चंद्रकांत लहारिया, जन-नीति और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ
आज हम में से कुछ लोग 1980 और 1990 के दशकों को याद कर सकते हैं, जब डिप्थीरिया, पोलियो, काली खांसी जैसी टीकारोधी बीमारियों के शिकार बच्चों के फोटो वाले ‘टिन-प्लेट’ से बने पोस्टर गांवों और शहरों के प्रमुख स्थानों पर चिपके होते थे। स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों के बाहर तो ये विशेष तौर पर बड़े-बड़े आकार में लगाए जाते थे। देश में दरअसल, उन दिनों नौनिहालों को इन रोगों से बचाने के लिए सार्वभौमिक टीकाकरण अभियान शुरू किया गया था। आज लगभग चार दशक बाद इनमें से अधिकांश रोग कमोबेश खत्म हो गए हैं, और साथ-साथ टिन-प्लेट के ये पोस्टर भी। यह टीके का महत्व और उसकी ताकत दर्शाते हैं। अभी भारत में कोविड-19 टीकाकरण का जो बड़ा अभियान चल रहा है, वह पिछले चार दशकों में प्रशिक्षित वैक्सीनेटर (टीका लगाने वाले) की बड़ी संख्या, कोल्ड चेन प्वॉइंट्स और टीकाकरण के अन्य बुनियादी ढांचे में हुए अहम सुधार के कारण ही संभव हो पा रहा है। महामारी के दौरान पिछले एक वर्ष में हम यह बखूबी समझ चुके हैं कि सार्स कोव-2 अन्य वायरस से बिल्कुल अलग है। कई देशों में दूसरी व तीसरी लहर के रूप में यह महामारी लौटी है, और हर बार इसका असर विनाशकारी रहा। इसीलिए पूरी दुनिया ने शिद्दत के साथ इसके टीके का इंतजार किया। इस महामारी से पहले भी भारत विभिन्न टीकों के उत्पादन में एक अग्रणी देश रहा है। यहां कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों की तुलना में कम लागत पर उच्च गुणवत्ता के पारंपरिक टीके बनाए और मुहैया कराए जाते हैं। हमने कोविड-19 संक्रमण काल में भी दो टीकों को मंजूरी दी, जिनका अब इस्तेमाल हो रहा है। कुछ और टीके भी मंजूरी की राह पर हैं। देश के भीतर तो टीकाकरण अभियान चल ही रहा है, एक अग्रणी टीका-निर्माता देश होने के कारण हमने दुनिया भर के 80 से अधिक देशों को यह वैक्सीन उपलब्ध कराई। ऐसा करके, भारत ने दुनिया को संदेश दिया कि वैश्विक महामारी जैसी बड़ी चुनौती से एकजुट होकर ही लड़ सकते हैं।
बहरहाल, अपने यहां लोगों में झिझक की वजह से शुरुआती हफ्तों में टीकाकरण अभियान प्रभावित हुआ, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर आने के बाद और 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीके दिए जाने की मंजूरी के बाद वैक्सीन की मांग बढ़ने लगी है। हालांकि, अब इस अभियान में नई चुनौतियां भी नजर आ रही हैं। मसलन, कुछ राज्यों ने टीके की सीमित स्टॉक होने की सूचना दी है और केंद्र सरकार से अधिक आपूर्ति की मांग की है। खबरें यह भी आ रही हैं कि टीके की अनुपलब्धता के कारण कुछ जगहों पर टीकाकरण रुक गया है। रिपोर्टें ये भी हैं कि भारत में हर दिन टीके की जितनी खुराक लोगों को दी जा रही है, उत्पादन उससे काफी कम हो रहा है। चंद दिनों पहले ही खबर आई थी कि कोविड-19 टीके का कुल उत्पादन, अनुमानित आपूर्ति से कम हो गया है। लिहाजा, एक अग्रणी वैक्सीन निर्माता ने अपने उत्पादन को बढ़ाने के लिए आर्थिक मदद मांगी है। इसके अलावा, कुछ राज्य और समूह देश के सभी वयस्क नागरिकों को टीका लगाने की मांग कर रहे हैं। आज जब तमाम राज्य कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहे हैं, तब