में कोरोना के कहर के कारण मचे हाहाकार और भयावह oश्यों को कोई नकार नहीं सकता। किंतु जिस तरह की दहशत और दुनिया में कोरोना के समक्ष भारत की विफल राष्ट्र की जैसी ह्रदयविदारक तस्वीरें लगातार पेश की जाती रहीं उनसे करोड़ों लोग विस्मित थे। अब पता चल रहा है कि देश और विदेश की अनेक शक्तियां इस महाआपदा को भारत में हाहाकार और विदेशों में दुष्प्रचार के लिए जितना संभव हुआ उपयोग करतीं रहीं। ॥ टूलकिट दुष्प्रचार सामग्रियों के लिए सबसे बड़ा स्रोत होकर अभियान का एक प्रमुख अंग बन गया था।
इसे लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच जारी द्वंद्व को कुछ समय के लिए छोड़ दीजिए। टूलकिट का निरीक्षण करने के बाद साफ होता है कि इसके माध्यम से कोरोना आपदा को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी‚ केंद्र सरकार‚ भारत‚ महाकुंभ जैसे हिंदुत्व के सांस्कृतिक आयोजनों आदि की विकृत छवि बनाने का षड्यंत्र किया गया और कुछ समय तक इसके सूत्रधार सफल भी रहे। कांग्रेस ने एफआईआर दर्ज करा दिया है‚ जिसमें आरोप लगाया गया है कि टूलकिट भाजपा की साजिश है।
मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी गया है। टूलकिट पर काम करने वालों का मानना है कि यूपीए सरकार के दौरान शशि थरूर जैसे नेताओं ने राजनीति में इसके उपयोग की शुरु आत की। उसके बाद इंडिया अगेंस्ट करप्शन‚ अन्ना अभियान में इसका व्यापक उपयोग हुआ तथा टूलकिट ने आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने में प्रमुख भूमिका निभाई। तो यह सबके लिए हथियार बन गया। भारत में केंद्र से लेकर राज्य सरकारें‚ राजनीतिक पाÌटयां और नेताओं तक की आज अपनी सोशल मीडिया टीम है। पाÌटयां करोड़ों खर्च करतीं हैं।
आईटी सेल के नाम से प्रचारित ये टीमें २४ घंटे सक्रिय रहतीं हैं। ट्विटर‚ फेसबुक‚ व्हाट्सएप‚ यूट्यूब‚ अमेजॉन‚ टेलीग्राम आदि पर ये टीमें अपने अनुसार सामग्रियां झोंकतेे रहते हैं। पश्चिम बंगाल चुनाव में हमने भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच सोशल मीडिया और टूलकिट का राजनीतिक युद्ध देखा। आवश्यक नहीं कि कांग्रेस पार्टी टूलकिट बनाने का औपचारिक निर्देश दे। कांग्रेस की इस समय जो दशा है उसमें स्वयं नेता या कुछ नेताओं के समूह अपने स्तर पर ही राजनीतिक निर्णय ले रहे हैं।
इससे पार्टी की समस्याएं बढ़तीं हैं। इसके पीछे जो भी हो‚ मानवीय विनाश वाली महाआपदा को कैसे हथियार बनाकर राजनीति की जा सकती है इसका सबसे नीच उदाहरण टूलकिट के प्रायोजकों ने पेश किया है। दुर्भाग्य से सोशल मीडिया पर तो टूलकिट के माध्यम से फैलाया जा रहा झूठ व्यापक रूप से प्रसारित हो ही रहा था मुख्यधारा की मीडिया में पत्रकारों के बड़े वर्ग ने इन सूचनाओं‚ तथ्यों‚ तस्वीरों और विचारों को आगे बढ़ाया। इनमें से ज्यादातर ने जांचने की भी कोशिश नहीं की कि टूलकिट से जो कुछ दिए जा रहे हैं वाकई में सच है भी या नहीं। विदेशी अखबारों में भारत के श्मशानों में जलती चिताओं की ऐसी तस्वीरें छापी गइÈ और उन पर टिप्पणियां ऐसे लिखी गई मानो भारत में कोरोना के कारण केवल मौतें ही हो रही हैं। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स' के पहले पृष्ठ पर राजधानी दिल्ली में श्मशान घाट में जलती चिताओं की बड़ी तस्वीरें और रिपोटेÈ जिस ढंग से भारत में सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया में चलती रही अब उसका स्रोत समझ में आ रहा है।
