शहरों के हित में (बिजनेस स्टैंडर्ड)

लखनऊ नगर निगम के नाम पर 200 करोड़ रुपये के बॉन्ड जारी करने का निर्णय एक सही कदम है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों में अन्य नगर निकाय संस्थाएं भी इसी तरह बुनियादी विकास के लिए पूंजी बाजार से वित्तीय सहायता जुटाने के वैकल्पिक प्रयास आजमाएंगी। बॉन्ड के लिए कूपन दर 8.5 फीसदी तय की गई है और इन्हें केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय से करीब 23 करोड़ रुपये की सब्सिडी भी दी जा रही है। इस सब्सिडी ने इनकी कीमतों को और भी प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद की है। माना जा रहा है कि इस बॉन्ड इश्यू की बदौलत शहर में कई बुनियादी विकास परियोजनाओं को वित्तीय सहायता मिलेगी। इनमें जलापूर्ति सुधारने की परियोजना और कम लागत वाली कुछ आवास योजनाएं शामिल हैं। उत्तर प्रदेश सरकार को आशा है कि कई अन्य नगर निकाय भी लखनऊ के नक्शे कदम पर चलेंगे।

इससे पहले भी आठ शहरी स्थानीय निकायों ने 3,500 करोड़ रुपये मूल्य के म्युनिसिपल बॉन्ड जारी किए हैं। हालांकि इनका सबसे बड़ा हिस्सा आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती के विकास से जुड़ी परियोजना में है। वह परियोजना अलग तरह की दिक्कतों से दो-चार है। बड़े बहुपक्षीय कर्जदाताओं जिनमें एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक शामिल है, ने अपना कुछ वित्त पोषण इस परियोजना से वापस ले लिया है लेकिन गत वर्ष डेट आधारित म्युचुअल फंडों ने इसके बॉन्ड की खरीदारी की। लखनऊ अहमदाबाद के उदाहरण का अनुकरण कर सकता है जिसमें कहीं अधिक स्थायित्व है। अहमदाबाद ने सन 1990 के आखिर में पहली बार ऐसे बॉन्ड जारी किए थे। 2019 के आरंभ में उसने पांचवीं बार बॉन्ड पेश किए। सन 2018 के कुछ वर्ष पहले तक यह नगर निकाय अधिशेष की स्थिति में था क्योंकि पुनर्भुगतान का उसका रिकॉर्ड बेहतर रहा है और अहमदाबाद बॉन्ड का मूल्यांकन भी बहुत आकर्षक रहा है।


बॉन्ड को बेहद सावधानीपूर्वक तैयार किया गया क्योंकि उनके द्वारा जिन परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान की जानी थी वे सभी परियोजनाएं पर्यावरण के अनुकूल थीं। इनमें नदी सफाई और कचरा प्रबंधन परियोजनाएं शामिल थीं। इसके चलते निवेशकों ने इन बॉन्ड में काफी रुचि दिखाई। अन्य नगर निकायों को अपने बॉन्ड जारी करते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए ताकि उनकी प्रकृति बाजार की मांग के अनुरूप हो। फिलहाल ऐसे बॉन्ड की मांग है जो पर्यावरण, सामाजिक और संचालन मानकों के अनुरूप हों।


केंद्रीय मंत्रालय ने अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन की सहायता से और बाजार नियामक ने भी हाल के समय में ऐसे बॉन्ड जारी करने को और अधिक आकर्षक बनाने का प्रयास किया है। देखा जाए तो ऐसे कई तरीके हैं जिनकी मदद से स्थानीय निकायों का संचालन बेहतर किया जा सकता है। सबसे पहले, स्थानीय निकायों के पास ऐसे संसाधन होने चाहिए जो उन्हें ऐसी परियोजनाओं के लिए आकर्षक वित्तीय सहायता मुहैया करा सकें। यही परियोजनाएं स्थायित्व या सक्षमता हासिल करने में सहायता करेंगी। लखनऊ उन छह शहरों में से एक था जिन्हें अमेरिकी वित्त विभाग ने गत वर्ष बॉन्ड जारी करने में सहायता करने के लिए चिह्नित किया था। इससे पता चलता है कि क्षमता से जुड़ी बाधा से कैसे निजात पाई गई। भविष्य में सहायता किसी स्वदेशी संस्थान को करनी चाहिए। बल्कि केंद्रीय स्तर पर ऐसा संस्थान बनना चाहिए जो जरूरत पडऩे पर अपनी विशेषज्ञ सहायता प्रदान कर सके।


इसके अलावा बेहतर वित्तीय प्रबंधन सिद्धांतों का पालन भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। जरूरत पडऩे पर राज्य सरकारों को जांच परख करनी चाहिए क्योंकि कई मामलों में वे इन बॉन्ड के कारण जोखिम में रहती हैं। कुल मिलाकर यह एक उपयोगी तरीका है जिसके माध्यम से शहरी बुनियादी परियोजनाओं को वित्तीय मदद मुहैया कराने का विकल्प मिल सके। इसके साथ ही शहरी प्रशासन और राजस्व उत्पादन में बाजार का अनुशासन भी आएगा।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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