कोविड से लड़ाई को कमजोर करती अज्ञानता (अमर उजाला)

रामचंद्र गुहा  

इसी महीने आयुष ने विस्तृत सुझाव जारी किया था कि कोविड-19 के संकट के समय प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ाई जाए। मंत्रालय ने सुझावों की जो सूची जारी की थी, उसमें सुबह शाम नाक में तिल/नारियल का तेल या घी डालने का सुझाव भी शामिल था। यदि किसी को नाक में तिल या नारियल का तेल डालना पसंद नहीं, तो मंत्रालय ने विकल्प भी सुझाया :  तिल या नारियल का एक चम्मच तेल मुंह में डालें, उसे गटकें नहीं, बल्कि दो-तीन मिनट तक मुंह में डालकर हिलाएं और थूक दें और फिर गरम पानी से कुल्ला करें। खुद को कोविड से बचाने के मंत्रालय द्वारा सुझाए गए अन्य उपायों में च्यवनप्राश खाना, हर्बल चाय पीना, भाप लेना आदि शामिल हैं।



आयुष मंत्रालय की प्रचार सामग्री में बस यह लिखना बाकी रह गया कि उसकी सिफारिशों पर अमल करने वाले किसी भी देशभक्त को कोरोना नहीं होगा। लेकिन इसका आशय स्पष्ट था-यदि आप इन पारंपरिक तरीकों को अपनाते हैं, तो आप में वायरस के संक्रमण की आशंका कम हो जाएगी। सत्तारूढ़ दल के नेता और प्रचारक 21 वीं सदी की इस सबसे घातक बीमारी के पूरी तरह से अप्रमाणित इलाज की सिफारिश करने में संकोच नहीं करते। मेरे अपने राज्य में भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद विजय संकेश्वर ने ऑक्सीजन के विकल्प के रूप में नींबू का रस सूंघने की सिफारिश की। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, 'संकेश्वर ने हाल ही में प्रेस मीट में कहा कि नींबू का रस नाक में डालने से ऑक्सीजन का स्तर 80 फीसदी बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि उन्होंने देखा है कि इस घरेलू इलाज से दो सौ लोग ठीक हो गए, जिनमें उनके रिश्तेदार और मित्र शामिल हैं। इसी रिपोर्ट में बताया गया कि राजनेता की सलाह पर अमल करने के बाद उनके कई समर्थकों की मौत हो गई।



इस बीच, भाजपा शासित एक अन्य राज्य मध्य प्रदेश में संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने कहा कि हवन से महामारी को प्रभावी तरीके से खत्म किया जा सकता है। द टेलीग्राफ ने मंत्री को यह कहते हुए दर्ज किया, 'हम सभी से यज्ञ करने और आहुति देने और पर्यावरण को शुद्ध करने की अपील करते हैं, क्योंकि महामारी को खत्म करने की यह सदियों पुरानी परंपरा है।'


ऐसा लगता है कि मंत्री के 'परिवार' के सदस्यों ने उनकी सलाह को गंभीरता से लिया। व्यापक रूप से प्रसारित एक वीडियो में देखा गया कि काली टोपी और खाकी शार्ट पहने लोग किस तरह से हर घर में नीम की पत्तियां और लकड़ी जलाकर हवन कर रहे थे। एक और बेतुका दावा, महात्मा गांधी के हत्यारे को सच्चा देशभक्त मानने वाली भोपाल की विवादास्पद सांसद ने किया। उन्होंने कहा कि वह कोविड से इसलिए बची हुई हैं, क्योंकि वह रोज गोमूत्र पीती हैं। और भाजपा द्वारा सबसे लंबे समय से शासित गुजरात से खबर आई कि वहां साधुओं का एक समूह नियमित रूप से गोबर का लेप लगाता है, क्योंकि उसे लगता है कि इससे वे वायरस से बचे रहेंगे। सत्तारूढ़ दल के नेताओं द्वारा सुझाए गए संदिग्ध इलाज में एक दवा कोरोनिल भी शामिल है, जिसे पिछले साल सरकारी संत रामदेव ने दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों की मौजूदगी में जारी किया था, जिनमें से एक मंत्री अभी स्वास्थ्य एवं विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्री हैं।


आगे बढ़ने से पहले स्पष्ट कर दूं कि मैं चिकित्सा के बहुलतावाद में यकीन करता हूं। मैं यह नहीं मानता कि आधुनिक पश्चिमी चिकित्सा के पास मानव जाति की सभी ज्ञात बीमारियों का इलाज है। मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से जानता हूं कि आयुर्वेद, योग और होम्योपैथी जैसी गैर आधुनिक पद्धतियां अस्थमा, पीठ दर्ज और मौसमी एलर्जी जैसी व्याधियों को कम करने में भूमिका निभा सकती हैं, जिनसे मैं अपने जीवन के विभिन्न कालखंडों में पीड़ित रहा हूं।


कोविड-19 स्पष्ट रूप से 21वीं सदी का वायरस है और इससे वे लोग अनभिज्ञ थे, जिन्होंने आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी जैसी पद्धतियां विकसित की थीं। यह सिर्फ एक साल से थोड़े समय पहले की बीमारी है। इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि नीम की पत्तियां जलाने से या गोमूत्र पीने से या पौधों से तैयार गोलियां निगलने से या शरीर में गोबर का लेप करने से या नारियल तेल या घी नाक में डालने से बीमारी को दूर करने में कितनी मदद मिलती है या फिर कोविड-19 के संक्रमण का इलाज करने में ये कितने कारगर होते हैं।


