरवाह लोग रहे, जिन्होंने इन उपायों पर गौर करना जरूरी नहीं समझा। कई लोगों ने जहां आधे-अधूरे ढंग से मास्क लगाने की औपचारिकता निभाई तो बहुतों ने बिल्कुल ही मास्क नहीं लगाया और घर से बाहर काम से या बिना काम के इधर-उधर घूमते रहे। जबकि इस बीच कोरोना विषाणु के नए जटिल प्रकार ने अपने पांव पसारना जारी रखा। अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों की लापरवाही के बीच विषाणुओं को फैलने में कितनी मदद मिली होगी।
नतीजा यह है कि इससे संक्रमितों और मरने वालों की संख्या समूचे देश के सामने एक बड़ी चुनौती बन गई है। जबकि घर से बाहर निकलने पर सिर्फ मास्क लगाने जैसी छोटी सावधानी बरत कर इसकी रोकथाम में एक बड़ी भूमिका निभाई जा सकती थी। आज हालत यह हो गई है कि संक्रमण से लगातार बिगड़ते हालात के मद्देनजर सरकार को यह कहना पड़ गया कि अब ऐसा वक्त आ गया है जब लोग अपने घरों के भीतर भी मास्क पहनना शुरू कर दें। नीति आयोग के एक सदस्य के मुताबिक अगर घर के अंदर एक भी कोविड पॉजिटिव व्यक्ति मौजूद है, तो उसका मास्क पहनना जरूरी है, ताकि परिवार के दूसरे सदस्यों को संक्रमित होने से बचाया जा सके।
दरअसल, कोरोना विषाणु के संक्रमण का जो स्वरूप रहा है, उसके बारे में शुरुआत से ही यह बताया गया कि किसी संक्रमित के खांसने-छींकने, बात करने, चिल्लाने से मुंह के जरिए निकली सूक्ष्म बूंदों से इसके संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। इसे सिर्फ तभी रोका जा सकता है जब एक जगह बैठे दो या इससे ज्यादा लोग मुंह और नाक को ढकने वाले मास्क लगाए रहें। भले वह जगह घर या घर का दायरा ही क्यों न हो!
इस उपाय को फिलहाल अपने रोजमर्रा के सलीके में शामिल करना वक्त की जरूरत है, क्योंकि टीकाकरण अभियान के बावजूद यह देखा जा रहा है कि संक्रमण की रफ्तार में कमी नहीं आ पा रही है। इसका मतलब यह है कि विषाणु अपने पुराने या नए स्वरूप में काफी जटिल है और इससे बचाव के लिए इसके रास्ते में दीवार खड़ा करना ही सबसे कारगर उपाय है। मास्क वही कवच उपलब्ध कराता है। अगर लोग अपनी सुरक्षा और जान बचाने के मकसद से ही सही, मास्क का उपयोग ठीक से करते हैं, तो इससे सभी लोग खुद को संक्रमण की जद में जाने और दूसरों को संक्रमित करने से बचा पाएंगे।
सौजन्य - जनसत्ता।
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