रविशंकर
भारत ने पंजाब से रावी नदी का बहाव पाकिस्तान की ओर कम करने की कवायद एक बार फिर से शुरू कर दी है। रावी नदी के बहाव को नियंत्रित करने के लिए भारत ने शाहपुरकंडी डैम का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है‚ ताकि पाक की ओर जाने वाले रावी के पानी को नियंत्रित किया जा सकेगा। मालूम हो‚ केंद्र सरकार ने २०१८ में पाकिस्तान के साथ तनाव के बीच भारत की नदियों के वहां की ओर बहाव को कम करने की बात कही थी। यह डैम पंजाब सरकार द्वारा २७९५ करोड़ रु पये की अनुमानित लागत से बनाया जा रहा है। ॥ इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ४८५.३८ करोड़ रु पये की मदद भी कर रही है। इस डैम के मुकम्मल होने से पड़ोसी देश पाकिस्तान को पानी के लिए तरसना होगा। साथ ही पंजाब और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में जल संकट का काफी हद तक निवारण होगा। पंजाब एवं केंद्र सरकार की इस साझा परियोजना को पूरा करने का लIय मई २०२२ निर्धारित किया गया है।
बहरहाल‚ शाहपुरकंडी में रणजीत सागर बांध परियोजना पहले से ही कार्यान्वित है‚ लेकिन जल संधि के तहत जिन पूर्वी नदियों के पानी के इस्तेमाल का अधिकार भारत को मिला था उसका उपयोग करते हुए भारत ने सतलुज पर भांखड़ा बांध‚ ब्यास नदी पर पोंग और पंदु बांध और रावी नदी पर रंजित सागर बांध का निर्माण किया। इसके अलावा भारत ने इन नदियों के पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए ब्यास–सतलुज लिंक‚ इंदिरा गांधी नहर और माधोपुर–ब्यास लिंक जैसी अन्य परियोजनाएं भी बनाई। इससे भारत को पूर्वी नदियों का करीब ९५ प्रतिशत पानी का इस्तेमाल करने में मदद मिली।
हालांकि इसके बावजूद रावी नदी का करीब २ मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी हर साल बिना इस्तेमाल के पाकिस्तान की ओर चला जाता है। इस पानी को रोकने के लिए भारत डैम का निर्माण कर रहा है। बांध के बनने से पंजाब के साथ ही जम्मू–कश्मीर को भी लाभ होगा। बांध से २०६ मेगावाट बिजली तैयार होगी‚ जबकि पंजाब की ५००० हेक्टेयर एवं जेएंडके की ३२१७२ हेक्टेयर भूमि भी सिंचित होगी। एक अनुमान के मुताबिक इससे सालाना ८५२.७३ करोड़ रु पये का सिंचाई और बिजली का लाभ भी होगा। जम्मू–कश्मीर सरकार को इस प्रोजेक्ट पर एक पैसा भी खर्च नहीं करना है। यही नहीं नये समझौते के मुताबिक जम्मू–कश्मीर को जितने पानी की भी जरूरत होगी वह बांध से ले सकेगा। बता दे‚ रावी नदी भारत के पश्चिम और उत्तरी हिस्से के बीच से बहने वाली वो नदी जो भारत के साथ–साथ पाकिस्तान की जमीं को भी सींचती है।
मालूम हो‚ भारत और पाकिस्तान के बीच १९६० में हुई सिंधु नदी जल संधि के तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया। सतलज‚ ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया जबकि झेलम‚ चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया। रावी‚ सतलुज और ब्यास जैसी पूर्वी नदियों का पूरी तरह इस्तेमाल के लिए भारत को दे दिया गया। इसके साथ ही पश्चिम नदियों सिंधु‚ झेलम और चेनाव नदियों का पानी पाकिस्तान को दिया गया‚ जबकि इसका एक बहुत छोटा हिस्सा चीन और अफगानिस्तान को भी मिला हुआ है।
आंकड़ों के अनुसार लगभग ३५ करोड़ की आबादी सिंधु नदी के थाले में रहती है। खैर‚ समझौते के मुताबिक पश्चिमी नदियों का पानी‚ कुछ अपवादों को छोड़े दें तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है‚ जैसे बिजली बनाना‚ कृषि के लिए सीमित पानी इत्यादि। भारत को इसके अंतर्गत इन नदियों के २० फीसद जल के उपयोग की अनुमति है‚ जबकि वर्तमान में वह मात्र ७ फीसद जल का ही उपयोग इन कार्यों के लिए कर रहा है। पाकिस्तान ने कई बार आरोप लगाया है कि भारत सिंधु की नदियों पर बांध बनाकर पानी का दोहन करता है और उसके इलाके में पानी कम आने के कारण सूखे के हालात रहते हैं। इन मसलों पर पाकिस्तान ने भारत को कई बार अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में घसीटा है किंतु अधिकांशतः मामलों में उसे सफलता नहीं मिली है।
सिंधु समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है। न्यायालय का मानना है कि अगर दो राष्ट्रों के बीच मूलभूत स्थितियों में परिवर्तन हो तो किसी भी संधि को रद्द किया जा सकता है। यदि भारत ऐसा कोई कदम उठाता है तो पाकिस्तान एक मरुûस्थल में बदल सकता है। अतः इससे समझा जा सकता है कि पाकिस्तान के लिए सिंधु और उसकी सहायक नदियों का पानी क्या मायने रखता है। खैर‚ भारत के इस चक्रव्यूह में फंसे पाकिस्तान का आर्तनाद कुछ समय तक अवश्य ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुनाई पड़ेगा‚ लेकिन वर्तमान में पानी की कमी सीमाओं के दोनों तरफ लोगों की भावनाओं को हवा दे रही है।
सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।
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