के. सी. त्यागी
केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध किसान आंदोलित हैं। लगभग 40 दिनों से धरना चल रहा है। दिल्ली के लगभग सभी मुख्य प्रवेश द्वार पर झुंड के झुंड नजर आ रहे हैं। फिलहाल गांधीवादी तरीके से विरोध जाहिर हो रहा है। पंजाब-हरियाणा के किसान ज्यादा लंबी लड़ाई लड़ने के इरादे से आए हैं। दिल्ली के मुहाने पर लगे तंबू किसी ग्रामीण रहन-सहन की झलक दिखाई देते हैं। भगत सिंह की तस्वीरें आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं। कहीं-कहीं भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह द्वारा लड़े गए संयुक्त पंजाब के किसान संघर्ष की गाथा बोल भी मौजूद है, जो आंदोलनकारी किसानों में जोश भरने के लिए काफी है।
'पगड़ी संभाल जट्टा पगड़ी संभाल', 'ओए तेरा लुट गया माल', 'फसल कटी तो ले गए जालिम, तेरी नेक कमाई'। महिला एवं बच्चों की भरमार है। 50 से अधिक किसानों की मृत्यु हो चुकी है, पर जोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। आधा दर्जन से अधिक बार वार्ता का दौर हो चुका है, लेकिन मूल प्रश्नों पर गतिरोध अभी बना हुआ है। इसी बीच, सरकारी एवं गैर सरकारी विशेषज्ञों द्वारा समूची किसान राजनीति पर बुनियादी प्रश्न खड़े कर दिए गए हैं। एक और बड़ा हमला नीति आयोग के एक सदस्य द्वारा किया गया है कि यह धनी किसानों का आंदोलन है और धनी किसानों पर आयकर लगना चाहिए। वहीं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले हैं। मुख्यतः किसानों में निरंतर बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति की ओर का विश्लेषण किया है। 2016 से 2019 तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, कृषि क्षेत्र से 2016 में 11,389, 2017 में 10,655, 2018 में 10,349, 2019 में 10,281 किसानों ने जान दी। 2019-20 और 21 के आंकड़ों में इस संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इसके कारणों में कोविड-19 से पैदा हुई परिस्थितियां शामिल हैं।
कृषि की आड़ में चोरी करने वाले बड़े उद्योगपति एवं नव धनाढ्य लोगों का एक वर्ग विकसित अवश्य हुआ है। पिछले दिनों तकरीबन दो लाख किसानों ने कृषि से कमाई दिखाई है। कृषि से हुई इस कमाई को लेकर सी.बी.डी.टी भी हैरान है। जानना आवश्यक है कि क्या काले धन को सफेद करने के लिए इसे कृषि आय के तौर पर दिखाया गया हो? कृषि मंत्रालय की संसदीय समिति ने भी इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि कृषि के नाम पर चोरी से देश के अंदर 'टैक्स हैवन' बन सकता है। जबकि नाबार्ड की 2019-20 की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश के हर किसान पर एक लाख रुपये का कर्ज है। रिपोर्ट के मुताबिक 52.5 फीसदी किसान परिवार कर्ज के दायरे में है। एन.एस.एस.ओ. के एक आंकड़े के मुताबिक विगत वर्षों से कृषि परिवार की औसत मासिक आय 6,000 से 9,000 रुपये महीने के आसपास ही है। दो वर्ष पूर्व के आंकड़ों के मुताबिक यह राशि 8,931 रुपये मात्र है, जो एक सरकारी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के मासिक वेतन से काफी कम है। ऐसे में महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान लोगों के वक्तव्य स्थिति को और गंभीर बना देते हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने वर्तमान किसान आंदोलन एवं कृषि क्षेत्र में आए संकट को गलत तरीके से परिभाषित किया है। उनके अनुसार, भारत में अत्यधिक कृषि उत्पादन और एमएसपी के निरंतर बढ़े दाम समस्या के मूल में है।
संक्रमण काल के इस बुरे दौर में जब लगभग सभी क्षेत्रों से नकारात्मक रुझान आए हैं। सिर्फ कृषि क्षेत्र की रिपोर्ट आशाजनक रही है, जहां हमने 3.4 फीसदी की सकारात्मक वृद्धि दिखाई है। वर्तमान सरकार विगत छह महीने से 75 करोड़ गरीब भारतीयों को मुफ्त भोजन उपलब्ध करा रही है और 2013 के खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अनुसार दो-तिहाई आबादी को सस्ता राशन उपलब्ध करा रही है। संयुक्त राष्ट्र के फूड ऐंड एग्रीकल्चर संगठन ने भारत समेत समूचे विश्व को भूख के विरुद्ध सतर्क रहने की चेतावनी दी है कि संक्रमण के चलते बड़े पैमाने पर भूख से मौतें हो सकती हैं। लिहाजा अतिरिक्त उत्पादन हमारी आवश्यक आवश्यकताओं के लिए है। भारतीय कृषि और किसानी पहले से संकट में है। बदलते दौर में किसान संगठनों के साथ बैठकर लाभकारी मूल्य के प्रावधान पर बात हो, ताकि आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो सके।
(-लेखक ज.द.(यू) के प्रधान महासचिव हैं)
सौजन्य - अमर उजाला।
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