बड़ी न सही, लेकिन बहुत हो नौकरी (हिन्दुस्तान)

हरिवंश चतुर्वेदी, डायरेक्टर, बिमटेक  

                                              

पिछले नौ महीनों के कोविड काल में गिरावट के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था फिर उठ खडे़ होने के संकेत दे रही है। कई प्रकार की आर्थिक गतिविधियों में सकारात्मक रुख देखे जा रहे हैं। सुधार का यह अंदाजा इस बात से भी लगाया जाएगा कि देश के कॉलेजों व यूनिवर्सिटियों में प्लेसमेंट कैसे होंगे और युवा इंजीनियरों व एमबीए डिग्री धारियों को कैसी नौकरियां मिलेंगी?

उच्च शिक्षा संस्थानों में सारे काम अब धीरे-धीरे शुरू हो रहे हैं। अभी तक पठन-पाठन का काम ऑनलाइन कक्षाएं लगाकर किया जा रहा था, किंतु अब कैंपसों में विद्यार्थियों के लौटने का इंतजार किया जा रहा है। उधर, देश के शीर्षस्थ इंजीनियरिंग एवं प्रबंध संस्थानों में प्लेसमेंट की हलचल शुरू हो चुकी है। 1 दिसंबर, 2020 से पुराने आईआईटी संस्थानों में वर्चुअल ढंग से प्लेसमेंट का दौर शुरू हो चुका है। पहले की तरह कंपनियों के प्रतिनिधि विद्यार्थियों के इंटरव्यू व चयन के लिए कैंपस में नहीं आए हैं। इसकी तैयारियां कई महीने से चल रही थीं। आईआईटी मुंबई, कानपुर, खड़गपुर, मद्रास और दिल्ली से जो प्लेसमेंट की खबरें आ रही हैं, उनसे लग रहा है कि नियोक्ता कंपनियों में कोविड से पैदा हुए आर्थिक ठहराव के बावजूद कोई पस्तहिम्मती नहीं है।

आईआईटी संस्थान देश में ही नहीं, वरन विश्व भर में अपनी बेहतरीन शैक्षणिक गुणवत्ता से धाक जमा चुके हैं। नियोक्ताओं के लिए आईआईटी और आईआईएम सबसे ज्यादा आकर्षण के केंद्र होते हैं। वर्ष 1951 में आईआईटी, खड़गपुर का उद्घाटन जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने किया, तब उन्होंने अपने भाषण में उम्मीद जताई थी कि ये संस्थान एक दिन भारतीय अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण की नींव बनेंगे। आजेउस सपने के सच होने से इनकार नहीं किया जा सकता।

आईआईटी, खड़गपुर की तरह आईआईटी, मुंबई इंजीनियरिंग के शीर्ष संस्थानों में गिना जाता है। इसकी स्थापना 1958 में हुई थी और यहां प्लेसमेंट के लिए देश-विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियां आती हैं। प्लेसमेंट के पहले दिन ही माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, एपल, बीसीजी जैसी अनेक विश्वस्तरीय कंपनियों को देखा गया। 2020-21 के प्लेसमेंट सीजन के पहले दो दिन में 35 कंपनियों ने 400 नौकरियां बांटीं और सोनी, जापान ने 1.63 करोड़ रुपये (करीब 13 लाख रुपये मासिक) का वार्षिक पैकेज दिया, जो सर्वाधिक रहा।

अगले कुछ महीनों तक करोड़ों रुपये के पैकेज दिए जाने की खबरें अखबारों व टीवी चैनलों पर चर्चा का विषय बनती रहेंगी, लेकिन हमें यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि ऐसी ही मोटी तनख्वाह आईआईटी संस्थानों में तमाम विद्यार्थियों को मिलती होगी। मिसाल के तौर पर, अभी तक की बात करें, तो आईआईटी, मुंबई का औसत पैकेज करीब 16.06 लाख रुपये वार्षिक रहा है, जो पिछले साल 20.08 लाख रुपये था। आईआईटी, मुंबई का वार्षिक पैकेज ऊंचा इसलिए भी रहता है, क्योंकि वहां प्लेसमेंट के लिए ज्यादा विदेशी कंपनियां आती हैं। 

