संकट टालने की कवायद या वाकई सुधरी है हालत (बिजनेस स्टैंडर्ड)

तमाल बंद्योपाध्याय   

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 7 दिसंबर को महाराष्ट्र में कराड जनता सहकारी बैंक का लाइसेंस रद्द कर दिया। बैंक के पास न ही पर्याप्त पूंजी थी और न ही कमाई के कोई आसार दिख रहे थे। वर्ष 2020 में यह इस तरह का तीसरा वाकया था। साल के शुरू में बैंकिंग नियामक ने दो अन्य सहकारी बैंकों-सीकेपी कोऑपरेटिव बैंक (महाराष्ट्र में) और मापुसा अर्बन कोऑपरेटिव बैंक ऑफ गोवा के लाइसेंस भी इन्हीं वजहों से रद्द कर दिए थे।

आरबीआई ने 17 नवंबर को लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) के कारोबार पर 30 दिन के लिए अस्थायी रूप से पाबंदी लगा दी। एक साल पहले इस बैंक को तत्काल सुधार कार्रवाई (प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन) वाली सूची में डाल दिया था और इसके द्वारा ऋण आवंटन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस घटना से करीब नौ महीने पहले मार्च के पहले सप्ताह में येस बैंक को भी इसी तरह की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा क्योंकि इसकी वित्तीय सेहत बिगड़ती जा रही थी। इन दोनों मामलों में कारोबार पर अस्थायी रूप से लगाई रोक समय से बहुत पहले वापस ले ली गई और जमाकर्ताओं को कोई नुकसान नहीं हुआ। इन दोनों बैंकों को संकट से बाहर निकाल लिया गया। देश के सबसे बड़े कर्जदाता भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने येस बैंक की कमान संभाल ली, जबकि सिंगापुर के डीबीएस बैंक लिमिटेड ने एलवीबी का विलय अपनी सहायक इकाई में कर लिया।


बीते साल कोविड-19 से निपटना भारतीय वित्तीय प्रणाली के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही, लेकिन एलवीबी और येस बैंक में हुए घटनाक्रम ने वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर दिया। वर्ष 2019 में विभिन्न राज्यों में कारोबार करने वाले पंजाब ऐंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक से पैदा हुए संकट के बाद इन तीन घटनाक्रम ने चिंताएं और बढ़ा दी हैं। आरबीआई अब तक ऐसे बैंकों को 100 से अधिक दिशानिर्देश जारी कर चुका है। इनके तहत आरबीआई ने उनके परिचालन पर अंकुश लगाया है या पाबंदी बढ़ा दी है। कई दूसरे सहकारी बैंक भी उसके निशाने पर हैं और इस वर्ष बैंकिंग नियमन अधिनियम में संशोधन के बाद भी हालात बदलने की उम्मीद नहीं लग रही है। इस संशोधन के बाद सहकारी बैंक आरबीआई के नियामकीय ढांचे में आ गए हैं। शहरी सहकारी बैंक और विभिन्न राज्यों में कारोबार करने वाले (मल्टी-स्टेट) सहकारी बैंक अब आरबीआई की निगरानी में आ गए हैं।


इन बैंकों में 8.6 करोड़ जमाकर्ताओं ने करीब 5 लाख करोड़ रुपये जमा किए हैं। हालांकि प्राइमरी क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटीज अब भी सात दशक पुराने बैंकिंग नियमन अधिनियम का हिस्सा हैं। इनमें कई बड़े सहकारी बैंकों की तरह राजनीति एवं कुप्रबंंधन की मिसाल बन चुके हैं। वित्तीय प्रणाली में कमजोर कड़ी समझी जाने वाली आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) के लिए भी नियम बदल गए हैं। अक्टूबर 2020 में आरबीआई ने स्पष्ट कर दिया कि आवास वित्त कंपनियों को आवास वित्त का हिस्सा मार्च 2024 तक सभी आवास वित्त कंपनियों की कुल परिसंपत्तियों में 60 प्रतिशत होना चाहिए। राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) से आवास वित्त कंपनियों की बागडोर अपने हाथ में लेने के बाद बैंकिंग नियामक ने यह संशोधन किया था। एचएफसी का नियमन अब गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) की श्रेणी के तौर पर किया जाता है और अब उनके पास पर्याप्त पूंजी होनी चाहिए। उनकी कारोबारी संरचना में बदलाव के लिए एक ढांचा तैयार कर लिया गया है। जो एचएफसी नए दिशानिर्देशों के अनुरूप अपने कारोबारी ढांचे में बदलाव नहीं कर पाएंगी, वे अपना पंजीयन गंवा सकती हैं। कोविड-19 महामारी के खिलाफ जारी मुहिम के मुकाबले ये घटनाएं छोटी हो सकती हैं, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने पास उपलब्ध संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल किया है।


पिछले तीन दशकों के दौरान आरबीआई के तीन गवर्नरों को अपने कार्यकाल के दौरान विकराल चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इनमें दास के समक्ष पेश हुई चुनौती सर्वाधिक कड़ी थी। सरकार ने अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए मई से जून के बीच 29.88 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक प्रोत्साहनों की घोषणा जरूर की थी, लेकिन इनमें आरबीआई द्वारा बाजार में नकदी बढ़ाने के लिए किए गए उपाय भी शामिल थे। इस तरह, आरबीआई ने देश के सकल घरलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.3 प्रतिशत हिस्से के बराबर के नकदी उपाय किए। हालांकि कोविड-10 के दुष्प्रभावों से लडऩे के लिए दुनिया के अन्य देशों द्वारा किए गए उपायों के मुकाबले भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम काफी कम साबित हुए। इससे आरबीआई का गवर्नर होने के नाते दास ने अर्थव्यवस्था का बोझ अपने कंधों पर ले लिया। मार्च और मई में दरों में दो चरणों में नीतिगत दर में कुल 1.15 प्रतिशत कमी करने के बाद रीपो रेट 4 प्रतिशत के निचले स्तर पर आ गया है। महामारी से लडऩे में अर्थव्यवस्था की मदद करने के लिए दरों में कटौती दास का मुख्य हथियार थी। आरबीआई ने परंपरागत और गैर-परंपरागत उपायों के जरिये वित्तीय प्रणाली में अधिक से अधिक नकदी डाल दी। बाजार में अत्यधिक नकदी उपलब्ध रहने से केंद्र और राज्य सरकारों को 22 लाख करोड़ रुपये उधारी जुटाने में मदद मिल रही है। उधार लेने वालों को राहत देने के लिए आरबीआई ने कर्ज की किस्तों के भुगतान से अस्थायी राहत दे दी और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) पर अंकुश लगाने के लिए बैंकों को कुछ खास किस्म के ऋणों के पुनर्गठन की भी इजाजत दे दी। इन सभी उपायों से अर्थव्यवस्था में उम्मीद से अधिक तेजी से सुधार हो रहा है। बैंकर भी कहने लगे हैं कि कर्ज भुगतान लगभग सामान्य हो गया है और बहुत कम कर्जदारों ने ही अपने ऋण का पुनर्गठन कराया है।


हालांकि यह मालूम चलने में थोड़ा समय लगेगा कि ये सभी बातें वाकई सच हैं या फिर बैंकिंग प्रणाली एक अवश्यसंभावी घटना को महज टालने की कोशिश कर रही है।


(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक और जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं)

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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