हरियाणा के गृह और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के कोरोना संक्रमित होने की खबर से स्वाभाविक ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं। भारत में बन रहे कोरोना विषाणु के टीके कोवैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण में उन्होंने खुद को वालंटियर के तौर पर पेश किया था। टीके की पहली खुराक उन्होंने पिछले महीने के अंतिम सप्ताह में ली थी। मगर अब वे कोरोना संक्रमित हो गए हैं।
सवाल उठ रहे हैं कि कोवैक्सीन लेने के बावजूद वे संक्रमित कैसे हो गए। इस पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्टीकरण दिया है कि दरअसल, कोवैक्सीन की दूसरी खुराक लेने के बाद ही व्यक्ति के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होनी शुरू होती है। विज ने अभी उसकी एक ही खुराक ली थी। दूसरी खुराक पहली खुराक के अट्ठाईस दिन बाद दी जाती है।
यानी विज के संक्रमित होने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं लगाया जाना चाहिए कि कोवैक्सीन प्रभावकारी टीका नहीं है। इस घटना से कुछ लोगों के मन में इसलिए सवाल उभरने शुरू हो गए हैं कि पिछले दिनों सीरो संस्थान और आक्सफर्ड टीकों के अंतिम चरण में एक व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव देखा गया था। कोवैक्सीन को लेकर स्वास्थ्य विभाग इसलिए उत्साहित है कि इसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की निगरानी में तैयार किया जा रहा है और अब तक इसके नतीजे बेहतर आए हैं।
कोरोना जैसे जटिल संरचना वाले विषाणुओं के प्रतिरोधी टीके तैयार करना खासा मुश्किल और जोखिम भरा काम होता है। दुनिया भर की सरकारें और दवा कंपनियां अपने-अपने ढंग से इसका टीका तैयार कर रही हैं। दवा कंपनी फाइजर को इस दिशा में सफलता भी मिल चुकी है। मगर भारत जैसे सघन आबादी और अपेक्षित संसाधनों की कमी वाले देशों में उस टीके का उपयोग संभव नहीं है। ऐसे टीकों को एक खास तापमान में रखना पड़ता है, वरना उनका प्रभाव खत्म हो जाता है।
कई बार उसके प्रतिकूल प्रभाव भी नजर आने लगते हैं। इसलिए हर देश की कोशिश होती है कि वह अपने वातावरण के अनुकूल टीके तैयार कराए। कोवैक्सीन इस मामले में कारगर साबित हो सकती है। अब यह परीक्षण के तीसरे चरण में है। इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं देखा गया है। इसलिए अभी से इसकी गुणवत्ता को लेकर सशंकित होने या इसकी कामयाबी को प्रश्नांकित करने की जरूरत नहीं समझी जा सकती। विज के संक्रमित होने की वजहों का गंभीरता से अध्ययन होना चाहिए, न कि कोवैक्सीन पर सवाल उठाया जाना चाहिए।
इस वक्त देश में जिस तरह कोरोना संक्रमण का चक्र तोड़ना चुनौती बना हुआ है, उसमें कोवैक्सीन के परीक्षण में किसी भी तरह का गतिरोध इस समस्या से पार पाने में मुश्किलें खड़ी कर सकता है। हर टीके के परीक्षण में कुछ नतीजे प्रतिकूल आते हैं। मगर इसका यह मतलब कतई नहीं होता कि वे टीके ही बेकार साबित हो जाते हैं।
उन विफलताओं से टीका बनाने वाले चिकित्सा विज्ञानियों को उनकी कमियों को दूर करने का अवसर मिलता है। फिर कोवैक्सीन अपने परीक्षण के अंतिम दौर में है और ऐसी मामूली कमियों को दूर करना कठिन नहीं माना जा सकता। यह विज का साहस है कि उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी निभाते हुए सबसे पहले कोवैक्सीन का अपने पर परीक्षण कराया। हो सकता है, टीके की खुराक लेने और कोरोना विषाणु के उनके शरीर में प्रवेश करने के बीच बहुत मामूली अंतर रहा हो। लिहाजा, उनके संक्रमित होने के बावजूद कोवैक्सीन को लेकर उम्मीदें कमजोर नहीं हुई हैं।
सौजन्य - जनसत्ता।
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