‘किसानों से वार्ता बेनतीजा’ ‘8 को भारत बंद और अगली बैठक 9 को’ (पंजाब केसरी)

कृषि कानूनों के विरुद्ध किसानों के ‘दिल्ली कूच’ आंदोलन के 10वें दिन किसान प्रतिनिधियों और सरकार के बीच पांचवें दौर की वार्ता भी 5 दिसम्बर को बेनतीजा समाप्त हो गई। अब अगली बैठक

कृषि कानूनों के विरुद्ध किसानों के ‘दिल्ली कूच’ आंदोलन के 10वें दिन किसान प्रतिनिधियों और सरकार के बीच पांचवें दौर की वार्ता भी 5 दिसम्बर को बेनतीजा समाप्त हो गई। अब अगली बैठक 9 दिसम्बर को 11 बजे होगी। बैठक में सरकार ने इन कानूनों में संशोधन की बात कही पर किसान प्रतिनिधियों ने कहा कि उन्हें कानून रद्द करने के अलावा कुछ भी मंजूर नहीं है जिस कारण कोई समाधान नहीं निकल सका और न ही 8 दिसम्बर को प्रस्तावित भारत बंद टल पाया। 

इस बातचीत में सरकार की ओर से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल तथा राज्य मंत्री सोम प्रकाश आदि शामिल रहे। बैठक में सरकार ने किसानों से थोड़ा और समय मांगा जिस पर किसान प्रतिनिधि सहमत हो गए हैं और उन्होंने बातचीत जारी रखना मान लिया है। बैठक में किसान नेताओं ने सरकार से पिछली बैठकों में उठाए गए मुद्दों पर लिखित उत्तर मांगा और कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए संसद का विशेष सत्र बुला कर कृषि कानूनों को सिरे से ही रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि तीनों कानून रद्द किए जाने तक आंदोलन जारी रहेगा। 

बैठक के बाद जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों के हितों के प्रति प्रतिबद्धता जताई है वहीं कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भी किसानों के हितों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता जताते हुए कहा कि उनकी सभी समस्याओं पर विचार किया जाएगा और अगली बैठक से पहले किसानों के सुझाव मांगे।

कृषि मंत्री ने किसान संगठनों और नेताओं का आभार व्यक्त करते हुए ए.पी.एम.सी. को राज्यों का विषय बताया और इसमें हस्तक्षेप न करने और इसे मजबूत करने की बात कही। उन्होंने कहा कि एम.एस.पी. पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने किसान नेताओं से आंदोलन में शामिल बुजुर्गों और बच्चों को घर वापस भेज देने की अपील भी की। इस वार्ता से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस समस्या पर बात करने गृह मंत्री अमित शाह प्रधानमंत्री के आवास पर पहुंचे जिसमें रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल भी शामिल हुए। 

चूंकि इससे पूर्व कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एक से अधिक बार कह चुके थे कि किसान नेताओं के साथ अब तक हुई वार्ताओं के चार दौर सकारात्मक रहे हैं, अत: 5 दिसम्बर की बैठक में किसानों की मांगों को लेकर सकारात्मक परिणाम निकलने की आशा थी लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तुत संशोधन प्रस्तावों पर सहमति न बनने के कारण बैठक बेनतीजा रही और फैसला 9 दिसम्बर को होने वाली अगली बैठक पर टाल दिया गया। किसान नेताओं का कहना है कि कृषि राज्य का विषय है। उन्होंने आरोप लगाया कि, ‘‘भारत सरकार ने कृषि सुधारों के नाम पर तीन नए कानून बना कर राज्यों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है और यह भारत के संघीय ढांचे को कमजोर करने की एक कोशिश है।’’ 

महाराष्ट्र के किसान नेताओं ‘संदीप पाटिल’ और ‘शंकर दारेकरने’ के अनुसार, ‘‘सरकार ने नोटबंदी के फैसले के दौरान संसद की मंजूरी नहीं ली थी तथा सरकार अध्यादेश लाकर तीनों कानून रद्द कर सकती है। हमने 8 दिसम्बर को भारत बंद की घोषणा सरकार को चेतावनी देने के लिए की है, सरकार यदि कानून रद्द करने को तैयार नहीं होती तो आंदोलन और तेज होता जाएगा।’’

इस किसान आंदोलन के फैलते हुए दायरे का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि ‘संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस’ ने भी इसे समर्थन देते हुए कहा है कि लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार है। इससे पूर्व कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भी इस आंदोलन का समर्थन कर चुके हैं। इस बीच देश की दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के एक संयुक्त मंच ने 8 दिसम्बर को किसान संगठनों द्वारा भारत बंद को अपना समर्थन दे दिया है हालांकि उन्होंने बंद के शांतिपूर्ण रहने की बात कही है। 

बहरहाल इस आंदोलन पर देश ही नहीं समूचे विश्व की नजरें टिकी हुई हैं और किसानों को विश्वव्यापी समर्थन एवं  आर्थिक सहायता प्राप्त हो रही है। ऐसे में किसानों द्वारा अपनी मांगों से पीछे हटने की कोई संभावना नजर नहीं आती तथा आंदोलन नाजुक दौर में पहुंचता जा रहा है। उल्लेखनीय है कि यह आंदोलन अब पंजाब और हरियाणा तक सीमित न रहकर देश के लगभग एक दर्जन राज्यों में फैल गया है और वहां के किसान भी अपने-अपने राज्यों में धरना-प्रदर्शन करने के साथ-साथ दिल्ली कूच आंदोलन में शामिल हो गए हैं और किसानों ने चेतावनी दी है कि वे लम्बी लड़ाई के लिए तैयार हैं। 

अब गेंद केन्द्र सरकार के पाले में है। उसे 9 दिसम्बर की बैठक में इस समस्या का सर्व स्वीकार्य हल निकाल कर यह मामला शांत करना चाहिए ताकि यह आंदोलन गलत हाथों में पड़कर ङ्क्षहसक न हो जाए। देश की किसानी और उद्योग-व्यवसाय को हो रही भारी क्षति तथा लोगों को हो रही असुविधा से बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी है। इससे पहले ही देश की अर्थव्यवस्था को करोड़ों रुपए की क्षति पहुंच चुकी है और लोगों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है, अब 8 दिसम्बर के प्रस्तावित बंद से इसमें और वृद्धि ही होगी।-विजय कुमार  

 सौजन्य - पंजाब केसरी।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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