कोरोना के साये में ( राष्ट्रीय सहारा)

जयसिंह रावत

महाकुंभ २०२१ के शुरू होने से पहले ही कुंभ नगरी हरिद्वार में एक बार फिर कोविड–१९ के उभार ने नई मुसीबत खड़ी कर दी है। यात्रियों के बोरोकटोक आवागमन से हरिद्वार में हर रोज दस–बीस मामले सामने आ रहे हैं। महाकुंभ के आयोजन से ठीक पहले हरिपुर कलां स्थित एक आश्रम में एक साथ ३२ कोरोना संक्रमित श्रद्धालु सारे पाए गए। देश–विदेश के यत्रियों की अनियंत्रित भीड़ कोरोना लेकर आ भी रही है और यहां से संक्रमण लेजा भी रही है। अतीत में भी कुंभ मेला और महामारियों का चोली दामन का साथ रहा है। १८९१ के कुंभ में फैला हैजा तो यूरोप तक पहुंच गया था। इसी प्रकार कई बार कुंभ में फैली प्लेग की बीमारी भारत के अंतिम गांव माणा तक पहुंच गई थी। 


रॉयल सोसाइटी ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एण्ड हाइजीन के संस्थापक सर लियोनार्ड रॉजर्स (द कण्डीसन इन्फुलेंयेसिंग द इंसीडेंस एण्ड स्पेड आफ कॉलेरा इन इंडिया) के अनुसार सन् १८९० के दाक में हरिद्वार कुंभ से फैला हैजा पंजाब होते हुए अफगानिस्तान‚ पर्सिया रूस और फिर यूरोप तक पहुंचा था। सन् १८२३ की प्लेग की महामारी में केदारनाथ के रावल और पुजारियों समेत कई लोग मारे गए थे। गढ़वाल में सन् १८५७‚ १८६७ एवं १८७९ की हैजे की महामारियां हरिद्वार कुंभ के बाद ही फैलीं थीं। सन् १८५७ एवं १८७९ का हैजा हरिद्वार से लेकर भारत के अंतिम गांव माणा तक फैल गया था। वाल्टन के गजेटियर के अनुसार हैजे से गढ़वाल में १८९२ में ५‚९४३ मौतें‚ वर्ष १९०३ में ४‚०१७‚ वर्ष १९०६ में ३‚४२९ और १९०८ में १‚७७५ मौतें हुयीं। ॥ कुंभ महापर्व पर करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों की आस्था की डुबकियों के साथ ही महामारियों का भी लम्बा इतिहास है। अकेले हरिद्वार में एक सदी से कम समय में ही केवल हैजा से ही लगभग ८ लाख लोगों की मौत के आंकड़े दर्ज हैं। अतीत में जब तीर्थ यात्री हैजे या प्लेग आदि महामारियों से दम तोड़ देते थे तो उनके सहयात्री उनके शवों को रास्ते में ही सड़ने–गलने के लिए लावारिस छोड़ कर आगे बढ़ जाते थे। अब हालात काफी कुछ बदल तो गए हैं मगर फिर भी कोरोना के मृतकों के शवों के साथ छुआछूत का व्यवहार आज भी कायम है। संकट की इस घड़ी में उत्तराखंड़ सरकार धर्मसंकट में पड़ गई है‚ क्योंकि वह न तो भीड़ को टालने के लिए कठोर निर्णय ले पा रही है और ना ही उसके पास करोड़ों लोगों को कोरोना महामारी के प्रोटोकॉल का पालन कराने का इंतजाम है। सरकार की ओर से नित नये भ्रमित करने वाले बयान आ रहे हैं। सरकार के डर और संकोच का परिणाम है कि कुंभ के आधे से अधिक स्नान पर्व निकलने पर भी सरकार असमंजस की स्थिति से बाहर नहीं निकल सकी। हालांकि शासन का हस्तक्षेप तब भी पंडा समाज और संन्यासियों को गंवारा नहीं था जो कि आज भी नहीं है। कुंभ और महामारियों का चोली दामन का साथ माना जाता रहा है। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की घुसपैठ के बाद १७८३ के कुंभ के पहले ८ दिनों में ही हैजे से लगभग २० हजार लोगों के मरने का उल्लेख इतिहास में आया है। 


