क्लासरूम वाली पढ़ाई (नवभारत टाइम्स)

महानगरों में रहनेवाले साधनसंपन्न परिवारों के बच्चों का एक छोटा तबका ही कायदे से ऑनलाइन क्लासेज का फायदा उठा पाया है। अव्वल तो सारे स्कूलों में यह सुविधा ही मौजूद नहीं है, और जहां है वहां भी लैपटॉप और मोबाइल तक सीमित पहुंच तथा बिजली और नेटवर्क जैसी बाधाओं के चलते ज्यादातर बच्चे क्लास की सारी बातें नहीं समझ पाए।

 

करीब दस महीनों से बंद पड़े स्कूल अब खुलने लगे हैं। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान से लेकर कर्नाटक और केरल तक कई राज्यों की सरकारें कुछ नियमों और शर्तों के साथ स्कूल खोलने की इजाजत दे रही हैं। इतनी लंबी अवधि तक स्कूलों का बंद रहना सबके लिए नुकसानदेह साबित हुआ है। कहने को इस दौरान ऑनलाइन क्लासेज चलती रही हैं, लेकिन आर्थिक, सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर अलग-अलग स्थिति वाले बच्चों के व्यक्तित्व विकास को ध्यान में रखें तो स्कूल जाकर क्लासरूम में पढ़ाई करने की कोई तुलना ऑनलाइन पढ़ाई से नहीं हो सकती। इसके अलावा यह भी मानना पड़ेगा कि ऑनलाइन कक्षाओं का चलन बच्चों में और भी दुखद श्रेणी विभाजन का कारण बना है।

महानगरों में रहनेवाले साधनसंपन्न परिवारों के बच्चों का एक छोटा तबका ही कायदे से ऑनलाइन क्लासेज का फायदा उठा पाया है। अव्वल तो सारे स्कूलों में यह सुविधा ही मौजूद नहीं है, और जहां है वहां भी लैपटॉप और मोबाइल तक सीमित पहुंच तथा बिजली और नेटवर्क जैसी बाधाओं के चलते ज्यादातर बच्चे क्लास की सारी बातें नहीं समझ पाए। एक ही क्लास में जानकारी के अलग-अलग स्तर वाले बच्चों को लेकर आगे बढ़ना शिक्षकों के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाला है। मगर बात इतनी ही नहीं है। दस महीने की इस बंदी ने शिक्षा का ढांचा ढह जाने का खतरा पैदा कर दिया है।


स्कूलों के वित्तपोषण से जुड़ी एक कंपनी आईएसएफसी द्वारा करवाए गए सर्वे के मुताबिक देश के 17.06 फीसदी स्कूल ऐसे रहे जहां इस साल फीस के नाम पर कुछ भी जमा नहीं हो पाया। 59.74 फीसदी स्कूलों में फीस कलेक्शन 40 प्रतिशत से भी कम रहा। स्वाभाविक रूप से इसका असर स्टाफ की सैलरी पर पड़ा। सर्वे के मुताबिक 26.49 फीसदी स्कूलों ने कर्मचारियों की छंटनी करने और 36.43 फीसदी ने वेतन में कटौती करने की बात स्वीकार की। जाहिर है, यह स्थिति लंबे समय तक नहीं चल सकती। राज्य सरकारों द्वारा स्कूल खोलने की इजाजत देने का एक रिश्ता इस संकट से भी है।


रहा सवाल महामारी का तो रोजाना नए संक्रमणों की संख्या भारत में भले कम हो गई हो, लेकिन वायरस का खतरा कम नहीं हुआ है। खासकर ब्रिटेन से फैल रहे कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन ने स्कूलों के लिए मुश्किल और बढ़ा दी है। वहां हालात लगभग काबू में आ गए थे, मगर युवाओं और बच्चों के लिए ज्यादा खतरनाक इस नए स्ट्रेन का उत्पात देखकर पूरे देश में फिर से सख्त लॉकडाउन लागू करना पड़ा। वैक्सीनें अगर पूरी तरह प्रभावी साबित होती हैं तो भी व्यापक आबादी तक उनके पहुंचने में वक्त लगेगा। ऐसे में बचाव का सबसे कारगर तरीका आज भी अधिकतम सावधानी बरतने का ही है। सरकारों ने स्कूलों पर ऐसी कई पाबंदियां लगाई हैं, पर उनका पालन सुनिश्चित करने का काम अभिभावकों और स्कूल प्रबंधन के ही जिम्मे है।

सौजन्य - नवभारत टाइम्स।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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