संपादकीय: चुनौती का सामना (जनसत्ता)

चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि को लेकर केंद्र सरकार ने जो ताजा आंकड़े जारी किए हैं, वे आने वाले दिनों में कुछ राहत के संकेत तो देते हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) ने गुरुवार को आर्थिक विकास दर को लेकर जो अनुमान व्यक्त किया है, उसके मुताबिक देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 7.7 फीसद की गिरावट रहेगी।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसद की गिरावट दर्ज की गई थी और तब से लेकर ऐसी आशंकाएं जताई जाती रहीं कि इस साल जीडीपी में दस फीसद से ज्यादा गिरावट रहेगी। लेकिन कुछ महीनों को छोड़ दें तो बाद के महीनों में यानी सितंबर 2020 के बाद जैसे-जैसे आर्थिक गतिविधियों ने जोर पकड़ा, वैसे वैसे हालात पटरी पर आने के संकेत मिलने लगे थे। 23.9 फीसद का आंकड़ा अब साढ़े सात फीसद के पास आ जाने का अनुमान है।

देश पिछले पूरे साल जिन संकटपूर्ण हालात से गुजरा और कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए पूर्णबंदी जैसा कठोर कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा, उससे औद्योगिक गतिविधियों सहित संपूर्ण अर्थव्यवस्था को झटका तो लगना ही था। छोटे-बड़े सभी उद्योग एकदम बंद हो गए थे, साथ ही इस्पात, बिजली, सीमेंट, खनन, तेल और गैस, कोयला जैसे प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादन ठप हो गया था। ऐसे में पहली तिमाही में जीडीपी को गिरने से रोकना संभव नहीं था।

फिलहाल संतोषजनक बात यह भी है कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष सहित कई वैश्विक संस्थानों और रेटिंग एजेंसियां भारत की आर्थिक वृद्धि को लेकर जो अनुमान व्यक्त करती रही हैं, उनकी तुलना में अर्थव्यवस्था में सुधार कहीं ज्यादा बेहतर नजर आ रहा है। यह इस बात का संकेत है कि उत्पादन फिर से जोर पकड़ चुका है। उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन, वाहन उद्योग, विनिर्माण उद्योग, सेवा क्षेत्र आदि अब संकट के दौर से निकल रहे हैं। हालांकि भारतीय बाजार में मांग का संकट अभी कायम है।

इसकी वजह सीधे-सीधे रोजगार से जुड़ी है। पूर्णबंदी के दौरान जिन लोगों का रोजगार चला गया था, उनमें से अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके पास काम नहीं है। असंगठित क्षेत्र में हालात और भी बुरे हैं। मांग नहीं निकलने का बड़ा कारण बढ़ती महंगाई भी है। औद्योगिक इकाइयों ने अपने उत्पादों के दाम जिस तेजी से बढ़ा दिए हैं, उससे भी मांग ठंडी पड़ गई है।

हालांकि सितंबर-अक्तूबर के महीने में जो मांग निकली दिखी थी, वह त्योहारी मांग थी। लेकिन अब बाजारों में फिर से मंदी है। रियल एस्टेट क्षेत्र अभी भी भारी मंदी के दौर से गुजर रहा है। इसलिए अर्थव्यवस्था को ऊपर लाने के लिए अभी काफी राहत और प्रोत्साहनों की जरूरत है।

इस वक्त सरकार बजट की तैयार करने में जुटी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस बार बजट निर्माण का काम ज्यादा चुनौतियों से भरा होगा, क्योंकि सरकार का सारा जोर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाकर जीडीपी बढ़ाना है। हालांकि आर्थिक वृद्धि दर को चार-पांच फीसद तक लाने में अभी लंबा समय लगेगा। पिछले साल नवंबर में जीडीपी के जो आंकड़े आए थे, उनसे भी साफ हो गया था कि गिरावट का दौर अब थमने लगा है। मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार चार बार प्रोत्साहन पैकेज घोषित कर चुकी है। लेकिन इनके नतीजे उस तेजी से देखने को नहीं मिल रहे हैं जितनी कि उम्मीद की गई थी।

इसका एक बड़ा कारण लोगों के पास रोजगार नहीं होना है। अर्थव्यवस्था को चलाने में कामकाजी तबके और असंगठित क्षेत्र की भूमिका प्रमुख होती है। लेकिन अभी तक ये दोनों ही उपेक्षा के शिकार नजर आ रहे हैं। बिना इन पर ध्यान दिए जीडीपी कैसे बढ़ेगी!

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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