नौसेना की जरूरतें (बिजनेस स्टैंडर्ड)

भारतीय नौसेना प्रमुख ने युद्धपोतों और पनडुब्बियों में चिंताजनक कमी का उल्लेख किया है। इससे पहले भी ऐसी खबरें आई हैं कि नौसेना के प्रमुख युद्धपोत-विमान वाहक पोत, विध्वंसक, लड़ाकू पोत और पनडुब्बियां आदि जरूरी उपकरणों मसलन सोनार, टारपीडो और कई भूमिकाएं निभाने में सक्षम हेलीकॉप्टर की कमी से जूझ रहे हैं। नौसेना जिस प्रकार पूरे वर्ष हिंद महासागर के इर्दगिर्द मौजूद रहती है और जिस तरह वह मलाबार जैसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय कवायद में शामिल होती है उसके लिए वह सराहना की पात्र है। परंतु इन कमियों का अर्थ यह है कि शांतिकाल से इतर जब नौसेना को युद्ध जैसी गतिविधियों में शामिल होना पड़ेगा तो उसे कठिनाई होगी।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ने जब यह कहा कि नौसेना फिलहाल तीसरा विमान वाहक पोत खरीदने की स्थिति में नहीं है तो शायद उनकी बात में सच्चाई थी। लेकिन फिर भी इतनी धनराशि तो है कि उन अपेक्षाकृत छोटी जरूरतों को पूरा किया जा सके जिनके अभाव में बीते एक दशक से महंगे युद्धपोत लड़ाई के लायक भी नहीं हैं। सुरंगभेदी पोत और पनडुब्बीरोधी पोत जैसे विशिष्ट पोतों की कमी भी चिंता का विषय है। ऐसे पोत बहुत महंगे नहीं हैं लेकिन ये सुरक्षा की दृष्टि से अहम हैं। 500 करोड़ रुपये के सुरंगभेदी पोत की कमी के कारण 5,000 करोड़ रुपये का युद्ध पोत डूब सकता है और महज पांच लाख रुपये की समुद्री सुरंग इसे डुबाने में सक्षम है।


इस बीच नौसेना प्रमुख ने इस बात पर जोर दिया है कि तीसरा विमानवाहक पोत जरूरी है। उनकी यह बात इस वर्ष के आरंभ में तीनों सेनाओं के प्रमुख द्वारा कही बात से विरोधाभासी है। हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का प्राथमिक सुरक्षा साझेदार बनने का लक्ष्य तभी पूरा होगा जब उसके पास सतह पर एक बड़ा बेड़ा हो जिसमें ऐसे विमानवाहक पोत भी हों जो दूर से ही बड़े समुद्री क्षेत्र पर नियंत्रण रख सकें। हालांकि ऐसी कोई आवश्यकता भी नहीं है कि नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में नियंत्रण दर्शाए लेकिन किसी शत्रु को ऐसा करने से रोकने के लिए भी पनडुब्बियों के सक्षम बेड़े की आवश्यकता होगी।


नौसेना 2029 तक 24 पारंपरिक पनडुब्बियों का बेड़ा तैयार करने के लक्ष्य से काफी पीछे है। उसका इरादा छह परमाणु हमले की क्षमता वाली पनडुब्बी तैयार करने का भी है लेकिन इसकी समय सीमा तय नहीं है। मझगांव डॉक लिमिटेड, मुंबई (एमडीएल) में स्कॉर्पीन पनडुब्बी का निर्माण जल्दी समाप्त हो जाएगा, उसके बाद बीते 15 सालों में पनडुब्बी निर्माण में अर्जित विशेषज्ञता का क्षय होने लगेगा। अगली छह पनडुब्बियां जो प्रोजेक्ट 75-आई के तहत बननी हैं उनकी निविदा भी नहीं हुई है। निजी क्षेत्र को इस कवायद से जोडऩे की दिशा में भी कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया है। ऐसा तब जबकि लार्सन ऐंड टुब्रो परमाणु क्षमता संपन्न पनडुब्बी का ढांचा बनाने और समय पर और किफायती ढंग से युद्धपोत की आपूर्ति कर चुकी है। कंपनी ने हाल ही में अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए तमिलनाडु में युद्धपोत निर्माण क्षमता में 3,500 करोड़ रुपये का निवेश किया है।


नौसेना की भूमिका और क्षमताओं को लेकर किसी भी बहस के मूल में बजट आवंटन का प्रश्न आना लाजिमी है। नौसेना प्रमुख ने शिकायत की कि तीनों सेनाओं के कुल बजट में नौसेना की हिस्सेदारी 2012 के 18 फीसदी से घटकर आज 13 फीसदी रह गई है। चीन की आक्रामकता को देखते हुए भविष्य में थल सेना का बजट और बढ़ सकता है और शायद इसकी कीमत नौसेना चुकाए। ऐसे में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि नौसेना की योजनाओं और क्षमताओं को संसाधनों के वास्तविक आकलन के हिसाब से सुसंगत बनाया जाए और महंगे पोत छोटीमोटी कमियों के कारण निष्प्रभावी न रहें। इसके अलावा निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की क्षमताओं का भी पूरा दोहन किया जाना चाहिए।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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