हल वार्ता से ही ( राष्ट्रीय सहारा)

केंद्र  सरकार से आठवें दौर की वार्ता से ठीक एक दिन पहले किसानों द्वारा दिल्ली के चारों तरफ ट्रैक्टर रैली निकालना काफी हद तक उनकी ताकत का इजहार कराने में सफल रही है। रैली की खास बात है कि यह बेहद अनुशासित रही। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने इस तरह किसानों के इकट्ठा होने पर चिंता जताते हुए यह जरूर कहा कि राजधानी की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसान कोविड़–१९ से सुरक्षित हैं क्याॽ अदालत ने किसानों के कोविड़ काल में इस तरह जुटने को तब्लीगी जमात की घटना से भी जोड़़ा। अदालत की यह टिप्पणी कहीं–न–कहीं यह दर्शाती है कि शीर्ष अदालत किसानों के बड़े़ पैमाने पर जमावड़े़ को लेकर नाखुश है। यह इसलिए भी सही है क्योंकि पहले भी हमने देखा है कि एक ही जगह बिना किसी तैयारी और ऐहतियात के लोगों के जुटने से हालात गंभीर हुए हैं। ऐसे में अगर गणतंत्र दिवस के कुछ दिनों पहले दिल्ली के भीतर और उसकी सीमा पर कोरोना से बचाव के दिशा–निर्देशों का पालन नहीं करने से हालात बेहद ड़रावने होे सकते हैं। वैसे राहत की बात है कि अभी तक किसी तरह की कोई अप्रिय खबर आंदोलन स्थलों से नहीं आई है। जहां तक बात सरकार की है तो उन्हें भी अब वार्ता को दिखावटी नहीं बनाना होगा। अगर वह किसानों की सभी मांगों से इत्तेफाक रखती है तो उसे सहर्ष स्वीकार करे वरना बार–बार वार्ता के लिए समय मुकर्रर करना न्यायोचित नहीं कहा जा सकता है।


 हालांकि अब सरकार और किसान दोनों की नजर ११ जनवरी को सर्वोच्च अदालत में होने वाली सुनवाई पर टिकी है। वैसे अदालत ने अपनी पिछली टिप्पणी में यह जरूर बता दिया था कि अगर वार्ता से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकलेंगे तो वह अपने तरीके से मामले की सुनवाई करेगी। 

समय टकराव का नहीं है। इसलिए सरकार और किसानों को लचीला रुûख अपनाना ही होगा। अगर २६ जनवरी को अपने तय कार्यक्रम पर किसानों ने फिर से ट्रैक्टर रैली निकालने की हुंकार भरी है तो यह अच्छी बात नहीं है। स्वाभाविक रूप से इस कदम से टकराव बढ़ेøगा। ठीक है कि किसानों ने बेहद अनुशासित और इंतजाम के साथ ट्रैक्टर रैली को अंजाम दिया‚ लेकिन यह हर किसी को समझना होगा कि हल तो बातचीत से ही संभव है। लिहाजा कोई भी पक्ष न तो कर्कश हो और न विषयांतर‚ तभी बात बनेगी॥।

सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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