स्वाभाविक ही दोनों खिलाड़ियों ने प्रबंधन को इस बात की जानकारी दी और ऐसी टिप्पणियां करने वाले लोगों को स्टेडियम से बाहर निकाल दिया गया। लेकिन जब मामले ने तूल पकड़ा तब क्रिकेट आस्ट्रेलिया ने इन घटनाओं पर अपना आधिकारिक रुख स्पष्ट किया कि हर तरह के भेदभाव को लेकर हमारी नीति साफ है; अगर आप नस्लवादी गालियां देते हैं तो आस्ट्रेलियाई क्रिकेट में आपकी कोई जरूरत नहीं है।
क्रिकेट आस्ट्रेलिया ने एक कदम और आगे बढ़ कर मेजबान होने के नाते भारतीय क्रिकेट टीम से माफी मांगी। आस्ट्रेलियाई क्रिकेट की ओर से ऐसी सख्त प्रतिक्रिया इसलिए राहत की बात है कि वहां ऐसी नकारात्मक प्रवृत्तियों को सांस्थानिक स्तर पर कोई समर्थन प्राप्त नहीं है। मगर सामाजिक स्तर पर यह न केवल आस्ट्रेलिया के लिए, बल्कि समूची दुनिया के लिए अफसोस और चिंता की बात है।
यों दुनिया के अलग-अलग देशों में आज भी नस्ल, क्षेत्र और समुदाय या जाति-समूहों को लेकर दुराग्रह या पूर्वाग्रहों से ग्रस्त धारणाएं पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। खेल की दुनिया में भी गाहे-बगाहे ऐसे व्यवहार सामने आते रहे हैं, लेकिन अच्छा यह है कि इस पर औपचारिक रूप से उचित प्रतिक्रिया सामने आई और जरूरी कार्रवाई हुई है।
करीब चार महीने पहले आस्ट्रेलिया के ही एक खिलाड़ी डेन क्रिश्चन ने कहा था कि उन्होंने अपने पूरे कॅरियर में नस्लवाद सहा है और अब उनके साथ खेलने वाले खिलाड़ी उनसे माफी मांगते हैं। दरअसल, नस्ल, जाति, समुदाय आदि को लेकर जिस तरह के पूर्वाग्रह देखे जाते हैं, वे व्यक्ति के सामाजिक प्रशिक्षण का हिस्सा रहे होते हैं और पैदा होने के बाद उनके भीतर जाने-अनजाने बैठा दिए जाते हैं।
अफसोस यह है कि आलोचनात्मक विवेक के साथ इन मसलों पर विचार करने की कोशिश नहीं की जाती है। नतीजतन, कोई व्यक्ति कई बार निजी या फिर सार्वजनिक रूप से भी किसी अन्य नस्ल, जाति या समूह के लोगों को कमतर करने वाली या नफरत से भरी टिप्पणियां करके आहत करने की कोशिश करता है। जबकि समझने की बात यह है कि ऐसे पूर्वाग्रह या कुंठा पालने वाला कोई भी व्यक्ति सभ्य होने की कसौटी पर बहुत पिछड़ा होता है। इंसानों के भीतर इंसान के लिए समानता की संवेदना ही सभ्य होने की कसौटी है।
सौजन्य - जनसत्ता।
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