हरिद्वार सहित सहारनपुर जिले में १८०४ में अंग्रेजों का शासन शुरू होने पर कुंभ में भी कानून व्यवस्था और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए उनका हस्तक्षेप शुरू हुआ। ॥ अंग्रेजों ने शैव और बैरागी आदि संन्यासियों के खूनी टकराव को रोकने के लिए सेना की तैनाती करने के साथ ही कानून व्यवस्था बनाये रखने और महामारियां रोकने के लिए पुलिसिंग शुरू की तो १८६७ के कुंभ का संचालन अखाड़ों के बजाय सैनिटरी विभाग को सौंपा गया। उस समय संक्रामक रोगियों की पहचान के लिए स्थानीय पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया। उसके बाद १८८५ के कुंभ में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बैरियर लगाए गए। सन् १८९१ में सारे देश में हैजा फैल गया था। उस समय पहली बार मेले में संक्रमितों को क्वारंटीन करने की व्यवस्था की गई। पहली बार मेले में सार्वजनिक शौचालयों और मल निस्तारण की व्यवस्था की गई। खुले में शौच रोकने के लिए ३३२ पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे‚ लेकिन पुलिस की रोकटोक के बावजूद लोग तब भी खुले में शौच करने से बाज नहीं आते थे और उसके १३० साल बाद आज भी स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद जब गांधी जी हरिद्वार कुंभ में पहुंचे थे तो उन्होंने भी लोगों के जहां तहां खुले में शौच किए जाने पर दुख प्रकट किया था॥। आर. दास गुप्ता (टाइम ट्रेंड ऑफ कॉलेरा इन इण्डिया–१३ दिसम्बर २०१५) के अनुसार हरिद्वार १८९१ के कुंभ में हैजे से कुल १‚६९‚०१३ यात्री मरे थे। विश्वमॉय पत्ती एवं मार्क हैरिसन ( द सोशल हिस्ट्री ऑफ हेल्थ एण्ड मेडिसिन पद कालोनियल इंडिया) के अनुसार महामारी पर नियंत्रण के लिए नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविन्स की सरकार ने मेले पर प्रतिबंन्ध लगा दिया था तथा यात्रियों को मेला क्षेत्र छोड़ने के आदेश दिये जाने के साथ ही रेलवे को हरिद्वार के लिए टिकट जारी न करने को कहा गया था। आर. दास गुप्ता एवं ए.सी. बनर्जी ( नोट ऑन कालेरा इन द यूनाइटेड प्रोविन्सेज) के अनुसार सन् १८७९ से लेकर १९४५ तक हरिद्वार में आयोजित कुंभों और अर्ध कुंभों में हैजे से ७‚९९‚८९४ लोगों की मौतें हुइÈ।


 हरिद्वार कुंभ में हैजा ही नहीं बल्कि चेचक‚ प्लेग और कालाजार जैसी बीमारियां भी बड़ी संख्या में यात्रियों की मौत का कारण बनती रहीं। सन् १८९८ से लेकर १९३२ तक हरिद्वार समेत संयुक्त प्रांत में प्लेग से ३४‚९४२०४ लोग मरे थे। सन् १८६७ से लेकर १८७३ तक कुंभ क्षेत्र सहित सहारनपुर जिले में चेचक से २०‚९४२ लोगों की मौतें हुइÈ। सन् १८९७ के कुंभ के दौरान अप्रैल माह में प्लेग से कई यात्री मरे। यह बीमारी सिंध से यत्रियों के माध्यम से हरिद्वार पहुंची थी। प्लेग के कारण कनखल का सारा कस्बा खाली करा दिया गया था। सन् १८४४ में प्लेग की बीमारी का प्रसार रोकने के लिए कंपनी सरकार ने हरिद्वार में शरणार्थियों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। सन् १८६६ के कुंभ में अखाड़ों और साधु–संतों ने भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया था। उसी दौरा ब्रिटिश हुकूमत ने हरिद्वार में खुले में शौच पर प्रतिबंध लगा दिया था। उसी साल कुंभ मेले के संचालन की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग को सौंपी गई थी।

सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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