Editorials: कोविड-19 की चपेट में आए लोगों के लिए उम्मीद की एक नई किरण

      
  
देवांशु दत्ता 
कोविड-19 महामारी की चपेट में आए लोगों पर परीक्षण से यह पता चला है कि आसानी से उपलब्ध एक स्टेरॉयड गंभीर स्थिति वाले मरीजों में मौत की आशंका कम कर सकता है। डेक्सामेथासोन नाम का यह स्टेरॉयड ब्रिटेन में रिकवरी परीक्षण के दौरान 2,100 से अधिक कोविड मरीजों को दिया गया और उनकी तुलना उन 4,300 लोगों से की गई जिन्हें यह दवा नहीं दी गई थी। पता चला कि यह दवा गंभीर मरीजों की जान बचाने में मददगार है लेकिन बाकी मरीजों पर यह उतनी कारगर नहीं है। इस दवा के इस्तेमाल से वेंटिंलेटर पर रखे गए मरीजों की मृत्यु दर करीब एक-तिहाई कम हो गई जबकि ऑक्सीजन पर रखे गए मरीजों में मृत्यु दर करीब 20 फीसदी कम हुई।
यह परीक्षण करने वाले रिकवरी ग्रुप ने गत सप्प्ताह इन निष्कर्षों की जानकारी दी। लेकिन अभी तक इसके बारे में कोई शोधपत्र नहीं जारी किया गया है। ब्रिटिश सरकार ने अस्पताल में भर्ती कोविड मरीजों के लिए डेक्सामेथासोन दवा के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है।

रिकवरी ग्रुप विभिन्न इलाज पद्धतियों को परख रहा है। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी का न्यूफील्ड मेडिसन विभाग इस समूह को संचालित कर रहा है। समूह का वित्त पोषण करने वालों में वेलकम, गेट्स फाउंडेशन, ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय विकास विभाग, मेडिकल रिसर्च काउंसिल और पॉपुलेशन हेल्थ रिसर्च यूनिट शामिल हैं। रिकवरी ने अपने परीक्षण में लॉपिनेविर-राइटोनेविर, डेक्सामेथासोन, एजिथ्रोमाइसिन, टॉकिलिजुमैब और कोविड से उबर चुके पुराने मरीजों के खून से लिए गए प्लाज्मा का इस्तेमाल किया।

गंभीर हालत वाले कोविड मरीजों को 10 दिनों तक डेक्सामेथासोन की हल्की खुराक इंजेक्शन या मुंह के रास्ते दी गई। इन मरीजों की स्थिति की तुलना उन 4,321 मरीजों से की जाती रही जिन्हें यह दवा नहीं दी जा रही थी। परंपरागत इलाज वाले मरीजों के इस समूह में 28 दिनों के ही भीतर मृत्यु दर वेंटिलेटर पर रखे गए मरीजों में तो 41 फीसदी के उच्चतम स्तर तक पहुंच गई जबकि केवल ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीजों की मृत्यु दर 25 फीसदी रही और कृत्रिम श्वसन प्रणाली की जरूरत नहीं रखने वाले मरीजों में यह महज 13 फीसदी रही।

डेक्सामेथासोन दवा के इस्तेमाल ने वेंटिलेटर की जरूरत वाले मरीजों के मरने की आशंका एक-तिहाई तक घटा दी जबकि महज ऑक्सीजन पर आश्रित मरीजों की मृत्यु दर में इसने पांचवां हिस्सा कम कर दिया। उन मरीजों के लिए यह दवा थोड़ी भी फायदेमंद नहीं साबित हुई जो किसी भी तरह की कृत्रिम श्वसन प्रणाली पर निर्भर नहीं थे। डेक्सामेथासोन ने 28 दिनों के ही भीतर परीक्षण समूह वाले मरीजों की मृत्यु दर में 17 फीसदी तक की कमी ला दी।

वेंटिलेटर की जरूरत वाले हरेक आठ में से एक मरीज की मौत इस दवा के इस्तेमाल से टाली जा सकती है। कृत्रिम ऑक्सीजन की जरूरत वाले हरेक 25 में से एक मरीज को डेक्सामेथासोन दवा के इस्तेमाल से बचाया जा सकता है।

