मौसम में बदलाव प्रकृति का अटल सत्य है। यही जीवन का आधार भी है। सर्दी में जमी बर्फ गर्मियों में जीवनदायिनी नदियों को लबालब पानी से भर देती है। ठंड या गर्मी किसी को परेशान तब करती है जब मौसम की तीव्रता नजर आती है। फिर हमारे समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता इसकी तल्खी को बढ़ा देती हैं। गर्मी में लू, ठंड में शीतलहर और बरसात में बाढ़ से प्रभावित होने वाला तबका वही है जो गरीब-विस्थापित है। इधर मौसम के व्यवहार में खासी तल्खी देखने में आई है। बड़े-बूढ़ों को कहते सुना जा सकता है कि हमारे समय में कभी ऐसी गर्मी व सर्दी नहीं पड़ी। निस्संदेह दशकों से पर्यावरणविद् और मीडिया जिस ग्लोबल वार्मिंग के संकट की बात कर रहे थे, उसका यथार्थ हमें देखने को मिल रहा है। रेगिस्तानी इलाकों में बाढ़ और मैदानी इलाकों में बर्फबारी की घटनाएं इसकी बानगी है। ऐसे में मौसम के व्यवहार की इस तीव्रता को हमें स्वीकारना चाहिए और उसी के अनुरूप हमें जीवनशैली विकसित करनी चाहिए। उसी तरह का खानपान हमें विकसित करना चाहिए। यह लड़ाई लंबी चलेगी और मौसम की तल्खी में और इजाफा होगा। इस सत्य को स्वीकार करते हुए सरकार व नीति नियंताओं को भविष्य की नीतियों का निर्धारण करना होगा। हालांकि, मौसम की इस तीव्रता में मनुष्य का करा-धरा ज्यादा है। कोरोना संकट के दौरान विश्वव्यापी लॉकडाउन के बाद प्रकृति में जो निखार दिखाई दिया, उसने मानवीय करतूतों से पर्दा हटाया है।
कड़ाके की सर्दी एक सत्य है। तापमान में अप्रत्याशित बदलाव भी सत्य है। लेकिन सर्दी का भय परोसना एक अर्द्धसत्य है। इसके साथ शुरू होने वाला बाजार अर्द्धसत्य है। मौसम की तल्खी के साथ शुरू होने वाला कारोबार मिथ्या है। दरअसल, मनुष्य का शरीर मनोभाव के आवेग से प्रभावित होता है। जब मौसम को भय के रूप में परोसा जाता है तो हम अधिक सर्दी महसूस करने लगते हैं। यह मौसम का मनोविज्ञान भी है। यह ठंड जानलेवा है और यह ठंड मजेदार है कहने के अलग-अलग प्रभाव शरीर पर होते हैं। सर्दी में गर्मी का अहसास एक विज्ञापनी सत्य नहीं, मनोवैज्ञानिक तर्क भी है। दरअसल, ठंड का मौसम कई मायनों में स्वास्थ्य के लिये लाभकारी भी होता है। इस मौसम में भूख बढ़ जाती है। हम तापमान को नियंत्रित करने के लिये ज्यादा खाद्य पदार्थ ले सकते हैं। जरूरत इस बात की भी है कि हम गर्म तासीर वाले खाद्य पदार्थ लें, जिन्हें सर्दी से बचाव के लिये हमारे पूर्वज सदियों से आजमाते रहे हैं। शारीरिक गतिशीलता, व्यायाम और योग हमारे शरीर को ऊष्मा देते हैं, जिससे हम सर्दी के दौरान अपना प्रतिरक्षा तंत्र विकसित कर सकते हैं। हकीकत यह है कि हम जितना कृत्रिम रहन-सहन और खानपान अपनाएंगे, मौसम की तल्खी ज्यादा महसूस करेंगे। जितना प्रकृति के साथ रहेंगे, उतना ही मौसम का आनंद उठाएंगे। विडंबना यह है कि आधुनिक चिकित्सा व बाजार तंत्र में जो हमारे हितैषी दिखते हैं उनके लिये हम उनके कारोबार का हिस्सा भी हैं। उनकी रीति-नीति इसी पर केंद्रित होती है।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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