महामारी ने बढ़ाई भूख की चुनौती, भुखमरी के शिकार लोगों की बढ़ी संख्या (अमर उजाला)

के सी त्यागी  

इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेता विश्व खाद्य कार्यक्रम के प्रमुख डेविड वेसली के अनुसार, कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। खासतौर से अफ्रीकी सहारा मुल्क यमन, कांगो, नाइजीरिया, दक्षिणी सूडान, और बुर्किना फासो आदि देशों में हिंसक संघर्ष और महामारी के संयोजन से भुखमरी के कगार पर पहुंचने वालों की संख्या कई गुना बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र के विगत जुलाई में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक, महामारी से होने वाली वैश्विक मंदी के कारण 8.3 से 13.2 करोड़ लोगों के सामने भुखमरी का संकट है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत भी बहुत सुविधाजनक स्थिति में नहीं है। यह 107 देशों की सूची में 94वें स्थान पर है। श्रीलंका 64वें, नेपाल 73वें, पाकिस्तान 88वें, बांग्लादेश 75वें और इंडोनेशिया 77वें स्थान के साथ भारत से आगे हैं। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के आकलन के मुताबिक, भारत की 14 फीसदी आबादी अल्प पोषित है। भारत में बौनेपन की दर 37.4 प्रतिशत दर्ज हो चुकी है। यह क्रॉनिक कुपोषण का लक्षण है। संतोषजनक यह है कि भारत में बाल मृत्यु दर में सुधार हुआ है, जो इस समय 3.7 प्रतिशत है।


‘विश्व खाद्य कार्यक्रम’ दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय सहायता करने वाला संगठन है, जो भूख के खिलाफ जंग लड़ता है और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देता है। जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए इस संगठन की नायाब और असरदार आधारभूत संरचना है। इनके परिवहन बेड़े में 5,000 ट्रक, 30 जहाज एवं 100 से अधिक विमान शामिल हैं, जिनके जरिये दुनिया के किसी भी हिस्से में जरूरतमंद लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने में सक्षम है। यह संस्था प्रतिवर्ष 15 अरब राशन पैकेट वितरण कर रही है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक दुनिया से भुखमरी और कुपोषण का खात्मा करने का संकल्प है। भारत सरकार भी भूख से लड़ने के लिए कई कार्यक्रम संचालित कर रही है। वर्ष 2013 में पारित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का लक्ष्य वंचितों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये 50 प्रतिशत शहरी व 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को बेहद सस्ती दर पर प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलो या प्रति परिवार 35 किलो अनाज उपलब्ध कराने का प्रावधान है। विश्व व्यापार संगठन के निर्देशों के इतर यह कार्यक्रम भारत की सबसे महत्वपूर्ण योजनाओं में एक है। कोविड-19 की महामंदी के दौरान कई करोड़ भारतीयों को मुफ्त राशन की व्यवस्था कराकर भारत दुनिया को हैरान कर चुका है।

भारतीय खाद्य निगम के भंडार में फिलहाल करीब 816.60 लाख टन खाद्यान्न उपलब्ध है। इनमें 530.31 टन गेहूं और 266.29 लाख टन चावल शामिल है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के लिए 200 लाख टन का आवंटन पहले ही सुरक्षित किया जा चुका है, जिसमें से 120 लाख टन का आवंटन हो चुका है। योजना के तहत 39 हजार टन दाल की भी व्यवस्था हो चुकी है। संकट के दौर में जरूरी है कि अधिक से अधिक खरीद सरकारी तंत्र द्वारा कराई जाए, क्योंकि निजी क्षेत्रों में की गई खरीद मुनाफाखोरी और जमाखोरी को ही बढ़ावा देगी। आत्मनिर्भर भारत के साथ किसानों को भी आत्मनिर्भर बनाने की नीतियों के क्रियान्वयन की आवश्यकता है। समय की मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि हो और इससे कम पर खरीद दंडनीय अपराध की श्रेणी में शामिल हो। 

चिंता की बात है कि ग्रामीण भारत के बड़े हिस्से में पौष्टिक आहार की समस्या बनी हुई है। ‘राष्ट्रीय पोषण संस्था’ की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की 63.3 प्रतिशत ग्रामीण आबादी की पहुंच पौष्टिक आहार से दूर है। अब भी 16.3 प्रतिशत लोग भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं। एक सर्वे के मुताबिक, 63.3 प्रतिशत ग्रामीण लोग पौष्टिक आहार पर खर्च नहीं कर पाते हैं। सामाजिक योजनाओं का गलत कार्यान्वयन, प्रभावी निगरानी का अभाव, स्वास्थ्य संस्थाओं की उदासीनता आदि कारण हैं, जिनकी वजह से खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य को हासिल करने में मुश्किलें आ रही हैं। 


(पूर्व सांसद एवं जद (यू) के प्रधान महासचिव) 


सौजन्य - अमर उजाला। 

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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