एम भास्कर साई
तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक मंच तैयार है, क्योंकि सभी प्रमुख दलों ने अपना अभियान शुरू कर दिया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडापड्डी के पलानीस्वामी और उप मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेलवम के बीच स्पष्ट मतभेदों के बावजूद सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने भी अपना प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। पलानीस्वामी और पन्नीरसेल्वम गुटों के बीच की लड़ाई को तब विराम दे दिया गया था, जब बीते अक्तूबर में पार्टी की कार्यकारी समिति ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाने का फैसला किया था। हालांकि अब भी दोनों नेताओं के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। कहा जाता है कि पन्नीरसेलवम पलानीस्वामी से खुश नहीं हैं, जिन्होंने पलानीस्वामी की मौजूदगी के बगैर सलेम से अपना प्रचार अभियान शुरू किया। हालांकि दोनों नेता चेन्नई में चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे के अगल-बगल बैठे थे, लेकिन दोनों के बीच बहुत बातचीत नहीं देखी गई।
इस बीच, सरकार की उपलब्धियों को दर्शाने वाले जो विज्ञापन पार्टी द्वारा जारी किए गए, उनमें सिर्फ पलानीस्वामी की तस्वीर थी, पन्नीरसेलवम की नहीं। इसके बाद पन्नीरसेलवम की उपलब्धियों के बताने वाला एक अलग विज्ञापन विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया। हालांकि विगत सोमवार को तिरुनेलवेली में दोनों नेताओं ने एक ही वाहन पर बैठकर प्रचार किया, जो जाहिर है पार्टी में एकता प्रदर्शित करने के लिए किया गया होगा। कट्टर प्रतिद्वंद्वी द्रमुक के अध्यक्ष एम के स्टालिन के इस दावे पर कि पलानीस्वामी और पन्नीरसेलवम के बीच संघर्ष के चलते अन्नाद्रमुक जल्द ही टूट जाएगी, मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने जोर देकर कहा कि कोई भी पार्टी को नहीं तोड़ सकता और स्टालिन को अपनी पार्टी को बचाने के लिए ज्यादा चिंता करनी चाहिए।
विपक्षी दलों के इस दावे के अनुसार कि पलानीस्वामी और पन्नीरसेलवम के बीच दरार के कारण दोनों संयुक्त रूप से चुनाव अभियान नहीं चला रहे थे, अन्नाद्रमुक के उप समन्वयक के पी मनुसामी ने कहा कि मुख्यमंत्री का प्रचार अभियान तय कार्यक्रम के अनुसार चल रहा है। उन्होंने कहा कि प्रचार अभियान का कार्यक्रम इसी तरह से बनाया गया है। जब उनसे पूछा गया कि क्या पन्नीरसेलवम प्रचार अभियान का हिस्सा नहीं हैं, तो उन्होंने कहा कि वह बाद में मुख्यमंत्री के साथ प्रचार में शामिल होंगे। जब चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की जाएगी, तब दोनों नेता संयुक्त अभियान चलाएंगे।
अन्नाद्रमुक की जनरल काउंसिल और कार्यकारी समिति की बैठक आगामी नौ जनवरी को होगी। अब देखना होगा कि उस बैठक के दौरान दोनों नेताओं के बीच की खाई को पाटने की कोशिश की जाती है या नहीं। इसके अलावा निष्कासित अन्नाद्रमुक नेता वी के शशिकला की संभावित रिहाई को भी ध्यान में रखने की जरूरत है, जो फिलहाल बंगलूरू की जेल में हैं। अन्नाद्रमुक को अपने प्रतिद्वंद्वियों से भी मिल रही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो पार्टी के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन की राजनीतिक विरासत का दावा कर रहे हैं। राज्य में अपना जनाधार बनाने की कोशिश करने वाला हर नेता अभिनेता से नेता बने दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री की अभ्यर्थना करता है, चाहे वह रजनीकांत हो, कमल हासन हो या अन्नाद्रमुक की सहयोगी पार्टी भाजपा हो। कमल या रजनी या भाजपा के बयान बताते हैं कि एमजीआर का व्यक्तित्व और विचारधारा लोकप्रिय है।
