आदिति फडणीस
यह विकट समस्या किसी से छिपी नहीं है और 2021 में भी बनी रह सकती है। इस वर्ष भारत के अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के साथ संबंधों में चीन का साया पहले से अधिक रहने के आसार हैं।
तात्कालिक निकट घटनाक्रम नेपाल में अप्रैल में होने वाले चुनाव हैं। हालांकि भारत ने नेपाल में चुनाव की नौबत लाने वाले हाल के घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने अभियान में राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर अपनी पार्टी- नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में कड़े सत्ता संघर्ष को संप्रभुता की लड़ाई में बदलने की कोशिश की है। उनके हर कदम का चीन समर्थन कर रहा है। नेपाल में राष्ट्रवाद का मूल बिंदु वर्ष 2015 के संविधान को लेकर बहस है, जिसमें मधेशियों की जातीय पहचान को कमजोर करने की कोशिश की गई। ये मधेशी तराई यानी बिहार से सटे मैदानी क्षेत्र में रहते हैं। मधेशियों का मुद्दा और व्यापक रूप में भारत का मुद्दा चुनावी अभियान में एक अहम भूमिका निभा सकता है। इससे भारत और चीन की भूमिका घरेलू राजनीति में विवाद का विषय रहेगा।
चीन का साया भारत-पाकिस्तान संबंधों पर भी रहेगा। हालांकि इस समय इमरान खान सरकार आंतरिक उठापटक से जूझ रही है, लेकिन ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि यह सरकार वर्ष 2023 में आम चुनावों तक बनी रहेगी। पाकिस्तान के बाह्य खाते को मदद का आईएमएफ का कार्यक्रम 2021 की शुरुआत में फिर से शुरू होने के आसार हैं। इस्लामाबाद के एक राजनीतिक विश्लेषक मुशर्रफ जैदी ने कहा, 'सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सेना के मौन समर्थन से 2023 तक अपना कार्यकाल पूरा करेगी। इसके बावजूद राजनीतिक स्थिरता में अहम जोखिम होंगे। विरोध आंदोलन से सरकार पर दबाव आएगा।' लेकिन स्वतंत्र विश्लेषकों का मानना है कि भारत के साथ संबंध तनावपूर्ण रहेंगे क्योंकि चीन और पाकिस्तान संधियों को मजबूत कर रहे हैं, विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पर, जो अपने निर्धारित समय से पीछे चल रहा है। चीन का साया भारत के श्रीलंका, मालदीव और भूटान के साथ संबंधों को भी प्रभावित करेगा।
लंदन के ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट््यूट में एक श्रीलंकाई शोधार्थी गणेशन विघ्नराजा इस आम धारणा को दुरुस्त करते हैं कि श्रीलंका की विदेशी ऋण देनदारियों में ज्यादातर हिस्सा चीन के ऋण का है, इसलिए श्रीलंका चीन के नियंत्रण में है। उन्होंने कहा, 'श्रीलंका पर वित्तीय बाजारों और बहुराष्ट्रीय एवं द्विपक्षीय ऋणदाताओं के अपने सार्वजनिक ऋण में ज्यादा हिस्सा चीन का है। श्रीलंका का पिछले एक दशक में जीडीपी के मुकाबले अधिक ऋण अनुपात 30 साल के गृह युद्ध की कीमत, उसके बाद कमजोर वृद्धि और मुद्रा में अहम मूल्यहृास को दर्शाता है।' उन्होंने कहा कि श्रीलंका के बाह्य सार्वजनिक ऋण में चीन का हिस्सा वर्ष 2018 में 5 अरब डॉलर था यानी जीडीपी का करीब छह फीसदी।
लेकिन विघ्नराजा ने कहा कि श्रीलंका में चीन के पैर जमाने को लेकर भारतीय चिंताएं साफ हैं। उन्होंने कहा, 'ये चिंताएं इसलिए पैदा हुई हैं कि चीन की एक सरकारी कंपनी द्वारा प्रबंधित हंबनटोटा बंदरगाह का वाणिज्यिक एवं सैन्य इस्तेमाल किया जा सकता है। श्रीलंकाई नौसेना ने भारत को फिर से आश्वस्त करने के लिए कहा कि वह हंबनटोटा बंदरगाह पर विदेशी जहाजों की पोर्ट कॉल और सुरक्षा का प्रबंधन करती है।' इस संबंध का 2021 में व्यापक प्रबंधन देखने को मिलेगा। एक ऐसा देश जिसके साथ भारत के अब बेमिसाल संबंध हैं, वह मालदीव है। वहां के मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह ने चीन की तरह झुकाव वाले अपने पूर्ववर्ती अब्दुल्ला यामीन के पांच साल के कार्यकाल के दौरान भारत के हितों को पहुंचाए गए नुकसान को कम करने की कोशिश की है। इस साल की शुरुआत में भारत ने कोविड-19 के आर्थिक असर से निपटने के लिए मालदीव को 25 करोड़ डॉलर के ऋण की घोषणा की थी। इसके कुछ दिनों के भीतर ही भारत ने उत्तरी मालदीव में हनीमाधु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की तैयारी का काम शुरू कर दिया। इसे मालदीव के उस हिस्से में सबसे बड़ा बुनियादी ढांचा और संपर्क परियोजना करार दिया गया है। हालांकि यह परियोजना मालदीव सरकार की निविदा के बाद औपचारिक रूप से 2021 में शुरू होगी। लेकिन कुछ सप्ताह पहले ही भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) की टीम ने आकलन एवं शुरुआती सर्वेक्षण के लिए हवाई अड्डे का दौरा किया था। एएआई की टीम विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर रही है और उसे दो महीने में सौंपेगी।
हालांकि भूटान चीन के साथ अपने सीमा विवाद को लेकर जूझ रहा है। लेकिन वहां की सरकार ने भारत को भरोसा दिया है कि उसके हित सुरक्षित हैं। अक्टूबर, 2020 के आखिर में अमेरिका की उपग्रह तस्वीर प्रदाता मैक्सर टेक्नोलॉजिज ने कहा कि चीन ने भूटान के एक गांव पर कब्जा कर लिया है। इसके बाद भारत में भूटान के राजदूत वेटसोप नामग्याल भारत की चिताएं दूर करने के लिए आगे आए। कोविड-19 संक्रमण फैलने के बाद भूटान की अर्थव्यवस्था और समाज उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन इस बात का कोई संकेत नहीं है कि वर्ष 2021 में उसके भारत के साथ संबंधों में कोई नाटकीय बदलाव आएगा।
बांग्लादेश का रुख अज्ञात है। यह बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल एवं असम में घरेलू राजनीति की खींचतान एवं दबावों पर निर्भर करता है। असम और पश्चिम बंगाल में चुनावी अभियान तेज हो रहा है, इसलिए भारत में बांग्लादेश से आप्रवास का मुद्दा उठेगा। हालांकि नदी जल के बंटवारे को एक सुलझा हुआ मुद्दा माना जाता है, लेकिन यह पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव अभियान में राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। कोविड-19 का महामारी का असर कम हो रहा है, इसलिए 2021 पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने का वर्ष रहने की संभावना है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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