कोरोना की दूसरी लहर अभी थमी नहीं है कि तीसरी लहर की दस्तक सुनाई देने लगी है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में इस महीने सात हजार से अधिक बच्चों का कोरोना संक्रमित होना इसी दस्तक की आहट है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से देश में अब तक तीन लाख से अधिक लोग कोरोना के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। मरने वालों की असली संख्या सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक होगी। कोरोना ने पूरी दुनिया में कहर मचाया हुआ है। अमरीका और यूरोपीय देशों में भी साधन कम पड़ते नजर आए है। निस्संदेह भारत में भी साधनों की कमी है, लेकिन राजनीतिक दल सकारात्मक सुझाव देने की बजाय खामियां निकालने में ही व्यस्त हैं। वैज्ञानिक लम्बे समय से तीसरी लहर में बच्चों के संक्रमित होने की आशंका जता रहे हैं, लेकिन इससे निपटने की तैयारियां बयानों से आगे बढ़ती नजर नहीं आ रहीं।
पत्रिका के जमीनी सर्वे में सामने आया कि जयपुर ही नहीं, समूचे प्रदेश में बच्चों के उपचार की सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है। ऐसा बात नहीं है कि ये हालात अकेले राजस्थान में ही हों। पूरे देश के हाल लगभग ऐसे ही होंगे। यह हाल तो लगातार चेतावनियों के बाद है। कल्पना ही की जा सकती है कि तीसरी लहर आई तो हालत क्या होगी? दूसरी लहर ने राज्य सरकारों के दावों की जो पोल खोली, वह सबने देखी है। आइसीयू बेड तो दूर की बात, सामान्य बेड तक के लिए मंत्रियों की सिफारिशें भी काम नहीं आईं। सच्चाई तो यह है कि बेड होते, तो मरीजों को मिलते। राजस्थान की जमीनी हालत भयावह तस्वीर पैदा करने वाली है। कई जिलों में तो शिशु रोग अस्पताल भी नहीं हैं। जहां अस्पताल हैं वहां चिकित्सकों के आधे पद खाली पड़े हैं। तीसरी लहर की चेतावनी के बाद भी तैयारी वैसी नहीं हुई, जैसी होनी चाहिए। बाकी राज्यों से आ रही रिपोर्ट भी यहां से अलग नहीं है, जिससे चिंता होनी स्वाभाविक है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि तीसरी लहर से अब सामना न होने पाए, लेकिन बचाव की तैयारियां भी साथ-साथ होनी चाहिए। डॉक्टर एक दिन में तैयार नहीं हो सकते, लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था की रूपरेखा पर काम शुरू हो जाना चाहिए। पहली लहर में केंद्र सरकार की तरफ से सभी तथ्यों की जानकारी रोजाना मुहैया कराई जाती थी। राज्यों के साथ समन्वय भी बेहतर था। दूसरे दौर में समन्वय भी कमजोर पड़ा है और अफवाहें भी हावी हैं। कोरोना कितने भी रूप क्यों न बदल ले, लेकिन उसके आगे हाथ तो खड़े नहीं किए जा सकते। देश में फिलहाल कोरोना के मामले घट रहे हैं। इसके बावजूद यह समय बेफिक्री का नहीं, बल्कि तीसरी लहर से जूझने की कारगर रणनीति तैयार करने तथा अपनी कमियों को दूर करने का है।
सौजन्य - पत्रिका।
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