टीकाकरण अभियान की निरंतरता सुनिश्चित करने के साथ-साथ महामारी के खिलाफ ठोस रणनीति बनाने की दरकार है। जब संक्रमण-दर कम थी, तब स्वाभाविक तौर पर टीकाकरण अभियान पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया। हालांकि, दूसरी लहर के बीच इसे और अधिक लक्षित करना जरूरी है। अब जबकि संक्रमण के मामले बहुत तेजी से सामने आ रहे हैं, तब सात आयामी रणनीति का पालन किया जाना चाहिए। ये आयाम हैं- जांच, एकांतवास या क्वारंटीन, मरीज के संपर्क में आए लोगों की पहचान, इलाज, बचाव संबंधी व्यवहारों (मास्क पहनना, हाथ धोना व शारीरिक दूरी बनाना) का पालन, साझीदारी व जन-भागीदारी और कोविड-19 टीकाकरण अभियान। हमारा प्रयास न सिर्फ महामारी के बढ़ते प्रसार को थामना होना चाहिए, बल्कि हमें आगामी महीनों के लिए रणनीति भी बनानी चाहिए। इसके लिए इन सातों रणनीतियों पर मजबूती से अमल करने की जरूरत है।
अभी तमाम वयस्कों के लिए टीकाकरण शुरू करने से हमें कोई खास फायदा नहीं होगा। टीके का लाभ तभी मिलता है, जब उसकी दोनों खुराक तय समय पर ली जाए। ऐसे में, अगर किसी को आज टीके की पहली खुराक लगाई जाएगी, तो मई या जून के अंत तक वह पूरी तरह से सुरक्षित हो सकेगा। यानी, मौजूदा लहर का मुकाबला करने की यह समयानुकूल रणनीति नहीं है। इसीलिए अधिकाधिक लोगों को टीके लगाना और टीके को लेकर लोगों की हिचक को दूर करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। देश के सभी वयस्कों के लिए टीकाकरण शुरू कर देने से कुछ और स्वास्थ्यकर्मियों को इस काम में लगाना होगा, जिससे कोविड और गैर-कोविड अनिवार्य स्वास्थ्य सेवाओं की निरंतरता प्रभावित हो सकती है। फिर भी, इस महामारी की गंभीरता को देखते हुए चुनिंदा इलाकों या जिलों में अतिरिक्त जनसंख्या समूहों के टीकाकरण संबंधी विचार को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाना चाहिए। जाहिर है, टीकाकरण अभियान में जो चुनौतियां उभर रही हैं, उन पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। कोविड-19 रोधी टीके की आपूर्ति को सुनिश्चित किया जाना बहुत जरूरी है। टीकाकरण अभियान गति पकड़ चुका है और जिन्होंने पहली खुराक ले ली है, वे बड़ी संख्या में दूसरी खुराक लेने के लिए टीका-केंद्रों पर आने लगेंगे। इससे टीके की मांग तेजी से बढ़ जाएगी। आपूर्ति और मांग के मौजूदा अंतर को पहले के उत्पादन से कुछ समय के लिए ही पाटा जा सकता है, लिहाजा टीका आपूर्ति की व्यवस्था को कहीं अधिक टिकाऊ बनाने की दरकार है। यह वक्त पिछले एक साल की चुनौतियों से सीखने का भी है। जन-भागीदारी बढ़ाने के लिए व्यवहारमूलक और समाज विज्ञान संबंधी रणनीति का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 1980 के दशक की तरह आज टिन-प्लेट के पोस्टर तो नहीं दिख रहे, पर पिछले चार दशकों में टीकाकरण का जो ढांचा हमने खड़ा किया है, उसका फायदा हमें आज मिल रहा है। 2021 में हमें कोरोना आपदा को भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के अवसर के रूप में बदलना होगा। इसी से आने वाली पीढ़ियों को कहीं बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं दी जा सकेंगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सौजन्य - हिन्दुस्तान।
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