लांसेट जैसी विज्ञान की पत्रिका की चीनी मूल की एशिया संपादक ने राजनीतिक लेख लिखकर मोदी के लिए अक्षम्य अपराध तक की बात कही और उसके वेबसाइट पर आते–आते भारत में न केवल सोशल मीडिया बल्कि मुख्यधारा की मीडिया की वेबसाइटों पर उसके अंश नजर आने लगे। ऐसे–ऐसे मनगढंत तथ्य टूलकिट के माध्यम से दिए गए‚ जिनसे साबित होता था कि मोदी सरकार अपनी फासिस्ट नीतियों के अंधेपन में धर्म के नाम पर महाकुंभ का आयोजन होने दे रही है और यह भारत में कोरोना के प्रसार का सबसे बड़ा कारण है। यह भी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोरोना के वर्तमान महाआपदा को फैलाने के एकमात्र खलनायक तथा विफलता के नायक हैं‚ न वो ठीक से उपचार का प्रबंधन कर रहे हैं और न बचाव का। विधानसभा चुनावों को लेकर ऐसी छवि बनाई गई जैसे केवल भाजपा चुनाव अभियान चला रही है और यह कोरोना के प्रसार का एक बड़ा कारण बन गया। सोशल मीडिया के माध्यम से उसे विश्व के अनेक देशों व वैश्विक संस्थाओं को भेजा जाता रहा। इन सबसे यह निष्कर्ष तो निकलता है कि गहन योजना द्वारा पूरा चक्र बनाया गया‚ जिसमें अलग–अलग समूहों की भूमिका तय रही होगी‚ अन्यथा इतने व्यवस्थित और आक्रामक तरीके से सब कुछ संचालित होता नहीं रहता।
कहा गया कि बाहर से आने वाले सामान उपयुक्त पात्रों तक पहुंच नहीं रहे हैं‚ उनके वितरण का प्रबंधन नहीं है‚ कई दिनों तक वे हवाई अड्डे पर ही पड़े रहते हैं। दुनिया भर की कई संस्थाओं ने भारत को लेकर जिस तरह की नकारात्मक रिपोटेÈ दी उनका स्रोत कौन हो सकता है; यह भी अब समझ में आ रहा है। कोई संस्था कह रहा है कि कोरोना की oष्टि से भारत सबसे असुरक्षित देश है। यह टूलकिट बंद हो चुका है लेकिन इसके फैलाए गए जहर का प्रभाव कायम है। भारत में १८ मई को कोरोना से हुई ४५२९ मौत को ‘न्यूयॉर्क टाइम्स' जैसे अखबार ने विश्व में एक दिन में सर्वाधिक मौत बता दिया। छानबीन करने पर तथ्य यह आया कि अमेरिका में ही १२ फरवरी को एक दिन में ५४६३ लोगों की मौत हुई। दुष्प्रचार में जो सच नहीं है उन्हें सच बनाकर प्रसारित किया गया है। विश्व में कोरोना के १६.५० करोड़ से ज्यादा मामलों में सबसे अधिक ३ करोड़ ८० लाख मामले केवल ३३ करोड़ आबादी वाले अमेरिका के हैं।
मरने वाले सबसे ज्यादा छह लाख वहीं के हैं। ब्राजील में मरने वालों की संख्या चार लाख पार गई है। तो भारत कैसे सबसे असुरक्षित देश हो गयाॽ इसी तरह कुछ और सच देखिए। प्रचारित होता रहा कि मोदी सरकार ने कोरोना को खत्म मानकर राज्यों को न आगाह किया ना उनके साथ संवाद बनया। कृषि कानूनों के विरु द्ध जारी आंदोलन को हिंसक बनाने में टूलकिट की भूमिका देश देख चुका था। अब इस टूलकिट ने कराहती मानवता के बीच अपराध किया है। टूलकिट का दुरु पयोग हम सबके लिए चेतावनी होनी चाहिए। विचार करना होगा कि भविष्य में केबल टूलकिट नहीं पूरे सोशल मीडिया में ऐसे दुरुûपयोगों को किस तरह रोका जाएॽ आज मोदी सरकार है कल कोई और सरकार होगी। इसलिए इसे रोका जाए। किसी संवैधानिक संस्था के विरुûद्ध ऐसे अभियान चलाए जा सकते हैं। ॥
सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।
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