Editorial: सत्तारूढ़ व्यक्ति अपने को जनसेवक समझे


यह सभा मंत्रिपरिषद् में अविश्वास प्रकट करती है। वर्तमान सरकार के विरुद्ध इस प्रस्ताव को लाते हुए मुझे दुख हो रहा है, क्योंकि इसे चलाने वाले लोग मेरे पुराने साथी हैं, परंतु कर्तव्य की भावना और आत्मा की पुकार सर्वोपरि है और इसमें भावुकता का प्रश्न नहीं है। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि देश के विकास के बारे में जनता और सरकार के विचार एक-दूसरे के पूर्णत: विपरीत हैं। ...देशवासी असंतोष की दलदल में फंसे हुए हैं।

हमारी गृह नीति में पंचवर्षीय योजनाओं का महत्वपूर्ण स्थान है, जिनके द्वारा जनता का आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान किया जाना है। इन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य शारीरिक जीवन संबंधी न्यूनतम जरूरत की पूर्ति करना है। महात्मा गांधी ने भी यही कहा था कि कांग्रेस निर्धन और पिछड़े हुए लोगों के उत्थान के लिए बनाई गई है, परंतु आज हम क्या देखते हैं? तृतीय योजना की ड्राफ्ट रिपोर्ट से मालूम होता है कि हमारे समाज में निम्नतर स्तर के लोगों की संख्या बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष, श्री ढेबर, ने स्वयं कहा था कि निर्धन लोग और निर्धन हो रहे हैं और धनी लोग और धनी हो रहे हैं। प्रधानमंत्री ने स्वयं स्वीकार किया था कि निर्धन लोगों की स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। इससे परिणाम यह निकलता है कि हमारी योजनाएं त्रुटिपूर्ण ढंग से तैयार की गई हैं और उनका क्रियान्वयन भी उचित प्रकार से नहीं हो रहा है। ...त्रुटिपूर्ण ढंग से योजनाएं तैयार करने के अनगिनत उदाहरण दिए जा सकते हैं। ...कृषि के मामले में भी कोई प्रगति नहीं हो पाई है। यह हमारी आर्थिक स्थिति है कि धन तो हम व्यय करते हैं, परंतु फल प्राप्त नहीं होता है। 

देश के प्रशासन-कार्यों में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है। यह भ्रष्टाचार केवल नीचे के स्तर पर न होकर ऊंचे स्तर पर भी है। स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि उनके दल के निर्धन लोग लखपति बन गए हैं...। कांग्रेस कमेटी की बैठक में एक वरिष्ठ सदस्य ने यह भी कहा था कि कुछ लाख रुपये व्यय करके वह मंत्रिपद प्राप्त कर सके हैं और कुछ करोड़ रुपये व्यय करके प्रधानमंत्री पद प्राप्त किया जा सकता है। ...अब आप विदेश नीति को लीजिए। हम यह दावा करते हैं कि हमारा देश एक तटस्थ देश है, परंतु स्थितियों के अनुसार, इस नीति में परिवर्तन लाना जरूरी है। आज चीन के आक्रमण के पश्चात सभी लोग समझते हैं कि हमारा देश एक युद्धरत देश है। जहां अपने देश की रक्षा का प्रश्न आ जाता है, तो वहां सैद्धांतिक विचारों को रास्ते में नहीं आने दिया जा सकता। ...हमने क्या किया? जब चीन ने तिब्बत को हड़प लिया, तब हम खामोश रहे। उसके पश्चात वर्ष 1954 में हमने उसी चीन के साथ पंचशील जैसे निरर्थक सिद्धांत को स्वीकार किया। ...जब हमने कांग्रेस सरकार को बार-बार चेतावनी दी चीन से खतरे के बारे में, तो हमें युद्धप्रेमी कह दिया गया। नवंबर, 1956 में मैंने फिर सरकार को चीनियों के आगे बढ़ने के बारे में और उनकी बदनीयती के बारे में चेतावनी दी, परंतु उसकी उपेक्षा की गई। हम तब सचेत नहीं हुए। ...प्रधानमंत्री और उनके कुछ साथी केवल अपने आप को ही देशभक्त समझते हैं। ...यह अब सर्वविदित है कि हमारे पास उस समय फौजियों के लिए कपडे़ नहीं थे, जूते नहीं थे...। सरकार अपनी विदेश नीति में असफल हुई है और गृह नीति में भी असफल हुई है। यह मत समझिए कि मैं यहां केवल 73 सदस्यों का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। मेरे समर्थन में कांग्रेस से कहीं अधिक मत है। ...प्रस्तुत मतदान की पद्धति के ही कारण 45 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाले दल को 75 प्रतिशत सीटें प्राप्त हुई हैं।

...आपातकाल केवल विरोधी पक्ष के ही लिए है कि यदि वे जनता की आवाज बुलंद करें, तो उन्हें देशद्रोही ठहरा दिया जाए। ...पहली बात तो यह है कि देश में सुशासन हो। ...राजनीतिक और प्रशासकीय सेवाएं ईमानदार, निष्पक्ष, कार्यकुशल, मेहनती और बुद्धिमान हों। सत्तारूढ़ व्यक्ति अपने को जनता का सेवक समझे। उच्च पदों पर भ्रष्टाचार और कर्तव्य की अवहेलना के प्रत्येक मामले की सक्षम न्यायिक अधिकारी द्वारा जांच कराई जाए और तत्क्षण कार्रवाईकी जाए।...

मैंचाहता हूं कि चीन के साथ हमारे राजनयिक संबंध भी समाप्त कर दिए जाएं। ...हमें अपने को देश की रक्षा करने और दुश्मन को खदेड़ने के लिए हर प्रकार से तैयार कर लेना चाहिए। इसके लिए हमें किसी भी देश से उचित शर्तों पर सैनिक व आर्थिक मदद लेनी चाहिए।

     (लोकसभा में दिए गए भाषण का अंश) 


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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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