कोरोना ने जो हसीन सपने छीन लिए (हिन्दुस्तान)

अनंत मिश्र, चीफ कॉपी एडिटर, हिन्दुस्तान, लखनऊP 

कोविड-19 ने देश-दुनिया का कितना नुकसान किया, इसके सटीक आकलन में तो न जाने कितने साल लगेंगे, क्योंकि अभी तो इस पर जीत पाने के लिए ही जद्दोजहद हो रही है। लेकिन इसने हमारे आस-पास के समाज, उसके सपनों को कितनी बुरी तरह जख्मी किया है, इसकी मुनादी खबरों के ब्योरे कर रहे हैं। खासकर खेल-क्षेत्र को हुआ नुकसान इसलिए अधिक कचोटता है, क्योंकि इस दौर ने कई संभावनाओं को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दिया, तो कई प्रतिभाएं अब इससे मुंह मोड़ने लगी हैं। कालीकट के धावक जिन्सन जॉनसन 1,500 मीटर दौड़ के राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी हैं। पिछले रियो ओलंपिक और विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके हैं। साल 2019 के दोहा विश्व चैंपियनशिप के पहले उन्होंने जर्मनी में हुई ऑल स्टार मीट में जब विश्व चैंपियनशिप के लिए क्वालीफाई किया, तभी से उम्मीद बांधी जाने लगी थी कि जॉनसन टोक्यो ओलंपिक में जरूर शानदार प्रदर्शन करेंगे। लेकिन कोरोना-काल में न सिर्फ उनका अभ्यास बाधित हुआ, बल्कि वह खुद कोरोना पॉजिटिव हो गए। अब टोक्यो ओलंपिक खेलने का उनका सपना टूटता हुआ नजर आ रहा है। ऐसे कई खिलाड़ी हैं, जो पहली दफा खेलों के महाकुंभ में भारतीय तिरंगे के नीचे उतरना चाहते थे। कई ऐसे भी थे, जो इस बार का ओलंपिक खेलकर खेल जीवन को अलविदा कहना चाहते थे। इन सबकी उम्मीदों पर महामारी ने पानी फेर दिया है। बुधवार को प्रकाशित विशेष रिपोर्ट में इस अखबार ने कई खिलाड़ियों की दर्द भरी कहानियां प्रकाशित की थीं, जो अपना जौहर दिखाए बिना ही कुम्हलाने लगे हैं। कोरोना-काल ने उनके अभाव को विकराल बना दिया है। 

