क्षमा शर्मा
बच्चों के लिए काम करने वाले संगठन और एनजीओ अक्सर शिकायत करते हैं कि चुनाव के दौरान विभिन्न दल अपने-अपने जो घोषणापत्र बनाते हैं, वे इसमें लोगों से तमाम वादे करते हैं। मगर उनमें बच्चों की समस्याओं पर बात नहीं की जाती। चूंकि घोषणापत्र वोट के गुणा-भाग से बनाए जाते हैं, और बच्चे वोट नहीं देते, इसलिए उनका ध्यान नहीं रखा जाता। बड़े समझते हैं कि वे सब कुछ जानते हैं, जबकि कई बार इसी कारण से बच्चों की समस्याएं अनदेखी रह जाती हैं। दशकों पहले यूनिसेफ ने दुनिया के बच्चों की सालाना रिपोर्ट में भी यह कहा था। अगले साल असम में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसे ध्यान में रखते हुए वहां के बच्चों और तमाम संगठनों में काम करने वाले लोगों ने विभिन्न पार्टियों के लिए बच्चों का घोषणापत्र तैयार किया है।
यह घोषणापत्र तैयार कराने में चालीस विभिन्न संगठनों ने भागीदारी की और असम के सत्रह जिलों के चार हजार बच्चों ने भाग लिया। इनमें से चुने गए दस बच्चों के साथ बच्चों की समस्याओं पर एक वर्कशॉप भी की गई थी। इसमें प्रत्येक नामक एक एनजीओ की मुख्य भूमिका है। यूनिसेफ ने भी इसमें तरह-तरह से सहायता की है। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले भी यूनिसेफ ने एडोलसेंट ऐंड चिल्ड्रन राइट्स नेटवर्क के साथ मिलकर एक ऐसा ही घोषणापत्र बनाया था।
यूनिसेफ ने दुनिया भर में री-इमेजिन नामक अभियान भी चला रखा है, जिसमें सरकार और तमाम संगठनों से अपील की गई है कि वे इस बारे में सोचें कि कोविड-19 के बाद दुनिया कैसे बेहतर बने। विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूल का वातावरण बच्चों का भविष्य तय करता है। इसलिए पहली जरूरत स्कूल को बच्चों का दोस्त बनाना है, जिससे कि बच्चे वहां न केवल पढ़-लिख सकें और उनका विकास हो, बल्कि वे सुरक्षित भी महसूस कर सकें। इस घोषणापत्र को सरकार और विपक्षी दलों को सौंपा गया है, जिससे कि वे आने वाले दिनों में चुनाव के लिए अपना घोषणापत्र बनाते हुए बच्चों का भी ध्यान रख सकें। असम के जिन क्षेत्रों में बच्चों से बात की गई, उनमें से हर एक की अलग समस्या थी।
जैसे जिन इलाकों में लगातार बाढ़ आती है, वहां के बच्चों का कहना था कि वे बाढ़ के कारण स्कूल नहीं जा पाते, इसलिए बाढ़ का सही प्रबंधन किया जाए। जिन इलाकों में पुल नहीं हैं, वहां पुल बनाए जाएं। पुल न होने के कारण न केवल पढ़ाई में मुश्किल आती है, बल्कि किसी के बीमार हो जाने पर इलाज में भी मुश्किल आती है। बाढ़ से जमीन का भारी कटाव होता है और लोगों को विस्थापित होना पड़ता है। मानसून के समय लाखों लोगों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, जिनमें बच्चे भी होते हैं। तब स्कूल भी महीनों तक बंद रहते हैं। ऑनलाइन कक्षाओं के इन दिनों में कई स्थानों पर नेटवर्क की समस्या अक्सर बनी रहती है। कई बार तो बच्चों को इसके लिए चार-पांच किलोमीटर तक
चलना पड़ता है। ऐसे में, बच्चों ने नेटवर्क की सही व्यवस्था की भी मांग की है।
एक फोन से पांच-पांच बच्चों को पढ़ाई करनी पड़ती है। कुछ बच्चों ने पुस्तकालय न होने की भी शिकायत की। बच्चों के घोषणापत्र की मुख्य मांग इस प्रकार हैं, बच्चों को हर तरह की हिंसा से मुक्ति मिले, सभी को सस्ती चिकित्सा सुविधाएं और पोषण युक्त भोजन मिले, जाति, वर्ग, लिंग, धर्म तथा अन्य किसी कारण से बच्चों के साथ भेदभाव न हो, सभी बच्चों को सस्ती और अच्छी शिक्षा मिले, जो बच्चे प्रतिकूल परिस्थितियों में रहते हैं, उनका विशेष तौर पर ध्यान रखा जाए, बच्चों के स्कूलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर और मानव संसाधन की दशा में सुधार किया जाए, यानी स्कूल की इमारत अच्छी हो।
जरूरत के अनुसार अध्यापक भी हों, जिससे अधिक से अधिक बच्चे इसका लाभ उठा सकें, सभी परिवारों को पीने का साफ पानी और स्वच्छ वातावरण मिले, बच्चों की खेल-कूद और शारीरिक विकास के लिए उचित जगहें हों, दिव्यांग बच्चों को पूरी मदद मिले, जिससे कि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें, ऐसी योजनाएं बनें, जिनसे राज्य का विकास तो हो ही, पर्यावरण भी ठीक रहे, युवाओं की ऐसी भागीदारी हो कि उनका सही विकास हो सके। यह देखना है कि इस घोषणापत्र को राजनीतिक पार्टियां कितनी गंभीरता से लेंगी।
सौजन्य - अमर उजाला।
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