कृषि कानूनों और किसान आंदोलन पर केंद्र सरकार के तौर-तरीकों पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी (दैनिक जागरण)

यह बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा कि वे पहले की तरह रास्ते रोककर बैठे रहें और इसके चलते दिल्ली-एनसीआर के लोग तंग होते रहें। सुप्रीम कोर्ट को किसानों के साथ-साथ उनके धरने से त्रस्त हो रहे आम लोगों का भी ध्यान रखना चाहिए।

कृषि कानूनों के साथ-साथ किसानों के आंदोलन पर विचार-विमर्श कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के तौर-तरीकों पर नाराजगी जताते हुए एक बार फिर वही संकेत दिए, जो उसकी ओर से कुछ समय पहले भी दिए गए थे। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं कि वह कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने और इन कानूनों की समीक्षा के लिए समिति गठित करने जैसे कदम उठाएगा या नहीं? उसका फैसला जो भी हो, लेकिन उसे कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे लोगों को यह संदेश जाए कि वे सड़कों पर उतर कर किसी कानून पर अमल रोक सकते हैं। यदि ऐसा कोई संदेश गया तो दिल्ली आए दिन वैसे ही धरना-प्रदर्शनों से घिरी रहेगी, जैसे बीते लगभग 45 दिनों से घिरी हुई है। नि:संदेह सुप्रीम कोर्ट को संसद से पारित कानूनों की वैधानिकता परखने का अधिकार है, लेकिन यह ठीक नहीं होगा कि वह उनकी समीक्षा के लिए समितियों का गठन करने लगे। न्यायपालिका को ऐसी किसी नई परंपरा की शुरुआत नहीं करनी चाहिए, जिससे विधायिका और कार्यपालिका के फैसलों की विसंगतियों को दूर करने के नाम पर उनके अधिकारों में कटौती होती हुए दिखे। सुप्रीम कोर्ट को इसकी अनदेखी भी नहीं करनी चाहिए कि खुद सरकार कृषि कानूनों की कथित खामियों को दूर करने के लिए एक समिति गठित करने की पेशकश कर चुकी है।


सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन को लेकर यह टिप्पणी भी की कि यदि कुछ गलत हो गया तो उसके जिम्मेदार हम सब होंगे। उसने यह भी कहा कि हम नहीं चाहते कि हमारे हाथ किसी के खून से रंगे हों। निश्चित रूप से कोई भी ऐसा नहीं चाहेगा, लेकिन क्या इसे विस्मृत कर दिया जाए कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में रास्ता रोककर जो धरना दिया जा रहा था, उसमें उसने हस्तक्षेप किया था और उसका कोई नतीजा नहीं निकला। उलटे यह धरना दिल्ली में भीषण दंगों की वजह बना। किसी को सुप्रीम कोर्ट को यह स्मरण कराना चाहिए कि उसने शाहीन बाग में धरना दे रहे लोगों को समझाने-बुझाने के लिए वार्ताकार नियुक्त कर कुल मिलाकर उन तत्वों का मनोबल ही बढ़ाया, जो रास्ते से हटने को तैयार नहीं थे। इस बार ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को समाधान की दिशा में आगे बढ़ने के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसानों का धरना वास्तव में शांतिपूर्ण तरीके से हो। यह बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा कि वे पहले की तरह रास्ते रोककर बैठे रहें और इसके चलते दिल्ली-एनसीआर के लोग तंग होते रहें। सुप्रीम कोर्ट को किसानों के साथ-साथ उनके धरने से त्रस्त हो रहे आम लोगों का भी ध्यान रखना चाहिए।

सौजन्य - दैनिक जागरण।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment