देश में बेचे जा रहे तमाम जाने-माने ब्रैंडों के शहद में शुगर सिरप की मिलावट की खबर न केवल चौंकाने वाली बल्कि चिंताजनक भी है। इन ब्रैंडों ने स्वाभाविक रूप से इस खबर को एक स्वर में गलत बताया है, लेकिन अब तक उपलब्ध तथ्यों की रोशनी में आशंकाएं अभी खत्म नहीं हुईं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने जितनी मेहनत और धैर्य के साथ इस मामले की एक-एक परत खोली है, उसकी तारीफ होनी चाहिए। देश के बाजारों में बिकने वाले शहद के इन नमूनों की जर्मनी की एक प्रतिष्ठित लैब में करवाई गई जांच से न सिर्फ मिलावट का किस्सा उजागर हुआ, बल्कि देश में शहद की बढ़ती बिक्री के बावजूद मधुमक्खी पालकों के घटते कारोबार की गुत्थी भी इससे सुलझ गई।
गौरतलब है कि शहद में मिलाया जाने वाला यह शुगर सिरप चीन से मंगवाया जाता है और इसे बनाने वाली चीनी कंपनियों की वेबसाइटें दावा करती हैं कि भारतीय एजेंसियां इसकी मिलावट को नहीं पकड़ सकतीं। चीन से हमारे रिश्तों में पिछले दिनों आई कड़वाहट के बाद चीनी माल के बहिष्कार की मांग काफी तेज हुई। दीवाली पर चीनी पटाखों और लाइट्स के बहिष्कार का नियमित आह्वान करने में ऐसे ब्रैंड्स भी आगे दिखते हैं जिनके नाम शहद में चीनी शुगर सिरप मिलाने के आरोप में शामिल हैं। शहद सिर्फ स्वाद या शौक की चीज नहीं, बाकायदा एक हेल्थ प्रॉडक्ट है।
कोरोना के दौर में लोगों ने खास तौर पर इसे अपनाना शुरू किया क्योंकि बताया जा रहा है कि इससे शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। ऐसे में बाजार में शुद्ध शहद बताकर बेची जा रही शुगर सिरप मिली चीज खासकर डायबिटीजग्रस्त बुजुर्गों का क्या हाल करती होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो काम सीएसई जैसी एक गैरसरकारी संस्था के समर्पित कार्यकर्ताओं ने कर दिखाया, वह खाद्य सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हमारे देश की एजेंसियां क्यों नहीं कर पातीं, जबकि उनके पास जांच-पड़ताल के सारे साधन और कानूनी अधिकार हैं? और उनकी अकर्मण्यता को लेकर इतना भरोसा बाहरी कंपनियों को कैसे हो जाता है कि वे अपने क्लाएंट को भी आश्वस्त कर देती हैं कि भारत में यह मिलावट नहीं पकड़ी जा सकती?
टेस्ट के जो भी मानक तय हों, वे बदले नहीं जाएंगे और लैब की क्षमता बढ़ाई नहीं जाएगी, उससे भी बड़ी बात यह कि उनपर कोई उंगली नहीं उठाएगा, इसे लेकर मिलावटकर्ता इतने निश्चिंत कैसे हो जाते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ कंपनियां इतनी ताकतवर हो चुकी हैं कि सरकारी एजेंसियों में कार्रवाई की हिम्मत ही नहीं रही?
सौजन्य - नवभारत टाइम्स।
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