वैक्सीन समानता के लिए हर विकल्प आजमाने का वक्त (पत्रिका)

जी.एस. संधू, (लेखक केंद्रीय वित्त सचिव रह चुके हैं)

भारत में कोरोना की दूसरी लहर के चलते तमाम सरकारें महामारी की भयावहता और इसके विकराल रूप से रूबरू हुई हैं। उन्होंने जान लिया कि इससे निपटने के लिए एकजुट होकर वैश्विक स्तर पर कदम उठाने का वक्त है। इस बीच भारत और अन्य विकासशील देशों को वैक्सीन की आपात आपूर्ति की जरूरत के चलते भारत व द. अफ्रीका की ओर से डब्ल्यूटीओ को भेजे गए उस प्रस्ताव पर अमरीका को रवैया बदलना पड़ा, जिसमें कोरोना संकट के मद्देनजर वैक्सीन व दवाओं के संदर्भ में बौद्धिक संपदा (आइपी) अधिकारों में अस्थायी ढील देने की मांग की गई थी। जर्मनी जैसे देशों की आपत्ति के बावजूद इस प्रस्ताव को मिल रहे समर्थन से इसके जल्द पारित होने की उम्मीद है।

वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में यह पहला कदम होगा, आगे तकनीक स्थानांतरण और 'ट्रेड सीक्रेट' साझा करने की भी जरूरत होगी। लेकिन यह समय है जब कुछ अन्य विकल्पों पर गौर किया जाना चाहिए। इनमें पहला है - वैक्सीन तैयार करने वाली कंपनी द्वारा वालंटरी (स्वैच्छिक) लाइसेंसिंग। जैसे ऐस्ट्राजेनेका ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ कोविशील्ड नाम से एक अरब खुराकें तैयार करने का अनुबंध किया और भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन उत्पादन में साझेदारी के लिए अन्य कंपनियों को आमंत्रित किया। इसके लिए तीन फार्मा सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) का चयन कर लिया गया है - हैफकिन बायोफार्मास्युटिकल (महाराष्ट्र), इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स (हैदराबाद) और भारत इम्युनोलॉजिकल्स एंड बायोलॉजिकल्स (बुलंदशहर)। इसी तरह रूसी प्रत्यक्ष निवेश फंड (आरडीआइएफ) ने छह भारतीय कंपनियों के साथ स्पूतनिक वी वैक्सीन की 85 करोड़ खुराक तैयार करने का करार किया है, जिनकी विश्व भर में आपूर्ति की जाएगी। ऐसे और भी अनुबंधों की जरूरत है।

दूसरा विकल्प सरकार की ओर से अनिवार्य लाइसेंसिंग का हो सकता है। बौद्धिक संपदा अधिकार संबंधी अंतरराष्ट्रीय संधि (टीआरआइपी) के तहत सरकार को अधिकार है कि वह महामारी या स्वास्थ्य आपातकाल में वैक्सीन और अन्य दवाएं बनाने के लिए किसी भी घरेलू कंपनी को अनिवार्य लाइसेंस जारी कर सकती है। हाल ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में ऐसी जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं जिनमें केंद्र सरकार को वैक्सीन, जीवनरक्षक दवाओं व वेंटिलेटर आदि के निर्माण के लिए अनिवार्य लाइसेंस जारी करने के निर्देश देने की मांग की गई। भारत ने एक ही बार इसका प्रयोग किया है जब नैटको फार्मा को बायर कंपनी की कैंसर रोधी दवा नेक्सावर का जनेरिक वर्जन बनाने के लिए अनिवार्य लाइसेंस दिया गया था। 2005 में बर्ड फ्लू महामारी की आशंका के चलते स्विस कंपनी रोशे की टैमीफ्लू (ओसेल्टामिविर) के लिए भी अनिवार्य लाइसेंस जारी करने पर विचार किया गया था, लेकिन रोशे, भारतीय कंपनियों को सब-लाइसेंस देने पर सहमत हो गई थी।

तीसरा विकल्प टीकों के पुनर्वितरण का है। 18 अरब अमरीकी डॉलर की फंडिंग के ऑपरेशन वार्प स्पीड के जरिए अमरीका ने फाइजर, मॉडर्ना और ऐस्ट्राजेनेका के साथ कोविड-19 वैक्सीन की जबर्दस्त क्षमता विकसित कर ली है। निर्यात पर प्रतिबंध लगा विकसित देश आबादी की जरूरत से दो-तीन गुना वैक्सीन जमा कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र समाचार के अनुसार, इसी के चलते अप्रेल 2021 तक 83% वैक्सीन उच्च से मध्यम आय वाले देशों को मिली हैं, जबकि निम्न आय वाले देशों को महज 0.3 प्रतिशत। अप्रेल 2020 में लाई गई कोवैक्स स्कीम भी विकसित देशों के उदासीन रवैये के चलते सार्थक नहीं हो पाई है। यह वक्त महामारियों से निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों से एक ऐसा सांचा तैयार करने का है, जो भविष्य में भी उपयोगी साबित हो सकता है।

सौजन्य - पत्रिका।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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