भारतीय खेल प्राधिकरण और भारतीय ओलंपिक संघ से जुडे़ संगठनों की मानें, तो देश भर में ऐसे खिलाड़ियों की संख्या पांच करोड़ से भी ज्यादा है, जो विभिन्न खेलों में अपना भविष्य बनाने के लिए जान लगाए हुए थे। भारतीय खेल प्राधिकरण के छोटे-बडे़ 250 केंद्रों में लगभग 10 हजार युवा खिलाड़ी प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। सिर्फ उत्तर प्रदेश की बात करें, तो करीब 2,200 चुनिंदा खिलाड़ी इस समय अलग-अलग स्पोट्र्स कॉलेज और हॉस्टल में ट्रेनिंग ले रहे थे। इनके अलावा, राज्य भर के स्टेडियमों में पांच लाख से ज्यादा खिलाड़ी विभिन्न खेलों में प्रशिक्षण ले रहे थे। पिछले एक साल से भी अधिक समय से इन सबका प्रशिक्षण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। एथलेटिक्स, वॉलीबॉल, फुटबॉल, हॉकी जैसे खेलों के ज्यादातर खिलाड़ी गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। चूंकि ग्रामीण इलाकों, कस्बों और छोटे जिलों के युवा महंगी शिक्षा नहीं ग्रहण कर सकते। ऐसे में, पिछले कुछ दशक से खेल इन्हें एक ऐसे क्षेत्र के रूप में दिखता रहा है, जहां अपनी शारीरिक क्षमता, प्रतिभा और हौसले के दम पर वे कुछ कर सकते हैं। ऐसे कई एथलीटों की संघर्ष-गाथा आज हजारों नौजवानों के लिए प्रेरणा-स्रोत हैं। मगर उम्मीदों की यह पौध कोरोना के कारण मुरझाने लगी है। किसी ने अभ्यास छोड़ दिया, तो किसी को कोरोना खा गया। कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के ज्यादातर खिलाड़ी इसलिए अपने सपनों से मुंह मोड़ने लगे हैं, क्योंकि उनके घरवाले अभ्यास के लिए जरूरी खुराक का भार नहीं उठा सकते। अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स कोच जसविंदर सिंह भाटिया के मुताबिक, खिलाड़ी अगर एक दिन अभ्यास न करे, तो उसके प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में, पिछले 14 महीने से देश के लाखों खिलाड़ियों का अभ्यास प्रभावित हो रहा है। कुछ प्रशिक्षक ऑनलाइन ट्रेनिंग देने का प्रयास कर रहे हैं, पर खेल ऐसी विधा है, जिसमें कोच जब तक सीटी लेकर मैदान में खड़ा नहीं होता, तब तक ट्रेनिंग ठीक से नहीं हो पाती। अभ्यास बंद होने से ये खिलाड़ी बहुत पीछे चले गए हैं। किसी को नहीं पता कि ये स्थितियां कब तक कायम रहेंगी? जिन खिलाड़ियों ने 2024 ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने का सपना संजोया था, उनका भी बहुत नुकसान हुआ है। उन खिलाड़ियों की ट्रेनिंग भी प्रभावित हो रही है, जिन्होंने ओलंपिक का टिकट हासिल कर लिया था। कई खेल संघों ने अपने खिलाड़ियों को ट्रेनिंग के लिए विदेश भेज दिया है। वहां विशेष स्थिति में उन्हें प्रशिक्षण मिल भी रहा है। मगर जो देश में हैं, उनके लिए प्रशिक्षण एक बड़ी चुनौती बन गया है। उन्हें अकेले ट्रेनिंग करनी पड़ रही है, जबकि ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर चुका हरेक खिलाड़ी चाहता है कि उसे बड़ी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का मौका मिले, ताकि वह अपने को आंक सके। पर कोरोना ने खेल गतिविधियों को ठप कर दिया है। ऐसे में, खिलाड़ियों को नहीं पता कि टोक्यो में वे किस पायदान पर खड़े होंगे। बडे़ खिलाड़ियों के लिए विशेषज्ञों-मनोविज्ञानियों के सत्र आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि वे अवसाद के शिकार न बनने पाएं। पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लेने का सपना पाले ताइक्वांडो खिलाड़ियों पर कोरोना की बिजली गिरी है। संक्रमण का दूसरा दौर न होता, तो उनका शिविर अप्रैल में शुरू हो जाता। दूसरी लहर के चलते उनका कैंप स्थगित करना पड़़ा। अधिकांश क्वालीफायर प्रतियोगिताएं  रद्द कर दी गई हैं। ऐसे में, लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता शटलर साइना नेहवाल, कदांबी श्रीकांत, एथलीट सुधा सिंह, स्टीपलचेजर पारुल चौधरी, पहलवान दिव्या काकरान, रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता पहलवान साक्षी मलिक जैसी खिलाड़ियों की ओलंपिक में हिस्सा लेने की उम्मीदें टूट चुकी हैं। जाहिर है, खेल संघों के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों को भी कोरोना से उपजी नई परिस्थितियों से अपने खिलाड़ियों को उबारने और टूट चुकी खेल प्रतिभाओं के साथ खड़े होने के लिए आगे होना होगा। जो खिलाड़ी खुराक के अभाव में खेल छोड़ने को मजबूर हुए, उनकी तुरंत मदद की जानी चाहिए। उनकी खुराक का बंदोबस्त किया जाए, ताकि हालात के सामान्य होने तक अपने-अपने घर पर रहते हुए वे अपनी ट्रेनिंग जारी रख सकें। तमाम क्षेत्रों को इस संकट काल में सरकार से आर्थिक मदद मिली है, इन खिलाड़ियों की भी सहायता की जाए। इस काम में देश के संपन्न उद्यमियों और निजी क्षेत्र को भी आगे आना चाहिए। इन खेल प्रतिभाओं को यह भरोसा दिलाना होगा कि उनका भविष्य दांव पर नहीं लगने दिया जाएगा। आने वाले अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में वे इस देश के लिए गौरवशाली पल अर्जित कर सकें, इसके लिए  जरूरी है कि उनके खेल पर विराम न लगे।

सौजन्य - हिन्दुस्तान।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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