Editorials: र्घावधि की आर्थिक दिशा पर रहे निवेशकों का ध्यान

  
आकाश प्रकाश
काफी अंतराल के बाद निवेशक एक बार फिर भारत में निवेश को लेकर सवाल कर रहे हैं। यह सवाल उठा है कि आखिर भारतीय इक्विटी बाजार में निवेश क्यों किया जाए? वैश्विक आवंटकों का प्रश्न है: क्या हमें भारत के लिए समर्पित निवेश करना चाहिए? पांच वर्ष के कमजोर प्रदर्शन और कमतर वृद्धि के बाद ऐसा होना ही था। कई निवेशक अब भारत में निवेश कम कर रहे हैं। यह छह वर्ष पहले की तुलना में एकदम उलट है जब अधिकांश निवेशकों को यकीन था कि भारत मजबूत वृद्धि की ओर बढ़ रहा है।

भारत में निवेश की वजह स्पष्ट हैं। एक लोकतांत्रिक देश जहां विधि का शासन है, इसका जनांकीय लाभ, आकांक्षी युवा वर्ग और विकसित उद्यमिता। आर्थिक वृद्धि और बाजार की आय में भी मजबूत संबंध हैं। उत्पादकता में सुधार की संभावनाओं को देखें तो भारत आज वहां है जहां चीन 20 वर्ष पहले था। कई गुणवत्तापूर्ण कंपनियों के साथ भारत हमेशा से निवेश लायक बाजार रहा है। अल्पावधि की बात करें तो महामारी के चलते वित्त वर्ष 2021 में भारत गिरावट के दौर से गुजर रहा है। अधिकांश पर्यवेक्षकों का मानना है कि सकल घरेलू उत्पाद में 2 से 5 फीसदी की गिरावट आएगी। वित्त वर्ष 2022 में वृद्धि की वापसी के साथ सुधार हो सकता है और शायद 2022 में हम उसी स्थिति में रहें जो स्थिति 2020 में गिरावट के बाद हो। यह दुनिया भर के आर्थिक रुझान जैसा ही है।

सबसे अहम इस बात पर विचार करना है कि एक बार महामारी से निपटने के बाद आने वाले दशक में देश की ढांचागत वृद्धि दर क्या रहेगी। क्या भारत अब 4-5 फीसदी की जीडीपी वृद्धि वाला बाजार रहेगा या फिर वह 7 फीसदी की वृद्धि दर पर वापसी करेगा? इस सवाल का जवाब ही तय करेगा कि निवेशक देश में निवेश करना चाहते हैं या नहीं और क्या वे भारत पर अतिरिक्त यकीन कर सकते हैं?

अल्पावधि के आंकड़ों पर चिंतित होने और यह सोचने के बजाय कि अगली तिमाही में अर्थव्यवस्था क्या और सिकुड़ेगी, निवेशक शायद ढांचागत वृद्धि के सवाल के जवाब तलाशना चाहेंगे। क्या देश की ढांचागत वृद्धि दर सुधारने के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं या हम उस वृद्धि को हमेशा के लिए गंवा चुके हैं? निवेशकों की प्रमुख पड़ताल यही है।

यह इतना अहम इसलिए है क्योंकि देश के विकास की गति सामने आने वाली अलहदा किस्म की आर्थिक दिक्कतों और अवसरों से सीधे जुड़ी हुई है। यदि भारत केवल 4 फीसदी की वास्तविक दर से विकसित होता है तो इसका अर्थ होगा 8 से 9 फीसदी की नॉमिनल जीडीपी वृद्धि। इस दर पर हम अपने सार्वजनिक ऋण और जीडीपी को स्थिर नहीं कर पाएंगे, न ही ज्यादातर गरीबों को बेहतर जीवन प्रदान कर सकेंगे। बेहतर बुनियादी ढांचा या स्वास्थ्य और शिक्षा प्रदान करने के लिए हमारे पास बेहतर कर राजस्व नहीं होगा, न ही क्रेडिट रेटिंग बेहतर में सुधार होगा। सीमित प्रति व्यक्ति आय के साथ हम खपत में भी पिछड़ जाएंगे। ऐसे में कोई निवेश क्यों करेगा? वृद्धि, आय, चर और रुपये ये सभी धीमे पड़ जाएंगे और निवेशकों को कमजोर प्रतिफल मिलेगा।