डेक्सामेथासोन एक ग्लूकोकॉर्टिको स्टेरॉयड है। कॉर्टिको स्टेरॉयड प्राकृतिक तौर पर एड्रीनल ग्रंथि उत्पन्न होते हैं और कैंसर जैसे गंभीर रोगों के इलाज में इनका इस्तेमाल किया जाता है। ये स्टेरॉयड स्वाभाविक प्रतिरोधक प्रतिक्रिया को कम कर देते हैं और शरीर में सूजन एवं एलर्जी-जनित परेशानियों को कम करने में मदद करते हैं। भारत में पहले से ही यह दवा सालाना करीब 100 करोड़ रुपये की बिकती है। जाइडस कैडिला का उत्पाद डेक्सोना इस स्टेरॉयड का सबसे चर्चित ब्रांड है जबकि वॉकहार्र्ट कंपनी इसे डेकडेन और कैडिला फार्मास्युटिकल्स इसे डेक्सासोन के नाम से बेचती है।

वायरस संक्रमण की वजह से होने वाली बीमारियों के इलाज में स्टेरॉयड का इस्तेमाल करना थोड़ा विवादित विषय रहा है क्योंकि इस दवा के कुछ बड़े नकारात्मक प्रभाव भी देखे गए हैं। स्टेरॉयड के इस्तेमाल से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली दब जाती है जिससे फेफड़े के ठीक से काम न करने से परेशान मरीजों को थोड़ी राहत महसूस होती है। परीक्षणों से पता चला है कि इस स्टेरॉयड के सेवन से होने वाले लाभ संभावित नुकसान पर भारी पड़ते हैं। गंभीर हालत वाले मरीजों में सकारात्मक नतीजे सामने आने और कम गंभीर मरीजों पर भी कोई प्रतिकूल असर नहीं होने से यही नतीजा निकलता है कि इसका इस्तेमाल कम गंभीर से अधिक गंभीर मरीजों में ही किया जाएगा, सामान्य मरीजों में नहीं।

कोविड के इलाज में कारगर दिख रही एकमात्र दवा रेमडेसिविर ही है। वायरल संक्रमण-रोधी इस दवा ने परीक्षणों के दौरान अधिकतर मरीजों के अस्पताल में रहने के दिनों को कम किया लेकिन मौत को टालने में इसकी कोई भूमिका नहीं रही। रेमडेसिविर की आपूर्ति कम होने के साथ ही इस पर नजर रखना भी मुश्किल है। डेक्सामेथासोन दवा दुनिया भर में दवा की दुकानों पर मिलती है और इसे टैबलेट के तौर पर आसानी से निगला जा सकता है।

रिकवरी ग्रुप से जुड़े महामारी-विशेषज्ञों ने कहा है कि ब्रिटेन में आठ कोविड मरीजों के इलाज पर 50 पौंड से भी कम लागत रह सकती है। सांस लेने से जुड़ी बीमारियों के इलाज में भी इस परीक्षण के नतीजे कारगर हो सकते हैं। कोविड जैसी दूसरी प्रतिरोधक-रोधी बीमारी के समान लक्षणों के इलाज में भी यह दवा असरदार हो सकती है।

रिकवरी ग्रुप के अग्रणी जांचकर्ता एवं न्यूफील्ड मेडिसन विभाग में उभरती संक्रामक बीमारियों के प्रोफेसर पीटर हॉर्बी कहते हैं, 'डेक्सामेथासोन वह पहली दवा है जिससे मृत्यु दर में सुधार दिखा है। सस्ता एवं सुलभ होने से यह दुनिया भर में लोगों की जिंदगी बचा सकती है।'

लेकिन यह दवा असल में कोविड-19 मरीजों का इलाज नहीं करेगी बल्कि गंभीर रूप से बीमार लोगों के जीवित रहने के अवसर जरूर बढ़ाएगी। जहां तक इलाज एवं टीके का सवाल है तो दुनिया भर में उसके लिए शोध जारी हैं।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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