वैश्विक राजनीति में भी ‘भारतीय मूल के लोगों का दबदबा’ (पंजाब केसरी)

126 वर्षों में पहली बार जूते बनाने वाली स्विस कम्पनी बाटा ने एक भारतीय संदीप कटारिया को अपना वैश्विक सी.ई.ओ. नियुक्त किया है जो आई.आई.टी. दिल्ली के छात्र रह चुके हैं। आप यह जानते हैं तो यह भी जानते होंगे कि इसी साल प्रौद्योगिकी

126 वर्षों में पहली बार जूते बनाने वाली स्विस कम्पनी बाटा ने एक भारतीय संदीप कटारिया को अपना वैश्विक सी.ई.ओ. नियुक्त किया है जो आई.आई.टी. दिल्ली के छात्र रह चुके हैं। आप यह जानते हैं तो यह भी जानते होंगे कि इसी साल प्रौद्योगिकी क्षेत्र के काम करने के तरीकों को बदलने में भारतीयों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है- हाल ही में गीता गोपीनाथ ने आई.एम.एफ. के मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में एक वर्ष पूरा किया है, अरविंद कृष्णा आई.बी.एम. के सी.ई.ओ. हैं, साथ ही ‘वी वर्क’ कम्पनी ने सी.ई.ओ. के रूप में संदीप मातृनी को बोर्ड में लाने की पुष्टि की है। 

निश्चित रूप से यह सभी जानते हैं कि गूगल के सी.ई.ओ. सुंदर पिचाई गत वर्ष अमरीका में सबसे अधिक वेतन पाने वाले सी.ई.ओ. बन गए (गत वर्ष उन्हें 2144.53 करोड़ रुपए सैलरी दी गई)। ऐसे में कुछ और नाम सबकी जुबां पर हैं जैसे कि माइक्रोसॉफ्ट के सी.ई.ओ. सत्या नडेला, पैप्सिको की सी.ई.ओ. इंदिरा नूई, एडोब सिस्टम्स के सी.ई.ओ. शांतनु नारायण। चूंकि दशकों से वैश्विक परिदृश्य पर भारतीय अग्रणी रहे हैं तो यह एक पुरानी खबर है और अगर आप यह जानते हैं कि भारतीय मूल के 128 वैज्ञानिक विश्व भर में भारत का नाम उज्ज्वल कर रहे हैं तो यह भी नया नहीं है तो फिर क्या है नया? नया है-भारतीयों का विश्व के राजनीतिक पटल पर महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होना। 

कमला हैरिस के उप राष्ट्रपति चुनाव में विजयी होना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है -एक भारतीय मां, जो एक वैज्ञानिक थी, की बेटी के इस स्तर पर पहुंच जाना यकीनन गर्व की बात है किन्तु यह एक अकेला उदाहरण नहीं है। नवनिर्वाचित अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन जल्द ही विवेक मूर्ति, जो एक जनरल सर्जन हैं, को हैल्थ सैक्रेटरी के पद पर नियुक्त करेंगे। इससे पहले उन्होंने नीरा टंडन को प्रबंधन और बजट कार्यालय की निदेशक के रूप में नामित किया है। टंडन इस प्रभावशाली पद की कमान संभालने वाली पहली अश्वेत महिला होंगी। यद्यपि निक्की हेली ट्रंप सरकार में अमरीका की यू. एन. ओ. में राजदूत रह चुकी हैं,  परंंतु वह मात्र राजनीतिक पद होने के कारण आर्थिक रूप से इतना महत्वपूर्ण नहीं था। 

ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण और आर्थिक रूप से प्रभावशाली पद है इंगलैंड में ऋषि सुनक का (वह इंफोसिस के सह-संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष नारायण मूर्ति के दामाद हैं)। वह एक ब्रिटिश राजनेता हैं जो फरवरी 2020 से राजकोष के चांसलर  अर्थात वित्त मंत्री हैं। ब्रिटिश इतिहास में इस सरकार को सबसे ‘देसी सरकार’ कहा गया है। 52 वर्षीय आगरा में जन्मे आलोक शर्मा को व्यवसाय, ऊर्जा और औद्योगिक रणनीति के लिए राज्य सचिव नियुक्त किया गया है, प्रीति पटेल गृह सचिव बनी हैं, जो ब्रिटेन सरकार में अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर रही हैं।

कनाडा में देखा जाए तो प्रतिरक्षा मंत्री सज्जन सहित आठ और सिख मंत्री ट्रूडो की मिनिस्ट्री में शामिल हैं, समय-समय पर उनके द्वारा पंजाब के मामलों में दखलंदाजी पर सवाल उठता रहता है परन्तु यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय मंत्रियों के समर्थन के बगैर यह सरकार अस्थिर हो जाएगी। जहां तक फिजी या सिंगापुर जैसे देशों का सवाल है अनेक भारतीय वहां की सरकारों में कार्यरत हैं परंतु इस नवंबर की 2 तारीख को पहली बार न्यूजीलैंड में  प्रियांक राधाकृष्णन, न्यूजीलैंड की पहली भारतीय मूल की मंत्री बनीं, जब प्रधानमंत्री जैकिंडा आरडर्न ने पांच नए मंत्रियों को अपनी कार्यकारिणी में शामिल किया। 

ध्यान देने की बात यह भी है कि डॉक्टर गौरव शर्मा 25 नवंबर को न्यूजीलैंड के सबसे युवा और नवनिर्वाचित सांसदों में से एक नियुक्त हुए हैं, उन्होंने बुधवार को देश की संसद में संस्कृत में शपथ ली। कमला प्रसाद बिसेसर जो भारतीय मूल की हैं और आजकल संयुक्त राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं, त्रिनिदाद और टोबैगो की विपक्ष की नेता हैं। हालांकि वे 2010 से 2015 तक देश की पहली प्रधानमंत्री थीं। इसी तरह अनीता आनंद कनाडा की कैबिनेट में शामिल होने वाली पहली ङ्क्षहदू महिला हैं और अब वह सार्वजनिक सेवाओं और खरीद के लिए जिम्मेदार हैं। क्योंकि फिजी की लगभग 38 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है, देश की लेबर पार्टी के नेता महिन्द्र चौधरी 1999 में प्रधानमंत्री चुने जाने वाले पहले इंडो-फिजीयन बने। जबकि मात्र एक साल बाद चौधरी और उनकी पूरी कैबिनेट को एक सैन्य समॢथत तख्ता पलट में बाहर कर दिया गया। 

कुछ महीने पहले तक आयरिश प्रधानमंत्री लियो वारडकर थे जो भारतीय मूल के हैं। उनके पिता का जन्म मुम्बई में हुआ था लेकिन वह 1960 के दशक में यू.के. चले गए। पिछले साल दिसम्बर में भारत की यात्रा के दौरान वारडकर महाराष्ट्र में अपने पैतृक गांव गए। इसी तरह से छेदी भरत जगन जिन्हें आधुनिक गुयाना का राष्ट्रपिता माना जाता है, 1953 में पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए। जगन 1992 से 1997 तक गुयाना के चौथे राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते रहे। हालांकि यह पहला मौका नहीं है कि प्रवासी भारतीय दूसरे देशों में राजनीति में आए हैं। इससे पहले दादाभाई नौरोजी 1892 से 1895 तक ब्रिटिश संसद में मंत्री थे जिन्होंने सबसे पहले इंडियन मनी ड्रेन की बात अपने पहले भाषण में संसद में की थी कि कैसे अंग्रेज भारत से पैसा लेकर जा रहे हैं किंतु अब भारतीय महिलाएं भी विदेशों में राजनीति में अपना नाम बना रही हैं और भारत को गौरवान्वित कर रही हैं।

सौजन्य - पंजाब केसरी।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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