अनूप भटनागर
कोविड-19 महामारी से उत्पन्न परिस्थितियों की वजह 2020 में अनुच्छेद 370 के अनेक प्रावधान खत्म करने, नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिकता, महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण जैसे अनेक महत्वपूर्ण मसलों पर न्यायपालिका को विचार करने का अवसर नहीं मिला। इसी बीच, किसानों के आन्दोलन से उत्पन्न स्थिति और विवादास्पद तीन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती का मामला भी न्यायालय के विचारार्थ आ गया है।
देश में कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर न्यायपालिका ने 16 मार्च, 2020 से मुकदमों की सुनवाई सीमित कर दी थी। वैसे तो यह व्यवस्था शुरू होने से पहले ही कुछ न्यायाधीशों के अस्वस्थ हो जाने के कारण उच्चतम न्यायालय में तमाम महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई का कार्यक्रम गडमड हो गया था।
बहरहाल, संक्रमण के बाद से शीर्ष अदालत में सिर्फ ‘अत्यावश्यक महत्व के’ चुनींदा मुकदमों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई का सिलसिला शुरू हुआ था। धीरे-धीरे इन मामलों की सुनवाई करने वाली पीठ की संख्या बढ़ी लेकिन इसके बावजूद सार्वजनिक महत्व के अनेक मुकदमों पर सुनवाई नहीं हो सकी। इसकी वजह यह है कि इनमें से कई मामलों पर पांच या इससे ज्यादा सदस्यों वाली संविधान पीठ को विचार करना था जो कोविड-19 के दौर में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के लिए व्यावहारिक नहीं हो पा रहा था।
इस अप्रत्याशित संकट की वजह से सबरीमला मंदिर व मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और दाउदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के खतने से संबंधित प्रकरण, संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान खत्म करने, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं, हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले आरोपियों के नाम-चित्र चौराहों पर लगाने जैसे मामलों की सुनवाई अधर में लटक गयी थी।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने सबरीमला मंदिर और मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, दाउदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के खतने और पारसी समुदाय से बाहर विवाह करने वाली स्त्री को किसी परिजन के अंतिम संस्कार से जुड़ी पवित्र अग्नि के अज्ञारी कार्यक्रम में शामिल होने से वंचित करने सहित कई धार्मिक मुद्दों से जुड़े सात सवालों पर 17 फरवरी को सुनवाई शुरू की थी। लेकिन कोरोना संकट की वजह से यह अधर में लटक गया।
इस संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति आर. भानुमति सेवानिवृत्त हो चुकी हैं और प्रधान न्यायाधीश बोबडे का कार्यकाल भी 23 अप्रैल तक ही है। ऐसी स्थिति में इन मामलों पर निकट भविष्य में सुनवाई शुरू होने की संभावना कम ही लगती है। प्रधान न्यायाधीश ने पांच मार्च को कहा था कि धार्मिक मुद्दों से संबंधित मामलों की सुनवाई के बाद ही नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होगी।
दूसरी ओर, दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने संबंधी अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों के साथ ही अनुच्छेद 35ए को समाप्त करने के केन्द्र के फैसले के खिलाफ मामले विचाराधीन थे। इन मामलों की सुनवाई के लिए पहले गठित हुई संविधान पीठ को नये सिरे से गठित करने की आवश्यकता होगी।
मराठा समुदाय के लिए शिक्षा और रोजगार में आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र ने 2018 में कानून बनाया था। लेकिन इस कानून की वैधता को लेकर उठे विवाद के कारण इस पर अंतरिम रोक लगी हुई है, जिस वजह से इसका लाभ जनता तक नहीं पहुंच रहा है।
मराठा आरक्षण के मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा 25 जनवरी से सुनवाई शुरू होने की उम्मीद है। न्यायालय ने नौ दिसंबर को इस मामले को 25 जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया है।
देश में 27 सितंबर से तीन कृषि कानूनों को लागू किये जाने के बाद से ही किसान आंदोलनरत हैं। इन कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर न्यायालय ने 12 अक्तूबर को केन्द्र को नोटिस जारी किया था।
इसी बीच, किसानों की घेराबंदी से एक नया अध्याय शुरू हो गया था। इस घेराबंदी से अवरुद्ध रास्तों से किसानों को हटाने के लिए दायर याचिका पर न्यायालय ने 17 दिसंबर को स्पष्ट कर दिया था कि सभी पक्षों को सुने बगैर कोई आदेश नहीं दिया जायेगा। हां, न्यायालय ने लंबित मामले में विभिन्न किसान यूनियनों को भी प्रतिवादी बनाने की अनुमति दी थी। न्यायालय ने 17 दिसंबर को किसानों के अहिंसक विरोध प्रदर्शन का अधिकार स्वीकार करते हुए सुझाव दिया था कि केन्द्र फिलहाल इन तीन विवादास्पद कानूनों पर अमल स्थगित कर दे क्योंकि वह इस गतिरोध को दूर करने के इरादे से कृषि विशेषज्ञों की एक ‘निष्पक्ष और स्वतंत्र’ समिति गठित करने पर विचार कर रहा है।
उच्चतम न्यायालय में पिछले साल मार्च से ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मुकदमों की सुनवाई हो रही है और मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए निकट भविष्य में प्रत्यक्ष सुनवाई की संभावना कम ही नजर आ रही है। इसके बावजूद, उम्मीद है कि न्यायालय महत्वपूर्ण तथा संवेनशील मुद्दों पर शीघ्र सुनवाई करके इन पर अपनी सुविचारित व्यवस्था देगा।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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