ब्रिटेन में नब्बे साल की महिला को अमेरिकी कंपनी फाइजर का बनाया पहला कोरोना टीका लगाए जाने के साथ ही अब यह उम्मीद और प्रबल हो गई है कि साल खत्म होने से पहले कुछ और देशों में टीका उपलब्ध होगा। कोरोना का टीका विकसित करने को लेकर दुनिया के कई देशों में होड़ लगी है और भारत सहित कुछ देश इसके काफी करीब पहुंच चुके हैं।
सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया और भारत बायोटेक ने भारत सरकार के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआइ) से अपने टीकों के आपात इस्तेमाल की अनुमति मांगी है। जाहिर है, टीका तैयार है, बस कुछ औपचारिकताएं बाकी हैं। अभी जो टीके आए हैं वे कितने असरदार होंगे, यह अलग बात है, लेकिन इतना निश्चित है कि महामारी पर काबू पाने में यह प्रयास मील का पत्थर साबित होगा। फाइजर ने भी भारत में अपने टीके के इस्तेमाल के लिए अनुमति मांगी है। माना जा रहा है कि एक पखवाड़े के भीतर संबंधित कंपनियों को इसके आपात इस्तेमाल की इजाजत दी जा सकती है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो भारत में जल्द ही कोरोना का टीका उपलब्ध होगा।
टीके को लेकर भारत में उम्मीदें इसलिए भी बढ़ी हैं कि पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ने अपने टीके- कोविशील्ड की इस महीने तक दस करोड़ खुराक बना लेने की बात कही है। आक्सफोर्ड-एस्ट्रजेनेका के साथ मिल कर तैयार किया गया यह टीका हर आयु वर्ग के लिए सुरक्षित और सत्तर फीसद तक संक्रमण रोकने में कारगर होने का दावा किया जा रहा है। हैदराबाद की भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के साथ मिल कर कोवैक्सीन टीका विकसित किया है। ये दोनों ही टीके परीक्षण के सारे चरण पूरे कर चुके हैं और परीक्षण की कसौटियों पर खरे उतरे हैं।
रूस में बने टीके स्पूतनिक-5 का भी डॉ रेड्डीज लैब के सहयोग से भारत में परीक्षण चल रहा है। लेकिन फाइजर के टीके का भारत में कोई परीक्षण नहीं हुआ है। ऐसे में उसे इस्तेमाल की इजाजत मिलना संभव नहीं लगता। इस बारे में भारत सरकार का रुख स्पष्ट है कि विदेशों में परीक्षण में सफल रहे टीकों को भी भारत में परीक्षण की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। दरअसल, टीके को लेकर किसी तरह का जोखिम नहीं लिया जा सकता। सीरम और बायोटेक के टीकों का परीक्षण तो भारत में ही हुआ है और सब कुछ सरकार की निगरानी में चल रहा है। इसलिए इन्हें लेकर संदेह की कोई गुंजाईश नहीं रह जाती।
किसी भी बीमारी या महामारी का टीका या दवा बनाने से लेकर उसे बाजार में लाने तक की प्रक्रिया बहुत ही लंबी और जटिल है। हालांकि कोरोना के कहर को देखते हुए दुनिया के कई देशों ने टीका विकसित करने के अभियान में जैसी फुर्ती दिखाई है, उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। आमतौर पर टीकों के विकास और परीक्षण में सालों लग जाते हैं।
इसलिए इसे भी उपलब्धि के रूप में देखा जाना चाहिए कि वैज्ञानिक टीके के विकास के समय को सालों से घटा कर महीनों में ले आए हैं। यही कारण है कि टीके के असर को लेकर सवाल उठ रहे हैं। पर टीके की गुणवत्ता और सुरक्षा से इसका कोई संबंध नहीं है। कारण, टीके को लेकर काम करने वाले तंत्र जिसमें चिकित्सक, वैज्ञानिक, सरकार, नियमाकीय व्यवस्था सब शामिल हैं, ने गंभीरता और सजगता के साथ ऐसे अभियान को कुछ ही महीनों में पूरा कर दिखाया, जिनमें पहले बरसों लग जाते थे। इसी तरह युद्धस्तर पर सतत काम होता रहा और सफलता के साथ टीकाकरण के काम को अंजाम दिया गया तो निश्चित ही भारत कोरोना को हरा देगा।
सौजन्य - जनसत्ता।
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