मिहिर शर्मा
सन 2019 समाप्त होने वाला था, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के चीन स्थित स्थानीय कार्यालय को आधिकारिक रूप से यह जानकारी प्रदान की गई कि वुहान शहर में 'अज्ञात कारणों से फैलने वाले निमोनिया' का प्रकोप है और इसका केंद्र शहर का सीफूड बाजार है। गत वर्ष 4 जनवरी को डब्ल्यूएचओ ने सबसे पहले इस निमोनिया के बारे में ट्वीट किया और दावा किया कि इससे किसी की मौत नहीं हुई है।
इसके बाद तो पूरे वर्ष के दौरान केवल एक ही घटना का दबदबा रहा। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से ऐसा कभी नहीं हुआ था। विश्व युद्धों के समान ही इस मामले में भी जीत के झूठे दावे भी किए गए।
फिलहाल हम भी ऐसी ही छद्म जीत के भ्रम में जी रहे हैं। आम जनता और बाजार दोनों में टीका विकसित होने और उसे मंजूरी मिलने की खुशखबरी से ही उत्साह की यह भावना उत्पन्न हुई है। इस तथ्य की अनदेखी की जा रही है कि महामारी इस समय अत्यंत नाजुक अवस्था में है। महामारी का व्यापक प्रसार हो चुका है और अनेक लोगों के शरीर से गुजरने के बाद इसके स्वरूप में भी ऐसे बदलाव होने लगे हैं जो समस्या पैदा कर सकते हैं। इनमें से दो बदले हुए स्वरूप खासतौर पर चिंताजनक हैं जो क्रमश: दक्षिण अफ्रीका और ब्रिटेन में पाए गए हैं। वायरस के ये दोनों प्रकार नोवल कोरोनावायरस के मूल स्वरूप की तुलना में कहीं अधिक तेजी से फैलते हैं।
हाल ही में खासतौर पर ब्रिटेन में पाए गए नए स्वरूप के वायरस को लेकर कुछ अकादमिक शोध भी सामने आया है। इस बात पर आम सहमति है कि नए वायरस के कारण संक्रमण दर या 'आर' दर में 50 से 70 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। यह बात खासतौर पर दिक्कत वाली है क्योंकि संक्रमण की दर से ही यह तय होता है कि वायरस कितनी तेजी से प्रसारित होगा। तकनीकी तौर पर समझें तो यदि 'आर' दर एक है तो एक संक्रमित एक अन्य व्यक्ति को संक्रमित करता है। यदि दर अधिक होगी तो संक्रमण भी अधिक होगा। जबकि इसके कम होने का अर्थ है संक्रमण का प्रसार कम होना। दिसंबर के अंतिम सप्ताह में भारत की 'आर' दर 0.9 थी। यानी देश में कुल सक्रिय मामलों की तादाद पिछले कुछ समय से कम हो रही है। कारण चाहे जो भी हो लेकिन त्योहारी मौसम और देश के कई इलाकों में गतिविधियां सामान्य हो जाने के बावजूद 'आर' दर एक के ऊपर नहीं गई है। परंतु यदि इन नए स्वरूपों में से कोई देश में प्रचलित पुराने कोरोनावायरस की जगह ले लेता है तो देश की 'आर' दर बढ़कर 1.4 या उससे भी अधिक हो जाएगी। 'आर' दर यदि 1.4 होती है तो हालात इस वर्ष जून और जुलाई जैसे या उससे भी बुरे हो सकते हैं क्योंकि इन दिनों तापमान भी काफी कम है और वायरस सतह पर तथा हवा में अधिक लंबे समय तक बचा रह सकता है।
क्या हमने कोरोनावायरस को लेकर शुरुआती प्रतिक्रिया से कुछ सबक सीखा है? हमें यह सीखने की आवश्यकता थी इस पूरी प्रक्रिया में गति की बहुत अधिक महत्ता है। ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने वायरस को आरंभ में ही गंभीरता से लिया। सन 2020 की जनवरी और फरवरी में ही उन्होंने गंभीरता दिखाई और वायरस के प्रसार को सफलतापूर्वक रोक लिया। भारत में सरकार को विपक्षी नेताओं तक ने फरवरी में ही चेतावनी दे दी थी लेकिन मार्च के दूसरे सप्ताह तक हमारे यहां गंभीरता से कदम नहीं उठाए गए। मैं उसी सप्ताह विदेश से भारत आया और दिल्ली हवाई अड्डे पर बस तापमान जांचने की औपचारिकता की गई। किसी ने मुझसे कोई सवाल जवाब तक नहीं किया, न ही मेरी तबियत के बारे में आगे कोई पूछताछ की गई। मैंने स्वयं को स्वैच्छिक रूप से एक सप्ताह के लिए औरों से अलग कर लिया। इसके लिए किसी संस्थान की ओर से न कोई अनुरोध किया गया, न ही कोई पहल की गई। जबकि मैं विदेश के उस इलाके से आया था जहां कोविड-19 के मामले बढ़ रहे थे।
परिणाम स्वरूप जब सरकार ने कदम उठाने शुरू किए तो उसे कड़े कदम अचानक ही उठाने पड़े। मार्च के अंत में लगा लॉकडाउन शायद कुछ देर से उठाया गया कदम था लेकिन यह सही कदम था और इसका समुचित प्रचार किया गया।
फिलहाल कई देशों को यह डर है वायरस का अधिक संक्रामक स्वरूप टीकाकरण के पहले ही कहीं आबादी के अधिक संवेदनशील समूह तक न पहुंच जाए। भारतीय नियामक ने अब दो टीकों को मंजूरी दे दी है लेकिन अनुमान है कि वह अधिकतम 60-70 प्रतिशत तक ही सुरक्षा मुहैया करा पाएगी। सामान्य समय के लिए तो यह काफी बेहतर है लेकिन मौजूदा दौर असाधारण है। यदि महामारी का संक्रमण दोबारा जोर पकड़ता है तो केवल 60 से 70 फीसदी संरक्षण वाला टीका तभी प्रभावी साबित होगा जब उसे तय समय से बहुत जल्दी और बहुत तेज गति से लगाया जाए। जो देश फाइजर और मॉडर्ना के टीके इस्तेमाल कर रहे हैं उन्होंने भी अपने यहां टीकाकरण की प्रक्रिया को लेकर सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है ताकि अधिक से अधिक लोगों को जल्द से जल्द टीका लग सके। इन टीकों का प्रभाव बहुत बेहतर है।
सरकार को तीन चीजों के लिए तैयार रहना होगा। पहला, उसे यह स्वीकार करना होगा वायरस का नया स्वरूप एक बार फिर कड़े लॉकडाउन की वजह बन सकता है। भले ही इस बार राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन लगाना पड़े। दूसरा, संक्रमितों का तेजी से पता लगाने को प्रक्रिया सामुदायिक प्रसार के बाद स्थगित सी हो गई है उसे दोबारा अपनाना होगा ताकि नया स्वरूप बहुत अधिक न फैल सके। तीसरा टीकाकरण के मासिक लक्ष्य में पारदर्शिता बरतनी होगी ताकि टीकाकरण और संक्रमण दर का अध्ययन किया जा सके। हम नहीं चाहते कि 2021 भी 2020 जैसा हो।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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