लेकिन करोड़ रुपये के पैकेज की उत्साहवद्र्धक खबर से हमें अभिभूत होकर उन तथ्यों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए, जो भारत में उच्च शिक्षा के कटु विरोधाभासों को उजागर करते हैं। देश के 4,800 इंजीनिरिंग कॉलेजों में सभी जगह यह नजारा नहीं मिलेगा। पिछले कुछ वर्षों में इंजीनियरिंग-शिक्षा में संकट लगातार बढ़ा है, इसके कई कारण हैं। सैकड़ों इंजीनियरिंग कॉलेज या तो बंद हो चुके हैं या बंदी के कगार पर हैं। एआईसीटीई उन कॉलेजों की मान्यता भी रद्द कर रही है, जो न्यूनतम संख्या में भी दाखिले नहीं कर पा रहे हैं। 

अभी देश के 4,800 इंजीनियरिंग कॉलेजों में करीब 15 लाख सीटें हैं। सवाल यह है कि भारत की इंजीनियरिंग शिक्षा में ऐसी स्थिति क्यों आई? वर्ष 2007 तक देश में इंजीनियरिंग कॉलेज धड़ाधड़ खोले जा रहे थे, किंतु 2008 की विश्व व्यापी मंदी के बाद इसमें अचानक ब्रेक लग गया। पिछला दशक (2010-2020) इंजीनियरिंग शिक्षा के लिए मंदी का दौर ही कहा जाएगा। अब हम अगर रोजगार के बाजार में इंजीनियरिंग की नौकरियों के रुझान की बात करें, तो सिर्फ कंप्यूटर साइंस और आईटी जैसी ब्रांचों में ही नौकरियां मिल रही हैं। सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और केमिकल इंजीनियरिंग में न तो दाखिले हो रहे हैं और न ही ज्यादा नौकरियां मिल रही हैं।

देश के हजारों इंजीनियरिंग कॉलेज नियोक्ताओं और विद्यार्थियों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे। ये कॉलेज दाखिले के समय जो भी वायदे करें, पर यहां के विद्यार्थियों को 15-20 हजार रुपये मासिक वेतन की नौकरियां ही मिल पाती हैं। इन कॉलेजों के पास न तो अच्छे शिक्षक हैं और न इन कॉलेजों के पास उद्योग-धंधे हैं। 

आईआईटी संस्थानों की श्रेष्ठ गुणवत्ता सराहनीय है, किंतु यह भारत की इंजीनियरिंग शिक्षा का एक बहुत छोटा हिस्सा है। वर्ष 2019 तक सभी 23 आईआईटी संस्थानों में 11,277 सीटें थीं, जो जेईई एडवांस्ड परीक्षा में बैठने वाले 0.6 प्रतिशत परीक्षार्थियों को ही मिल पाईं। हर साल करीब नौ लाख विद्यार्थी जेईई परीक्षा में बैठते हैं। वर्ष 2020 में 8.58 लाख परीक्षार्थियों ने जेईई का आवेदन पत्र भरा था, लेकिन कोविड के कारण 6.35 लाख (74 प्रतिशत) ही परीक्षा दे पाए।

देश के 4,800 इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्लेसमेंट कुछ महीने बाद शुरू होंगे। देखना है, कंपनियां इस बार कितने युवा इंजीनियरों को रोजगार दे पाती हैं? आज के हालात में जरूरी है कि केंद्र सरकार कॉरपोरेट जगत के कर्णधारों से बात करे, ताकि लाखों इंजीनियरों को रोजगार मिल सके। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कोई ऐसी वित्तीय योजना घोषित कर सकती हैं कि सिर्फ इस साल जो कंपनी इंजीनियरों की भर्ती करेगी, उसे इसके लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी। बीटेक परीक्षा पास करने वाले लाखों विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों पर शिक्षा ऋण भी होगा। जिन इंजीनियरों को रोजगार न मिल पाए, उनके ऋण भुगतान को तब तक स्थगित किया जा सकता है, जब तक कि उन्हें रोजगार न मिल जाए। शिक्षा मंत्रालय को इंजीनियरिंग शिक्षा के पुनरुत्थान के लिए एक विशिष्ट योजना बनानी चाहिए। 1990 के दशक में विश्व बैंक से इन कॉलेजों को आधुनिकीकरण के लिए कई वर्षों तक आर्थिक सहायता मिली थी, जिसके अच्छे नतीजे सामने आए थे। एक ही स्थान पर स्थित अनेक इंजीनियरिंग कॉलेजों का विलय कर एक मजबूत इंजीनियरिंग संस्थान बनाना भी कारगर हो सकता है। इंजीनियरिंग संस्थान देश के भविष्य की आधारशिला हैं। 1950-60 के दशकों में अगर हमारे आईआईटी संस्थान अस्तित्व में न आए होते, तो आज हमारा आईटी उद्योग 100 अरब डॉलर के कारोबार के साथ विश्व भर में नामचीन नहीं होता।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

सौजन्य - हिन्दुस्तान।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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