संक्रमण जिस तेजी से बढ़ रहा है, वह तो चिंता की बात है ही, लेकिन अब इससे भी ज्यादा विकट समस्या यह खड़ी हो गई है कि बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मी भी इसकी चपेट आते जा रहे हैं। राजधानी दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में सैंतीस चिकित्सक संक्रमण से ग्रस्त पाए गए। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भी करीब पचास स्वास्थ्यकर्मियों के संक्रमित होने की खबर है।
तीन दिन पहले ही लखनऊ की कस्तूरबा गांधी मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में उपकुलपति, रजिस्ट्रार सहित करीब चालीस शिक्षकों और कर्मचारियों में कोरोना संक्रमण निकला। यह गंभीर चिंता की बात इसलिए भी है कि अगर महामारी से लड़ने वाले असली योद्धा भी संक्रमण के शिकार होते जाएंगे तो कैसे हम इस जंग का मुकाबला कर पाएंगे! हालांकि अब तक बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मी टीकाकरण करवा चुके हैं। केजीएमयू और दिल्ली में जिन चिकित्सकों में संक्रमण मिला है, उनमें से ज्यादातर ने टीके की दोनों खुराकें भी ले ली थीं। जाहिर है, हमें अपने स्तर पर भी सावधानियां रखते हुए बचाव के सभी उपायों का कड़ाई से पालन करना होगा।
इस वक्त देश के लगभग सभी अस्पतालों में कोरोना मरीजों का इलाज किया जा रहा है। रोजाना सवा लाख से ज्यादा संक्रमितों के मिलने की सूरत में जाहिर है सरकारी और निजी अस्पतालों पर भारी दबाव है। खासतौर से जिन अस्पतालों को पूरी तरह से कोविड केंद्र में तब्दील कर दिया गया है, वहां स्थिति और भी गंभीर है। ऐसे में मरीजों की भीड़ के बीच चिकित्सक और इलाज में लगे अन्य कर्मचारी अपने को किस हद तक और कैसे बचा कर रखें, यह उनके लिए बड़ी चुनौती बन चुकी है। वैसे तो सभी चिकित्सक और कर्मचारी अपना बचाव करके चलने की कोशिश कर ही रहे हैं, फिर भी संक्रमण से बच पाना आसान नहीं दिखता। कई अस्पतालों में तो संक्रमितों की भीड़ का आलम यह है कि एक-एक बिस्तर पर तीन-तीन मरीज हैं। ऐसे में वार्डों, अस्पताल परिसर आदि की साफ-सफाई का क्या आलम होगा, कोई नहीं जानता। इसके अलावा अस्पतालों से रोजाना निकलने वाले कोविड कचरे जैसे मास्क, पीपीई किट आदि का निस्तारण भी गंभीर समस्या है। ये सब ऐसे कारण हैं जो संक्रमण को फैलाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
पिछले साल महामारी की शुरुआत के वक्त जब स्वास्थ्यकर्मियों में भी संक्रमण के मामले देखने को मिल रहे थे तो उसका कारण यह भी था कि वह पहला अनुभव था। लेकिन अब एक साल में हम काफी कुछ सीख चुके हैं। ऐसे में अगर अब बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित हो रहे हैं तो इसकी एक वजह यह भी है कि अस्पतालों में कोरोना मरीजों की सेवा में जुटे लोगों को संक्रमण से बचाने का जो मानक सुरक्षा घेरा होना चाहिए, वह कहीं न कहीं कमजोर है। इसके लिए कौन-से पुख्ता व उचित उपाय हो सकते हैं, इस पर गौर करने की जरूरत है। लंबे समय तक एक ही मास्क, पीपीई किट आदि का इस्तेमाल भी इस जोखिम को और बढ़ा रहा है।
इसके अलावा, कोरोना विषाणु के नए-नए स्वरूप भी संक्रमण को तेजी से फैलाने का कारण बन रहे हैं। इसलिए सबसे ज्यादा जोर मरीज की जांच, संपर्कों का पता लगाने, इलाज और टीकाकारण पर होना चाहिए। यह भी देखने में आया कि कई स्वास्थ्यकर्मियों ने अभी तक भी डर के मारे टीका नहीं लगवाया या उसकी दूसरी खुराक नहीं ली। अभी यह भी पक्का नहीं है कि टीकाकरण इस विकट संक्रमण का कोई पुख्ता इलाज है। यह भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि दो खुराक ले लेने के बाद भी संक्रमण नहीं होगा। लेकिन इतना तय है कि टीका काफी हद तक इस जोखिम से बचाएगा।
सौजन्य - जनसत्ता।
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