वित्त मंत्रालय ने कहा है कि देशव्यापी लॉकडाउन के कारण मची उथलपुथल के बाद अब अर्थव्यवस्था सुधार की राह पर है। उसने इसके पक्ष में कुछ सकारात्मक घटनाओं का भी जिक्र किया है।
इनमें से कुछ बातें ध्यान देने लायक हैं। मंत्रालय ने कहा है कि रेलवे का मालवहन अप्रैल की तुलना में मई में 26 फीसदी बेहतर हुआ और राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली में खुदरा वित्तीय लेनदेन अप्रैल के 6.7 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर मई में 9.7 लाख करोड़ रुपये हो गया। पेट्रोलियम उत्पादों की खपत भी अप्रैल और मई के बीच 47 फीसदी सुधरी। इसी प्रकार ई-वे बिल के मूल्य में 130 फीसदी बेहतरी आई।
हालांकि सरकार के आंकड़े इसी बात को रेखांकित करते हैं कि लॉकडाउन के शुरुआती सप्ताह अत्यंत कड़ाई वाले थे। मई 2020 के विभिन्न संकेतक मई 2019 के स्तर से काफी नीचे हैं।
उदाहरण के लिए कई मामलों में ई-वे बिल मई 2020 में सालाना आधार पर 53 फीसदी कम रहे। इससे यही संकेत मिलता है कि सालाना आधार पर अर्थव्यवस्था में अभी भी गिरावट का रुख है। इस गिरावट की दर में जरूर कमी आई है। विनिर्माण और सेवा क्षेत्र का पीएमआई (पर्चेेजिंग मैनेजर्स सूचकांक) इस व्यापक सच को दर्शाता है क्योंकि अप्रैल में उनका मूल्य अधिक था लेकिन इसके बावजूद वह 50 अंक से कम था जबकि यह सीमा प्रबंधकों के बीच विस्तार की सहमति को दर्शाती है।
जिन कुछ क्षेत्रों में स्पष्ट सकारात्मकता नजर आई है उनमें उर्वरक की बिक्री भी एक संकेत है। यह क्षेत्र मई में सालाना आधार पर 100 फीसदी बढ़ा। ऐसा खरीफ मौसम के रकबे में इजाफे के चलते हुआ। यह रकबा गत वर्ष की तुलना में 40 फीसदी अधिक है। इस बीच ऐसी खबरें भी हैं कि इस वर्ष मॉनसून ज्यादातर मामलों में सामान्य रहेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था और देश के सबसे वंचित तबके के लोगों को कुछ हद तक सहायता पहुंचा सकता है।
यह बात ध्यान देने लायक है कि इसकी एक वजह ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम शक्ति की बढ़ी हुई उपलब्धता भी हो सकती है। लॉकडाउन के कारण बड़ी तादाद में श्रमिक अपने घरों को लौट आए हैं। सरकार ने कृषि क्षेत्र के सुधार को रेखांकित करते हुए कहा कि सन 2020 में गेहूं की खरीद ने रिकॉर्ड कायम किया है।
इससे पहले वर्ष 2012-13 में ऐसा रिकॉर्ड कायम हुआ था। बहरहाल ऐसी स्थिति में भी सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधीन रखे गेहूं और चावल के भंडार तक पहुंच आसान बनाने की अनिच्छा समझ से परे है।
मांग की बात करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि दैनिक उपभोग की उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन कुल क्षमता का 90 फीसदी है लेकिन पाम ऑयल और चाय जैसे कच्चे माल में अभी भी मांग में कमी दिख रही है। स्पष्ट है कि मांग कमजोर है।
बेहतर मॉनसून कुछ मददगार साबित हो सकता है। इसके कुछ संकेत वाहन क्षेत्र में देखने को मिल रहे हैं जहां ट्रैक्टर उद्योग में कारोबार मजबूत बना हुआ है और दोपहिया वाहन की मांग में सालाना आधार पर कम गिरावट नजर आई है।
कुल मिलाकर सरकार को फिलहाल बहुत आश्वस्त होने की आवश्यकता नहीं है। अहम क्षेत्रों में कोविड-19 के मामलों में कमी नहीं आ रही है और अर्थव्यवस्था में सीमित सुधार दिख रहे हैं तो ऐसे में महामारी को लेकर हमारी प्रतिक्रिया भी असंतोषजनक है।
ऐसे में सरकार को अति आत्मविश्वास से बचना चाहिए। अभी लंबा सफर तय करना है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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