देश के विभिन्न हिस्सों में कुछ प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों द्वारा आम नागरिकों के साथ की गयीं दुर्व्यवहार की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण एवं चिंताजनक हैं. इस भयावह आपदा के समय ऐसा रवैया बिल्कुल अस्वीकार्य है. एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अपने लंबे करियर में और उसके बाद ऐसे आपत्तिजनक व्यवहार के उदाहरण मैंने बहुत कम देखा है.
साल 1960 के बाद से अब तक के अनुभव के आधार पर मैं यह कह रहा हूं. कुछ अधिकारियों ने लोगों के साथ जैसा व्यवहार किया है, वह भारतीय प्रशासनिक सेवा, अन्य अखिल भारतीय सेवाओं और प्रशासन की संरचना की मर्यादा और उद्देश्य के पूरी तरह विरुद्ध है. एक मनुष्य के रूप में भी हमें वैसे आदर्शों का मान रखना रखना चाहिए, जो हमें मनीषियों ने सिखाया है. स्वामी विवेकानंद का कथन है कि दूसरों की सेवा भगवान की असीम सेवा है.
साल 1983 की एक घटना का उदाहरण देना चाहूंगा. एक बेहतरीन अधिकारी होते थे जी बंधोपाध्याय. अब सेवानिवृत्त हैं. उन्होंने एक प्रशिक्षु अधिकारी से पूछा कि वह आइएसएस में क्यों आया है. कुछ बातों के बाद उन्होंने कहा कि यदि तुमने इस सेवा में अधिकारों के लिए आये हो, तो तुम असफल साबित होगे, तुम बेईमान भी हो सकते हो. सिविल सेवा का जो सबसे बड़ा महत्व है, वह सेवा का भाव है और यह अवसर सेवा के लिए ही मिलता है.
मैंने अपने जीवन में अनेक ऐसे लोगों को देखा है कि उनका जीवन सेवा को समर्पित रहा. ऐसे एक अधिकारी होते थे सुधांशु कुमार चक्रवर्ती. उन्हें 14 सौ रूपये वेतन मिलता था, जिसमें से वे अपने खर्च के लिए चार सौ रुपये रखकर शेष राशि गरीब बच्चों की मदद में लगा देते थे. वे कहा करते थे कि गरीब लोग दोनों वक्त खाना नहीं खा पाते हैं, तो उनके सेवक होने के कारण हमें भी दोनों समय खाने का अधिकार नहीं है.
वे चौबीस घंटे में एक ही बार खाना खाते थे और बेहद सादगी से जीवन बिताते थे. सेवा से मुक्त होने के बाद वे 25 साल तक गांवों में रहकर सेवा ही करते रहे. जब तक शासन-प्रशासन में कार्यरत अधिकारियों में सेवा भाव नहीं रहेगा, तब तक ऐसे उत्तरदायित्व की मर्यादा रख पाना मुश्किल है.
छत्तीसगढ़, असम, उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने जो आचरण प्रदर्शित किया है, वह बेहद गलत है. यह संतोष की बात है कि अपने काम को अच्छी तरह से निभानेवाले कई अधिकारी हमारे पास हैं. महामारी में प्रशासन और पुलिस के कुछ कनीय अधिकारियों व कर्मियों के आचरण से भी क्षोभ हुआ है. हमें यह समझना होगा कि प्रशासनिक संरचना में जब तक मातहत कर्मियों का भरोसा और सहयोग नहीं मिलेगा, अच्छा प्रशासन दे पाना बेहद मुश्किल है.
मातहत कर्मियों को मार्गदर्शन देना और उनको अपने दायित्व को ठीक से निभाने की मनोवृत्ति भरना भी आवश्यक है. यदि हम उन्हें अच्छी तरह काम करने के लिए उत्साहित नहीं करेंगे और लोगों के संपर्क में नहीं रहेंगे, तो हम अपने काम में असफल हो जायेंगे. उल्लेखनीय है कि चाहे प्रशासनिक सेवा हो या अन्य किसी स्तर की सेवा हो, प्रशिक्षण के दौरान संवेदनशील होने, आम लोगों के प्रति सेवा भाव रखने तथा अपने कर्तव्य के समुचित पालन करने से संबंधित बातें अच्छी तरह बतायी और सिखायी जाती हैं. देश के विभिन्न संस्थानों में प्रशिक्षण देने के साथ कई अधिकारियों को विदेश भी भेजा जाता है.
मुझे कुछ महीनों के लिए इंग्लैंड भेजा गया था. बहुत सारे अधिकारी समाज सेवा से भी जुड़े रहे हैं. जो दुर्भाग्यपूर्ण व्यवहार कुछ अधिकारी आज प्रदर्शित कर रहे हैं, उसके लिए प्रशिक्षण को दोष नहीं दिया जा सकता है. यह उनकी कमी और गलती की वजह से हो रहा है. हमें यह हमेशा ध्यान में रखना होगा कि सेवा ही धर्म है.
अधिकारियों के गलत आचरण के बारे में बात करते हुए हमें यह भी याद रखना चाहिए कि राजनीतिक नेतृत्व के स्तर पर भी ह्रास हुआ है. मैंने अपने सेवा काल में 17 मुख्यमंत्रियों को देखा है, जिनमें कुछ बहुत उच्च कोटि के व्यक्ति थे. उनके नेतृत्व में अधिकारी भी अपने दायित्व को बेहतर ढंग से निभाने की कोशिश करते थे. उदाहरण के रूप में कर्पूरी ठाकुर, चंद्रशेखर सिंह, बिंदेश्वरी दूबे जैसे नेताओं को नाम लिया जा सकता है.
आज के संदर्भ में कहें, तो चिकित्सा या अन्य महत्वपूर्ण संसाधनों की बड़ी कमी है. कई राज्यों में अफरातफरी का आलम है. इसमें सुधार के लिए राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासनिक अधिकारियों को मिल-जुलकर काम करना चाहिए. इससे लोगों को जरूरी सहायता समय पर पहुंचाने में मदद मिलेगी और साथ ही प्रशासन पर दबाव भी कम होगा. देश के विकास के लिए भी ऐसा किया जाना आवश्यक है.
हालिया घटनाओं को देखते हुए मैं प्रशासनिक सेवा के कार्यरत अधिकारियों से यही निवेदन करना चाहूंगा कि अपने काम को सेवा भाव से निभाने के सुअवसर के रूप में देखें. बहुत कम लोग आइएस, आइपीएस जैसी शीर्ष सेवाओं में आ पाते हैं. इस बात को नहीं भूला जाना चाहिए कि यह एक अप्रतिम अवसर है देश, समाज और लोगों की बेहतरी में योगदान का. हमें राष्ट्र निर्माताओं की सीख और आदर्शों को हमेशा सामने रखना चाहिए. इस आपदा के संकट काल में हमें यह देखना चाहिए कि कैसे हम अधिक-से-अधिक लोगों को मदद और राहत पहुंचा सकें. यही हमारा सौभाग्य होगा.
सौजन्य - प्रभात खबर।
0 comments:
Post a Comment