कतई खतरे में नहीं पडे़गी हमारी आजादी


डॉक्टर मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तुत बजट का मैं स्वागत करता हूं। भारत सरकार द्वारा आर्थिक संकट को हमारी जनता की बेहतरी के लिए एक ऐतिहासिक अवसर में बदलने का पहली बार गंभीर प्रयास किया गया है। डॉक्टर मनमोहन सिंह के बजट पर चर्चा और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान इस माननीय सभा के प्रत्येक सदस्य ने न केवल बजट और अभिभाषण के बारे में बोला, बल्कि हमारे देश पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के होने वाले प्रभावों पर भी बोला है। मैं इस बात को समझ नहीं पाता हूं कि मेरे वामपंथी मित्रों और कभी-कभी भारतीय जनता पार्टी के मित्रों में यह हीन भावना क्यों आ जाती है कि विश्व बैंक अथवा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण हमारे देश को पूर्णतया अस्थिर कर देंगे? कल इंद्रजीत गुप्त ने कहा कि ये ऋण हमारी आर्थिक संप्रभुता और राजनीतिक स्वतंत्रता को खतरे में डाल देंगे। परसों भारतीय जनता पार्टी के एक मित्र ने कहा कि सरकार ने हमारी संप्रभुता और यहां तक कि हमारी आत्मा विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को बेच दी है। मैं इस भ्रम को मिटाना चाहता हूं। इस समय हमारे पास 77 अरब डॉलर का विदेशी ऋण है, जिसमें से लगभग 42 अरब डॉलर हमने अंतरराष्ट्रीय मुद्र्रा कोष और विश्व बैंक से लिए हैं। पिछले 40 वर्षों से विश्व बैंक से ऋण लेने वालों में हम सबसे आगे रहे, केवल एक वर्ष को छोड़कर, जब चीन ने हमसे ज्यादा ऋण लिया, जब वह विश्व बैंक का सदस्य बना था। ... अत: पिछले 40 सालों से भारत ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से आसान और कड़ी शर्तों पर सबसे अधिक ऋण लिया है। उन्होंने हमें अस्थिर कैसे किया? उन्होंने हमारे लिए कौन सी समस्याएं पैदा कीं? ...आखिर हम किसका अनुसरण करें? हमें अन्य राष्ट्रों की गलतियों से भी सीखना चाहिए। 

...हमारे वामपंथी मित्र दूसरों की गलतियों से सीखना नहीं चाहते हैं। वे वही गलतियां बार-बार करना चाहते हैं। ... अब विश्व में साम्यवाद नहीं रह गया है। रूसियों और चीनियों ने उसे छोड़ दिया है, लेकिन हमारे वामपंथी मित्र अभी भी इसे भारत में चलाना चाहते हैं। लेकिन मैं उन्हें इसके लिए बधाई देता हूं कि उन्होंने पश्चिम बंगाल में इसे पूर्णतया छोड़ दिया है। मैं आपको बताता हूं कि बंबई के बड़े उद्योगपति और बहुरराष्ट्रीय ग्रुप कलकत्ता में ज्योति बसु से मिलकर तसल्ली महसूस करते हैं। मैं उन्हें बधाई देता हूं, क्योंकि पश्चिम बंगाल में आर्थिक नीतियों को पूर्णत: उदार कर दिया गया है। लेकिन इसमें क्या गलत बात है, यदि ऐसा पूरे भारत में हो? आप उन नीतियों को केवल पश्चिम बंगाल में ही क्यों लागू करना चाहते हैं? आप नहीं समझते हैं कि भारत आपका देश है? आप इन स्वतंत्रताओं को केवल पश्चिम बंगाल तक ही सीमित क्यों करना चाहते हैं?

...अनेक बातें कही गई हैं। यह तक कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से ऋण लेना अपने आपको बेचना है। ...मैं डॉ मनमोहन सिंह को बधाई देता हूं कि उन्होंने राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को पीछे छोड़ दिया है। इकोनॉमिक सर्वे में यह कहा गया है कि 1990 और 1991 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से दो ऋण लिए गए। वी पी सिंह की सरकार ने सितंबर, 1990 में 1,173 करोड़ रुपये का ऋण लिया। जनवरी, 1991 में चंद्रशेखर सरकार ने 3,334 करोड़ रुपये का दूसरा ऋण लिया। हमारे वामपंथी मित्र राष्ट्रीय मोर्चा सरकार का समर्थन कर रहे थे।...हमने भी उनका समर्थन किया और यह एक गलती थी। हमें इस पर पछतावा है। 

... आज थाईलैंड, इंडोनेशिया, बैंकाक और दक्षिण कोरिया जैसे देशों का वार्षिक निवेश हमारे 20 वर्षों के कुल निवेश से अधिक है। दुनिया के सभी देश अधिक से अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि हमने इसे बंद कर दिया है। इसे 40 से 51 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए मैं वित्त मंत्री को बधाई देता हूं। मेरे विचार से यह 51 प्रतिशत से भी अधिक होना चाहिए। वे हमारे लिए क्या कर सकते हैं? आपने कोई ऐसी कंपनी देखी है, जिसकी 90 प्रतिशत अंशधारिता है? मैं सीमेन्स और कॉलगेट कंपनी को जानता हूं। मुंबई में कई उद्योग हैं, उन्होंने 95 से 100 प्रतिशत अंशधारिता दी है। उन्होंने हमारे लिए क्या कर दिया?...इसलिए इस सरकार को अधिक विदेशी निवेश को अनुमति देनी चाहिए। केवल 51 प्रतिशत नहीं, बल्कि 51 प्रतिशत से भी अधिक। 

     (लोकसभा में दिए गए भाषण का अंश) 

सौजन्य -  हिन्दुस्तान।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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