दुनिया ने देखा भारत का आत्मविश्वास (प्रभात खबर)

प्रो सतीश कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

घरेलू राजनीति की तरह विश्व राजनीति की पड़ताल वार्षिक नहीं हो सकती. एक वर्ष में बहुत कुछ नहीं बदल सकता. लेकिन 2020 एक ऐसा वर्ष रहा, जहां से विश्व राजनीति की बुनियाद बदली है या बदलने का पूरा बंदोबस्त हो चुका है. अगर भारत की विश्व राजनीति में शिरकत और उसकी खासियत की चर्चा करें, तो कई चौराहे आते है, जहां से भारत की विदेश नीति किसी और दिशा में भी मुड़ सकती थी, लेकिन उसने जो करवट ली, उसमें 1954, 1991, 1998 और 2020 की पहचान अलग है.


विदेशमंत्री एस जयशंकर ने अपनी पुस्तक में भी छह महत्वपूर्ण कालखंडों के आधार पर भारतीय विदेश नीति की चर्चा की है. लेकिन वर्ष को ध्यान में रखकर अगर विवेचना करें, तो 2020 को नये काल खंड का प्रारंभ माना जा सकता है.

वैश्विक महामारी के साथ इस साल की शुरुआत हुई थी और देखते-देखते चीन के वुहान से निकला वायरस पूरी दुनिया के लिए बड़ी चुनौती बन गया.

चीन और अमेरिका के बीच के शीत युद्ध ने विश्व को दो खंडों में बांट दिया. चीन के आर्थिक बोझ से दबे देशों ने उसके विरुद्ध बन रही गोलबंदी से अपने को बाहर रखा. उस गोलबंदी में चीन के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव से चोटिल देश चीन उसके विरुद्ध एक मुहिम के साथ खड़े थे. इस शीत युद्ध में अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी थीं. पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन और फिर सयुंक्त राष्ट्र भी घेरे में आ गया. भारत का आरंभिक निर्णय पहले की तरह गुटनिरपेक्षता की तरह था, लेकिन महामारी के बीच चीन ने लद्दाख क्षेत्र में भारत के विरुद्ध नये सीमा विवाद की चिंगारी पैदा कर दी.

वह अपनी सैनिक और आर्थिक शक्ति के मद में इतना चूर था कि उसे 2017 का दोकलाम घटनाक्रम याद नहीं रहा. उसे गुमान था कि भारत की जरूरत की ढेरों चीजें चीन से मुहैया होती हैं, तो भारत सीमा विवाद पर घुटने टेक देगा. भारत का सिद्धांत था कि राजनीतिक झगड़े व्यापार के आड़े नहीं आयेंगे, लेकिन चीन ने भारत को महज आश्रित समझने की भूल कर दी. भारत ने ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ हिंद प्रशांत क्षेत्र में साझा पहल को आगे बढ़ाने पर जोर दिया है. चीन के आक्रमक और व्यवस्था विरोधी रवैये के बरक्स इस चतुष्क मंच को कारगर बनाने की चुनौती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिया गया आत्मनिर्भर भारत का निर्णय 2020 का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय बन गया. दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी भारत में है. साल 1978 में चीन ने जब तत्कालीन राष्ट्रपति देंग के कार्यकाल में आर्थिक उदारवाद की शुरुआत की थी, तब सबसे बड़ी युवा आबादी चीन के पास थी. लेकिन चार दशकों में वह पीढ़ी बुढ़ापे के मुहाने पर पहुंच चुकी है.

जो चमत्कार चीन ने हुनर और कौशल के साथ उस समय किया, उसी परिवर्तन का प्रारंभ भारत ने 2020 में किया है. यह रेखांकित किया जाना चाहिए कि हमेशा से हमारी विदेश नीति का आधार आत्मबल रहा है. शीत युद्ध (1947-91) के दौरान भारत किसी गुट का हिस्सा नहीं बना. साल 1991 से 2008 के बीच जब विश्व व्यवस्था पर अमेरिका हावी हुआ, तब भी भारत ने अपनी संयमित दूरी बनाये रखी.

आज जब भारत एक मिडिल पॉवर है और अमेरिका के साथ संबंध अच्छे हैं, तब भी भारत अपनी स्वायत्तता और स्वतंत्रता को बनाये हुए है. अमेरिका के साथ रूस और फ्रांस से भी भारत की मित्रता है.

आत्मनिर्भर भारत का अर्थ बिल्कुल दुनिया से कटना या संबंध विच्छेद करना नहीं है, बल्कि दुनिया को विकास की धारा में जोड़ना और एक दूसरे की शक्ति का आधार बनना है. अगर पड़ोसी देशों की नीति की व्याख्या करें, तो उसका मूल अर्थ पड़ोसी के साथ जोड़ना है. पिछले दिनों में आत्मनिर्भर भारत मुहिम के तहत भारत ने उत्तर-पूर्वी राज्यों को बांग्लादेश, म्यांमार और भूटान से जोड़ने की कवायद भी शुरू कर दी है.

ढाका से अगरतला के बीच मैत्री और बंधन एक्सप्रेस की लाइन खींची जा रही है. उसी तरह म्यांमार और थाइलैंड के बीच भी सड़क और रेलमार्ग की तैयारी चल रही है. अमेरिका सहित यूरोप के बड़े देश भी इस मुहिम के साथ हैं. साल 2020 में कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बैठकों में भारत ने भागीदारी की है. उन बैठकों में भारत का आत्मविश्वास भी दिखा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग व सहकार की उसकी मंशा भी जगजाहिर हुई.

वैश्विक सप्लाइ चेन में चीन के वर्चस्व को कमतर करने तथा दुनिया की तस्वीर बदलने में आत्मनिर्भर भारत बहुत कारगर हो सकता है, दुनिया के कई देश भली-भांति इस बात को समझ चुके हैं. स्वाभाविक रूप से इससे भारत का महत्व भी बढ़ेगा, लेकिन भारत की शक्ति किसी भी देश के लिए मुसीबत नहीं बनेगी. उससे पड़ोसी देशों की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है, यह संदेश भी विश्व को पहुंचा है.

प्रधानमंत्री मोदी ‘एक सूर्य, एक विश्व और एक ग्रिड’ का सिद्धांत पहले ही रख चुके हैं और पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन उनकी प्राथमिकताओं में हैं. साल 2021 का प्रारंभ अमेरिकी नीतियों में बदलाव के साथ होगा. उससे भारतीय विदेश नीति भी प्रभावित हो सकती है. बीतता वर्ष इस बात के लिए याद रखा जायेगा कि भारत ने न केवल आर्थिक ढांचे में आत्मनिर्भर भारत की आधारशिला रखी है, बल्कि विदेश नीति में भी वह अपने निर्णय के लिए स्वतंत्र है.

सौजन्य - प्रभात खबर।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment