दुनिया में असंख्य लोगों की मौत का कारण बन चुकी दो जानलेवा बीमारियों कैंसर और एड्स को अस्तित्व में आए एक शताब्दी से भी अधिक समय बीत चुका है। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी चिकित्सा जगत अभी तक इनका अचूक इलाज नहीं खोज पाया जबकि गत वर्ष दुनिया में एक और खतरनाक महामारी ‘कोरोना’ ने तबाही मचानी शुरू करके चिकित्सा जगत के लिए एक और चुनौती खड़ी कर दी है।
हालांकि कोरोना के प्रकोप में हाल ही में कुछ समय के लिए कमी आती दिखाई दी थी परंतु फिर एकाएक इसकी पहली लहर से भी अधिक खतरनाक दूसरी लहर आ जाने से इससे होने वाली मौतों में भारी वृद्धि हो गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह सोचना गलत होगा कि यह 2021 के अंत तक समाप्त हो जाएगा तथा 2022 तक भी इससे मुक्ति मिलने की संभावना नहीं है।
इसी को देखते हुए यूरोप, अमरीका, आस्ट्रेलिया और जापान के 24 वैज्ञानिकों के एक अंतर्राष्ट्रीय समूह ने कहा है कि संभवत: यह वायरस चीन में वुहान की प्रयोगशाला की बजाय वन्य जीवों से आया होगा। अत: इसकी उत्पत्ति जानने के लिए इस मामले में नए सिरे से शोध करने की जरूरत है।
विडम्बना यह भी है कि जानवरों से इंसानों में फैलने वाले ‘कोरोना’ वायरस की भांति और भी हजारों वायरस इंसानों में फैलने के लिए तैयार हैं। अत: इस मामले में बचाव के उपायों में तेजी लाने की आवश्यकता है। हालत यह है कि आम लोगों के साथ-साथ कोरोना पीड़ितों का इलाज करने वाले कोरोना योद्धा अर्थात डाक्टर, नर्सें आदि बड़ी संख्या में इसका शिकार हो रहे हैं। कोरोना की वर्तमान लहर में दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के 37 डाक्टर कोरोना से संक्रमित पाए गए हैं।
2 फरवरी, 2021 को राज्यसभा में सरकार ने बताया था कि भारत में इस वर्ष 22 जनवरी तक 162 डाक्टरों, 107 नर्सों और 44 आशा वर्करों की कोरोना से मौत हुई जबकि ‘इंडियन मैडीकल एसोसिएशन’ ने 3 फरवरी को इन आंकड़ों को कम बताते हुए कहा कि देश में कोरोना से 734 डाक्टरों ने प्राण गंवाए हैं।
धार्मिक समारोहों और चुनावी रैलियों में शामिल अधिकांश लोगों के मास्क न पहनने की शिकायतों में भारी वृद्धि हुई है। इसी के दृष्टिगत चुनावी राज्यों में चुनाव प्रचार में शामिल प्रत्येक व्यक्ति के लिए मास्क का इस्तेमाल अनिवार्य बनाने के लिए दायर जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।
इसी तरह की स्थिति को देखते हुए अधिकांश राज्यों में रात्रि कफ्र्यू तथा सार्वजनिक स्थलों आदि में प्रवेश के नए आदेश दिए गए हैं तथा मास्क न लगा कर सुरक्षा संबंधी नियमों का उल्लंघन करने वालों को जुर्माने किए जा रहे हैं। भारत में बढ़ रहे कोरोना के मामलों को देखते हुए ही न्यूजीलैंड आदि कुछ देशों में भारतीयों के प्रवेश पर अस्थायी रोक लगा दी गई है या वहां भारत से आने वाले यात्रियों को कुछ दिनों के लिए क्वारंटाइन किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि विकसित देशों के मुकाबले टीकाकरण में भारत इस समय पिछड़ गया है और देश की मात्र 6 प्रतिशत आबादी का ही टीकाकरण हो पाया है जबकि अमरीका में यह आंकड़ा 33 प्रतिशत है अत: स्थिति पर काबू पाने के लिए टीकाकरण तेज करना अत्यंत आवश्यक है। जो भी हो कोरोना के कारण लोगों का कामकाज प्रभावित हुआ है। कुछ राज्यों से प्रवासी श्रमिकों का पलायन एक बार फिर शुरू हो गया है और समाज के निचले वर्ग के लोगों की तकलीफें बहुत बढ़ गई हैं।इस तरह के हालात के बीच सरकार के लिए भी दुविधापूर्ण स्थिति बनी हुई है। यदि सरकार प्रतिबंध नहीं खोलती और शिक्षा संस्थानों तथा व्यापार व्यवसाय के चलने पर रोक लगाती है तो लोगों का आॢथक नुक्सान होता है और सरकार पर लोगों की रोजी-रोटी छीनने का आरोप लगता है।
दूसरी ओर यदि हालात कुछ सामान्य होते दिखाई देने पर सरकार प्रतिबंधों में कुछ ढील देकर कारोबारी एवं शिक्षा संस्थानों, मैरिज पैलेसों, सिनेमा घरों आदि को खोल कर गतिविधियों की छूट देती है तो उस पर संक्रमण फैलाने में योगदान देने का आरोप लगता है और मूल्यवान प्राणों का नुक्सान होता है। ऐसे में सरकार द्वारा किए जा रहे सुरक्षा प्रबंधों के बावजूद समस्या जारी रहने के कारण यही कहा जा सकता है कि : न खुदा ही मिला न विसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे।—विजय कुमार
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‘अभी तक कैंसर व एड्स का इलाज नहीं मिला’ ‘क्या कोरोना का मिल जाएगा!’ (पंजाब केसरी)
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