वर्ष 2018 में एमजीआर विश्वविद्यालय में एक गैर-राजनीतिक कार्यक्रम में अपने भाषण के दौरान रजनीकांत ने कहा था, मैं एमजीआर नहीं हूं, लेकिन उनकी तरह गरीब समर्थक शासन दे सकता हूं। जब मैं अस्पताल में भर्ती था, तो वह अक्सर मेरे स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ करने के लिए फोन करते थे। उनके इस बयान को एमजीआर के साथ नजदीकी स्थापित करने के प्रयास के तौर पर देखा गया। भाजपा ने अपने दो प्रचार वीडियो में एमजीआर को चित्रित किया। एक वीडियो में पूर्व मुख्यमंत्री को भाजपा के तमिलनाडु प्रमुख एल मुरुगन के साथ दिखाया गया, तो दूसरे वीडियो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना एमजीआर से की गई। एमएनएम के संस्थापक कमल हासन ने शिवकासी में चुनाव प्रचार के दौरान कहा, मैं एमजीआर की गोद में पला-बढ़ा हूं। वह लोगों की संपत्ति हैं।
इस बीच, एमएनएम की अपनी अंदरूनी समस्याएं हैं। हाल ही में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर की मौजूदगी में पार्टी के उपाध्यक्ष भाजपा में शामिल हो गए हैं। पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक अरुणाचलम ने कहा कि उन्होंने इसलिए पार्टी छोड़ दी, क्योंकि कमल हासन ने नए कृषि कानूनों का समर्थन नहीं किया। विगत 29 दिसंबर को रजनीकांत ने तमिलनाडु के राजनीतिक मैदान में प्रवेश करने से पहले ही चुनावी राजनीति से बाहर निकलने की घोषणा कर दी। रजनीकांत के फैसले का अन्नाद्रमुक-भाजपा गठबंधन और कमल हासन की पार्टी एमएनएम की संभावनाओं पर असर पड़ेगा। यह अन्नाद्रमुक को गठबंधन के भीतर नेतृत्व का दावा करने में सक्षम बनाता है, क्योंकि सहयोगी दल ने अब सौदेबाजी की शक्ति खो दी है।
अन्नाद्रमुक का दावा है कि अगर पार्टी दोबारा चुनी गई, तो अपने दम पर सरकार बनाएगी, न कि गठबंधन के रूप में। इसलिए भाजपा दूसरा दांव खेलते हुए फंस जाएगी और सरकार गठन के समय द्रविड़ पार्टियों की चुनावी सहयोगी बनाए रखने की रणनीति को स्वीकार करना होगा और अगर 234 सीटों वाली विधानसभा में द्रमुक या अन्नाद्रमुक बहुमत हासिल करने में विफल रहती है, तभी उसका बाहरी समर्थन लेगी। चुनावी मैदान से रजनीकांत के पीछे हटने से कमल हासन की पार्टी एमएनएम को भी ज्यादा वोट मिलेंगे, क्योंकि जो मतदाता द्रमुक या अन्नाद्रमुक के कट्टर समर्थक नहीं हैं, वे पार्टी को वोट देंगे। अगर रजनीकांत पार्टी बनाकर चुनाव लड़ते, तो वह अन्नाद्रमुक और भाजपा के वोट में सेंध लगाते। रजनीकांत से पीछे हटने से एक बार फिर 2019 की तरह राज्य का चुनाव दो ध्रुवीय होने की संभावना है- जहां एक ओर अन्नाद्रमुक, तो दूसरी ओर द्रमुक होगी। इसके अलावा पहली बार राज्य का चुनाव जयललिता और करुणानिधि जैसे दिग्गज करिश्माई नेताओं के बगैर होगा।
सौजन्य - अमर उजाला।
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