वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का संग्रह दिसंबर में 1.15 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है। यह राशि पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 11.6 फीसदी अधिक है। यह लगातार तीसरा महीना है जब संग्रह एक लाख करोड़ रुपये के स्तर से ऊपर गया है। जीएसटी संग्रह में इजाफे को मजबूत आर्थिक सुधार के रूप में देखा जा रहा है लेकिन इन आंकड़ों को सावधानी से देखना होगा। यह सही है कि आर्थिक गतिविधियां कोविड-19 के कारण लागू बंदी से उबर रही हैं लेकिन संकेत अभी भी मिलेजुले हैं। उदाहरण के लिए मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स के ताजा आंकड़े उत्साहित करने वाले हैं लेकिन बुनियादी क्षेत्रों के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती है। सितंबर में सात महीनों की सबसे कम 0.1 फीसदी की गिरावट दर्ज करने के बाद आठ बुनियादी उद्योग नवंबर में 2.6 फीसदी गिरे। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में इनकी हिस्सेदारी करीब 40 प्रतिशत है। नवंबर की गिरावट सीमेंट और इस्पात के कारण आई। इसी प्रकार रेलवे मालवहन नवंबर में बढ़ा लेकिन बिजली की मांग कम हुई।
जीएसटी संग्रह बढऩे की कई अन्य वजह भी हैं। उदाहरण के लिए कर संग्रह शायद त्योहारी मौसम की मांग दर्शा रहा हो और यह स्तर आने वाले महीनों में बरकरार न रहे। ध्यान रहे कि दिसंबर के आंकड़े नवंबर की गतिविधियों से उपजे हैं। आयातित वस्तुओं पर संग्रह 27 फीसदी बढ़ा। शायद यह भी आगे दोहराया न जाए।
सरकार ने जीएसटी व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए भी कई कदम उठाए। इनकी वजह से भी संग्रह बढ़ सकता है। सरकार ने कर वंचना रोकने के लिए व्यापक अभियान छेड़ा और करीब 7,000 कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। सरकार ने अक्टूबर से 500 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार वाली कंपनियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक इनवॉइसिंग आवश्यक कर दी थी। अब इसे 100 करोड़ रुपये के कारोबार तक बढ़ा दिया गया है। सरकार डेटा एनालिटिक्स जैसे उपायों से भी कर वंचना रोकने का प्रयास कर रही है। कर संग्रह को सन 2018-19 और 2019-20 के बकाया कर के भुगतान से भी मदद मिली होगी। इसे 31 दिसंबर तक चुकाया जाना था।
सरकार ने कर वंचना पर कड़ी निगाह रखने के लिए कई कदम उठाए। इनमें कुछ बड़ी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई भी शामिल है। इसका भी असर कर संग्रह पर नजर आया है। जीएसटी व्यवस्था में सुधार ने भी जरूर कर संग्रह का आधार बढ़ाया और आर्थिक सुधार में भी मदद की। सरकार चालू वित्त वर्ष में खर्च करने के मामले में भी कंजूस रही है। नवंबर तक केंद्र सरकार का कुल व्यय 4.7 फीसदी बढ़ा जबकि पूरे वर्ष के लिए बजट में 13 फीसदी इजाफा होने की बात कही गई थी। कर संग्रह में सुधार से व्यय को गति मिलेगी और इस प्रकार वृद्धि को भी। उच्च जीएसटी संग्रह राज्य सरकारों पर भी वित्तीय दबाव कम करेगा। परंतु फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि संग्रह में कर वंचना कम होने के कारण ज्यादा सुधार हुआ है या आर्थिक गतिविधियां बढऩे से।
चाहे जो भी हो अहम बात यह है कि सालाना आधार की तुलनाओं को लेकर बेफिक्र होने की जरूरत नहीं है। आर्थिक गतिविधियों के आंकड़ों में आने वाले महीनों में जबरदस्त सुधार नजर आएगा। विशेषतौर पर अप्रैल से ऐसा होगा। इसे लेकर सावधान रहना होगा। वित्त वर्ष 2020-21 के बजाय बेहतर होगा कि हम वित्त वर्ष 2022 में तुलना करें। नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि सुधार मध्यम अवधि में स्थायित्व भरा हो। जीएसटी व्यवस्था में सुधार और कुल कर संग्रह में बेहतरी से सरकार को वृद्धि को समर्थन देने में मदद मिलेगी वह भी बिना अतिरिक्त वित्तीय जोखिम लिए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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