कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने अन्य देशों की ही तरह भारत की अर्थव्यवस्था का भी बुरा हाल कर रखा है। लेकिन देश के सुपर रिच क्लब पर इसका कोई विपरीत प्रभाव नजर नहीं आता है। पिछले साल दिसंबर की स्थिति देखें तो उस समय देश में डॉलर बिलिनियर्स (जिनके पास कम से कम एक अरब डॉलर की चल संपत्ति है) की संख्या 80 थी जो अभी बढ़ कर 90 हो गई है। यानी त्रासदियों से भरे इस साल में भी सुपर रिच क्लब फलता-फूलता रहा। न केवल इसके सदस्यों की संख्या बढ़ी बल्कि इसकी संपत्ति में भी भरपूर इजाफा हुआ है।
पिछले दिसंबर में इस क्लब के सदस्यों की कुल संपत्ति 364 अरब डॉलर थी जो अब 483 अरब डॉलर (लगभग 35.5 लाख करोड़ रुपये) हो गई है। यानी 33 फीसदी का इजाफा। यहां यह बताना जरूरी है कि यह बढ़त इस अर्थ में सांकेतिक है कि यह शेयर बाजार के चढ़ने के साथ चढ़ी है और इसके नीचे आने पर उतर भी सकती है। वैसे भी समाज के किसी हिस्से में अमीरी आती है और उसकी संपत्ति में बढ़ोतरी होती है तो यह खुद में कोई बुरी बात नहीं है। कुछ लोगों का अमीर होना कई बार अपने पीछे समृद्धि का सिलसिला लेकर आता है। इसलिए अगर समाज के किसी हिस्से में अनुपात से ज्यादा अमीरी आ रही हो और इसके लिए वह गैरकानूनी रास्ते न अपना रहा हो तो इसमें चिंता की कोई बात नहीं। लेकिन अभी की स्थितियां सामान्य नहीं हैं। यह देश और समाज के लिए अभूतपूर्व चुनौतियों का दौर है, जब सामान्य आर्थिक गतिविधियों के भी सहज रूप लेने के लाले पड़े हुए हैं।
देश की जीडीपी इस साल नेगेटिव में रहना तय है। छोटी-बड़ी तमाम कंपनियों में उत्पादन जो ठप हुआ, वह दोबारा अभी नाम को ही शुरू हो पाया है। अर्थव्यवस्था डिमांड की किल्लत से जूझ रही है। ऐसे में देश की संपदा अगर खिंचकर एक कोने में जा रही है तो यह देखना जरूरी हो जाता है कि मांग बढ़ाने में उसकी कोई भूमिका है या नहीं। मतलब यह कि उस पूंजी से कहीं कोई आर्थिक गतिविधि शुरू हो रही है या नहीं, कुछ लोगों को उससे रोजगार मिल सकता है या नहीं। और, यह कोई छोटी-मोटी राशि का मामला नहीं है। मौजूदा डॉलर भाव के मुताबिक मात्र 90 लोगों के इस सुपर रिच क्लब की कुल संपत्ति देश के जीडीपी का करीब 20 फीसदी बैठती है।
जाहिर है, यह कोई ऐसी बात नहीं है जिसे एं-वें मानकर छोड़ दिया जाए। इससे बाजार की राह रुक सकती है, जो बाकी अर्थव्यवस्था की तो बात ही छोड़िए, खुद इस सुपर रिच क्लब की भी मुश्किलें बढ़ा सकती है। सरकार की यह चिंता समझ में आती है कि घोर अंधेरे दौर में भी कुछ चमकदार सितारे जरूर होने चाहिए क्योंकि इससे लोगों में अंधेरों से निकलने की उम्मीद बनी रहती है। लेकिन अर्थव्यवस्था की नैया को इस तूफान के पार ले जाना है तो सुपर अमीरी के भंवर को नजरअंदाज करते जाने की नीति बदलनी होगी।
सौजन्य - नवभारत टाइम्स।
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