भरत कुमार चिल्लाकरी एवं सीता वांका
कोविड-19 की पहली लहर ने दक्षिण के राज्यों को भी बुरी तरह प्रभावित किया था। आंध्र प्रदेश में तब दैनिक संक्रमण 10,000 और पड़ोसी राज्य तेलंगाना में पांच-छह हजार के बीच था। आंध्र में ज्यादा जांच होने के कारण संक्रमितों की संख्या अधिक थी, जबकि तेलंगाना में जांच कम हो रहे थे। लेकिन स्वयंसेवी प्रणाली जैसी पहल और आवश्यक बुनियादी ढांचे की मजबूती से विगत फरवरी तक दोनों राज्यों में दैनिक संक्रमण घटकर सौ से भी कम रह गया था। राज्यों ने धीरे-धीरे लॉकडाउन हटा दिया, जिससे जीवन पटरी पर लौट आया। लोग बाहर निकलने लगे और कोविड प्रोटोकॉल की उपेक्षा करने लगे, नतीजतन मामले फिर तेजी से बढ़ने लगे।
कोरोना की दूसरी लहर के लिए लोगों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो राज्यों के राजनीतिक एजेंडे के साथ मिलकर बढ़ी, जिसके कारण संक्रमण की दर में वृद्धि हुई। टीकाकरण की शुरुआत तो हुई, मगर धीमी गति से, जबकि अनेक टीकाकरण केंद्र टीके की कमी के चलते बंद कर दिए गए। राज्य केंद्र से पर्याप्त वैक्सीन खरीदने में विफल रहे। आंध्र प्रदेश में नगरपालिका चुनाव और तेलंगाना में उप-चुनाव के दौरान बड़ा जमावड़ा हुआ, जिसमें कोविड के बुनियादी प्रोटोकॉल का उल्लंघन हुआ।
कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण का पता जल्दी नहीं चलता और यह बहुत तेजी से फैल रहा है। हैदराबाद में काफी कॉरपोरेट अस्पताल हैं, जहां दोनों राज्यों के लोग इलाज के लिए आते हैं। पर ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी और पर्याप्त चिकित्सीय सुविधाओं के अभाव से लोग परेशान हैं। ऑक्सीजन सिलेंडर और चिकित्सा सुविधाओं की लागत आसमान छू चुकी है। चिकित्सा देखभाल की कमी और सरकारी मशीनरी के अभाव में अनेक लोगों की जान चली गई। आंध्र प्रदेश में औसतन नौ से ग्यारह हजार संक्रमण के दैनिक मामले सामने आते हैं। अधिकारीगण कोविड नियमों की उपेक्षा कर मार्च तक चुनाव में व्यस्त रहे।
पहली लहर के दौरान जो कोविड सेंटर बनाए गए थे, वे बंद कर दिए गए। दैनिक मामलों में वृद्धि होते ही अस्पतालों में मरीजों की भीड़ बढ़ गई, जबकि कोविड देखभाल केंद्रों में आईसीयू बिस्तर, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन आपूर्ति जैसी जरूरी सुविधाओं का अभाव है। संबंधित सरकारी अधिकारी हालांकि अस्पतालों और बुनियादी ढांचों को बढ़ाने की बात करते हैं, पर जमीनी हकीकत कुछ और है। संक्रमण के मामलों में अचानक वृद्धि ने निजी अस्पतालों के लिए अवसर पैदा किया है, जो सरकार द्वारा कोविड के इलाज का खर्च तय किए जाने के बावजूद लोगों से लाखों रुपये वसूलते हैं। अलबत्ता जरूरी सुविधाओं के अभाव में जब निजी अस्पतालों में भी लोग जान गंवा रहे हैं, तब सरकारी अस्पतालों में गरीबों की स्थिति की कल्पना ही की जा सकती है। कोविड प्रोटोकॉल के बाद जांच और आइसोलेशन महत्वपूर्ण है। लेकिन जांच के मामले में आंध्र और तेलंगाना राज्य सरकारें सुस्त हैं।
केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जहां दैनिक एक लाख जांच होती है, वहीं आंध्र और तेलंगाना में दैनिक जांच 70 हजार के आसपास है। दोनों राज्य राज्य सच्चाई छिपाने के लिए जान-बूझकर ऐसा करते हैं। लॉकडाउन स्थायी समाधान तो नहीं है, पर यह जोखिम को कम कर सकता है और लोगों में जागरूकता ला सकता है। जहां तक संभव हो, कर्मचारियों को घर से काम करने की अनुमति देनी चाहिए और सिर्फ आपात सेवा को ही अनुमति मिलनी चाहिए। कोविड नियमों का उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए। हालांकि आंध्र प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी नहीं हुई, पर तेलंगाना में हुई है। ऐसे में राज्यों को संसाधनों को साझा कर लोगों की जान बचाना चाहिए। अगर एक-दो हफ्ते में स्थिति नहीं सुधरती है, तो एक-दो सप्ताह के लिए संपूर्ण लॉकडाउन लगाना बेहतर होगा।
-भरत कुमार चिल्लाकरी आईआईएफटी, कोलकाता कैंपस में असिस्टेंट प्रोफेसर, और सीता वांका हैदराबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं।
सौजन्य - अमर उजाला।
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