परंतु 7 फीसदी की वास्तविक जीडीपी दर पर हालात एकदम बदल जाएंगे और नॉमिनल वृद्धि दर 11-12 फीसदी हो जाएगी। नॉमिनल वृद्धि की उस दर पर हमारा सार्वजनिक ऋण अनुपात स्थिर हो जाएगा और धीरे-धीरे कम होने लगेगा। कर राजस्व बेहतर होगा और निवेश आएगा। प्रति व्यक्ति आय में इजाफा होने पर लाखों लोग गरीबी रेखा से ऊपर आएंगे, खपत बढ़ेगी, निवेश में इजाफा होगा और कारोबारी जगत का मुनाफा बढ़ेगा।

बीते कुछ वर्षों में देश में वृद्धि दर में काफी कमी आई है। कहा जा सकता है कि इसके लिए वित्तीय क्षेत्र की अस्थिरता और ढांचागत कमजोरी से निपटने में कमी जवाबदेह है।

सरकारी बैंकों में पूंजी की कमी है, उनका संचालन सही नहीं है और सरकारी ढांचे के कारण वे जोखिम लेने की स्थिति में नहीं हैं। कॉर्पोरेट डेट बाजार ध्वस्त हैं और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का मॉडल सवालों के घेरे में है। निजी बैंकों के आंकड़ों और गुणवत्ता को लेकर भी अविश्वास का माहौल है। देश का हर वित्तीय संस्थान अतिरिक्त  पूंजी की तलाश में है। आईएलऐंडएफएस मामले के बाद इस क्षेत्र की ढांचागत कमजोरी उजागर हो गई है।

इस क्षेत्र के सुधरे बिना वृद्धि में सुधार नहीं होगा। इसके लिए जरूरी कदमों के रूप में सरकारी बैंकों को पूंजी प्रदान करना, उनका आंशिक निजीकरण, एनबीएफसी की गुणवत्ता की समीक्षा और एक खराब बैंक आदि को टीकाकारों द्वारा बार-बार रेखांकित किया गया है। यहां नए विचारों की आवश्यकता नहीं है केवल क्रियान्वयन और राजनीतिक इच्छाशक्ति से बात बन जाएगी। अगर कोई 7 फीसदी की ढांचागत दर चाहता है तो उसे वित्तीय क्षेत्र को ठीक करना होगा। यदि व्यवस्था ही वृद्धि के लिए फंडिंग नहीं करेगी तो वृद्धि कैसे वापस आएगी?

बीते वर्षों में जो भी सुधार किए गए उससे अर्थव्यवस्था औपचारिक और मजबूत हुई है तथा पूंजी आवंटन सुधरा है। इनमें वस्तु एवं सेवा कर सुधार, ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता और अचल संपत्ति नियामक प्राधिकार आदि शामिल हैं। खराब कारोबारी समूह बाहर हो गए। इन कदमों से अल्पावधि में वृद्धि प्रभावित हुई है लेकिन आशा है कि आने वाले वर्षों में इससे सुधार आएंगे। यदि बेहतर वित्तीय स्थिति और प्रबंधन वाली कंपनियां अर्थव्यवस्था में होंगी तो उत्पादकता और वृद्धि दर भी सुधरेगी।

नीतिगत मोर्चे पर जहां काफी कुछ किया जाना है, वहीं सरकार ने पिछले कुछ महीनोंं में एक शुरुआत की है। कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने वाले कदम उठाए गए हैं। पहली बार निजीकरण को लेकर प्रतिबद्धता नजर आ रही है। कारोबारी सुगमता में सुधार बिजली क्षेत्र, स्थानीय वित्त और सार्वजनिक वितरण में सुधार राज्यों के अतिरिक्त ऋण हासिल करने की पूर्व शर्त बने हैं। आशा है ऐसे और कदम उठाए जा रहे होंगे। भारत कारोबार करने की दृष्टि से बहुत जटिल देश है और इसे प्रशासनिक और कारक बाजार सुधार की आवश्यकता है। कारोबारी जगत में सुधार काफी हद तक पूरा हो चुका है और अब वक्त है कारोबार को और स्थायित्व प्रदान करने का।

मुझे आशा है कि भारत 4 फीसदी वृद्धि दर वाली अर्थव्यवस्था नहीं है। युवाओं में अत्यधिक ऊर्जा और प्रतिभा है। तकनीक हमारे पक्ष में है। अर्थव्यवस्था के इन पहलुओं पर ध्यान देना बेहतर है, बजाय यह सोचने के कि वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी दो फीसदी घटी है या तीन फीसदी।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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