आतंक का सिलसिला (जनसत्ता)

कश्मीर घाटी के जिलों में आम लोगों और सुरक्षा बलों पर बढ़ते आतंकी हमले घाटी में शांति बहाली के प्रयासों के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता हो जब सुरक्षाबलों और निर्दोष नागरिकों पर बड़े हमले कर आतंकी अपनी मौजूदगी दर्ज न कराते हों। बुधवार को बारामुला जिले के एक कस्बे में आतंकियों ने हथगोले से हमला कर दिया जिसमें कई लोग घायल हो गए। एक अन्य घटना में पुलवामा जिले के एक गांव में तलाशी अभियान के दौरान सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ में अल-बदर मुजाहिद्दीन के तीन आतंकी मारे गए।

ये घटनाएं बता रही हैं कि कश्मीर में आतंकवाद की जड़ें काफी गहरी हैं और आतंकी नेटवर्क सक्रियता से अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। इन दिनों कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनाव भी चल रहे हैं। ऐसे में हमलों के जरिए आतंकी संगठन स्थानीय लोगों में दहशत पैदा कर रहे हैं, ताकि लोग मतदान के लिए न निकलें और घाटी में राजनीतिक प्रक्रिया को धक्का लगे। जिला परिषद चुनावों में मतदान केंद्रों के बाहर जो लंबी कतारें नजर आ रही हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि लोग अब डर कर नहीं रहने वाले।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कश्मीर के गांवों में आतंकियों का जाल व्यापक रूप से फैला हुआ है। पिछले तीन दशकों में आतंकी संगठनों ने शहरी इलाकों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में अपनी पैठ बना ली है। बड़े हमलों को अंजाम देने के बाद आतंकी गांवों में जा छिपते हैं। इस वक्त कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद और लश्करे तैयबा के अलावा तीस से ज्यादा छोटे आतंकी संगठन सक्रिय हैं।

पाकिस्तान से घुसपैठ करके आने वाले आतंकी अपने संगठनों के लिए काम कर रहे आतंकियों को हथियारों से लेकर हर तरह की मदद पहुंचाते हैं। वरना स्थानीय लोगों के पास हथियार, गोला-बारूद और विस्फोटक कहां से आएंगे। हालांकि अब पाकिस्तान की ओर से ड्रोन के जरिए भी आतंकियों को हथियार पहुंचाने की घटनाएं सामने आई हैं। आतंकी हमलों का मकसद लोगों में खौफ बनाए रखना और सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बने रहना है। इस साल मई में कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में आतंकियों ने ग्रामीणों को बंधक बना लिया था। इन ग्रामीणों को आतंकियों के चंगुल से छुड़ाने के दौरान सेना के एक कर्नल और एक मेजर सहित पांच जवान शहीद हो गए थे। ऐसी अनगिनत घटनाएं हैं जो आतंकियों के मंसूबों को बताती हैं।

अब सेना और सुरक्षाबलों के सामने सबसे बड़ी मुश्किल गांवों में छिपे आतंकियों को खत्म करने की है। यह आसान काम नहीं है। सुरक्षाबलों को इसमें अति सावधानी इसलिए भी बरतनी पड़ती है, ताकि कोई निर्दोष व्यक्ति न मारा जाए। इसलिए आतंकियों को उनके छिपने के ठिकानों से बाहर निकालने के लिए बहुत ही फूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ता है। घाटी में पिछले एक साल में जो सकारात्मक बदलाव आया है, उससे अब आतंकी संगठनों की नींद उड़ने लगी है और इसी हताशा में वे सुरक्षाबलों और नागरिकों पर हमले कर रहे हैं।

हालांकि अब घाटी के नौजवान और लोग असलियत को समझ रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि घाटी से आतंक का खात्मा कर पाना आसान नहीं है। इसमें अभी लंबा वक्त लगेगा। जैसे-जैसे कश्मीर में विकास की प्रक्रिया और राजनीतिक गतिविधियां जोर पकड़ेंगी, आतंकियों के हौसले भी पस्त पड़ेंगे। इसके लिए जरूरी है घाटी के ग्रामीण इलाकों में रहने वालों के मन में सरकार, प्रशासन और सुरक्षाबलों के प्रति भरोसा पैदा हो, तभी वे आतंकियों को संरक्षण देने या उनके प्रति सहानुभूति का भाव रखने से छुटकारा पा सकेंगे।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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