दूसरी ओर, हमारे पास यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि दो निवारक उपाय कोविड-19 को दूर करने में बहुत मदद करते हैं। ये हैं सोशल डिस्टेंसिंग और टीकाकरण। और इन दो मामलों में हमारी गर्वित हिंदू सरकार वृहत राजनीतिक और धार्मिक जमावड़ों की मंजूरी देकर, बल्कि प्रोत्साहित कर बुरी तरह नाकाम हुई है। और न ही उसने वैक्सीन का घरेलू उत्पादन बढ़ाने या भारत में इस्तेमाल के लिए नई वैक्सीन के लाइसेंस देने में उत्सुकता दिखाई है, बावजूद इसके कि पिछले कई महीने से इस पर जोर दिया जा रहा है।


मैं वैज्ञानिकों के परिवार से आता हूं। मैंने अपने वैज्ञानिक पिता और वैज्ञानिक दादा से गालियों के रूप में जो शब्द सुने थे, वे थे, मम्बो-जम्बो (बेकार) और सुपर्स्टिशन (अंधविश्वास)। मेरे पिता और दादा अब नहीं हैं; लेकिन मैं यह सोचकर हैरत में पड़ जाता हूं कि मैं जिन विशिष्ट भारतीय वैज्ञानिकों को जानता हूं, वे सत्तारूढ़ दल के राजनेताओं द्वारा कोविड-19 का मुकाबला करने के लिए नीम-हकीमों को बढ़ावा देने के बारे में क्या सोचते होंगे। इन्हें सिर्फ कुछ केंद्रीय मंत्री या कुछ राज्य स्तर के नेता ही प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं। बल्कि संघ परिवार के सदस्य, जिनमें खुद प्रधानमंत्री शामिल हैं, वे भी साझा कर रहे हैं। गौर कीजिए, पिछले साल मार्च के आखिर में उन्होंने क्या किया था, जब महामारी ने पहली बार अपना असर दिखाना शुरू किया था; उन्होंने हमसे ठीक शाम को पांच बजे पांच मिनट तक बर्तन बजाने के लिए कहा; उन्होंने हमसे रात को नौ बजे ठीक नौ मिनट तक मोमबत्ती या टॉर्च से रोशनी करने के लिए कहा। जिस समय पूरे उत्तर अमेरिका और यूरोप में वायरस फैल रहा था, तब उसे दूर करने में इससे कैसे मदद मिलती, यह संभवतः सिर्फ प्रधानमंत्रियों के ज्योतिषियों और/ या अंकशास्त्रियों को पता रहो।


संघ परिवार के लिए तर्क और विज्ञान की जगह आस्था और कट्टरता ने ले ली है। पहली बार प्रधानमंत्री पद पर दावा करते हुए अपने अभियान में उन्होंने रामदेव के भीतर की आग और उनके संकल्प को लेकर उनकी खुलकर तारीफ की। उन्होंने कहा, मैं खुद को उनके एजेंडा के करीब पाता हूं। लिहाजा राज्य के सबसे पसंदीदा संत के रूप में रामदेव का उभार कोई इत्तफाक नहीं है।


अब जब वायरस उत्तर भारतीय ग्रामीण इलाकों में अंदर तक फैल गया है, कोई भी यह देख सकता है कि मेले को मिले केंद्र सरकार तथा भाजपा की राज्य सरकार के भारी समर्थन और नदियों में उतराते या फिर रेत में दबा दिए गए शवों के बीच कैसा सीधा संबंध है। करीब दो साल पहले अप्रैल, 2019 में मैंने अपने कॉलम में मोदी सरकार की विज्ञान के प्रति तिरस्कार की भावना के बारे में लिखा था कि कैसे उसने हमारे श्रेष्ठ वैज्ञानिक शोध संस्थानों का राजनीतिकरण कर दिया। मैंने लिखा, 'ज्ञान और नवाचार पैदा करने वाले हमारे बेहतरीन संस्थानों को व्यवस्थित रूप से कमजोर करके मोदी सरकार ने देश के सामाजिक और आर्थिक भविष्य को बुरी तरह कमतर किया है। मौजूदा भारतीयों के साथ-साथ अजन्मे भारतीय भी बुद्धि पर इस अनथक और बर्बर युद्ध की कीमत चुकाएंगे।'


यह कोविड-19 के आने से कई महीने पहले की बात है। अब वह हमारे बीच है, मोदी सरकार का बुद्धि पर अनथक युद्ध जारी है, मैंने भविष्य की जो पीड़ादायक तस्वीर देखी थी, वह और अधिक पीड़ादायक हो चुकी है। इस महामारी से लड़ते हुए भारत और भारतीयों को कठिन समय का सामना करना ही होता। केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ दल द्वारा तर्क और विज्ञान के प्रति प्रदर्शित की गई अवमानना ने इसे और मुश्किल बना दिया।

सौजन्य - अमर उजाला।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment